नई दिल्ली। एक बार फिर से कर्नाटक की कमान सिद्धारमैया को सौंपी गई है। लंबी ऊहापोह के बाद उन्हें कर्नाटक की कमान सौंपी गई है। कर्नाटक में कांग्रेस की फतह के बाद सीएम पद के लिए सिद्धारमैया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का नाम आगे चल रहा था। लेकिन पार्टी ने सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगाई और डीके को डिप्टी सीएम की कमान सौंपी। इसके साथ ही डीके को यह भरोसा दिलाया कि निकट भविष्य में उन्हें पार्टी द्वारा बड़ा पद दिया जाएगा। फिलहाल आगामी लोकसभा चुनाव तक डीके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर काबिज रहेंगे तो इस तरह से उन्हें पार्टी द्वारा दो पदों की कमान सौंपी गई। चुनाव के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान यह दावा किया था कि उन्होंने पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का काम किया है, जिसकी परिणीति चुनाव में कांग्रेस के जीत के रूप में देखने को मिली है। वहीं बात करें सिद्धारमैया की तो वो इससे पहले भी सीएम पद की कमान संभाल चुके हैं।
आज उन्होंने कर्नाटक के श्रीकांती रावा स्टेडियम में सभी विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में सीएम पद की शपथ ली। उनके अलावा डीके ने भी डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। इस खास मौके पर विपक्षी के कई बड़े चेहरे साथ देखने को मिले। ऐसा करके विपक्ष की तरफ से आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व विपक्षी एकता की कवायद को धार देने की कोशिश की गई। वहीं, इस रिपोर्ट में हम सिद्धारमैया के बारे में जानेंगे कि आखिर उन्होंने राजनीति का ककहरा कहां से सीखा और कैसे आज वे सीएम पद की कर्सी पर काबिज हुए?
आखिर कौन हैं सिद्धारमैया
1948 में सिद्धारमैया का जन्म कर्नाटक के गरीब किसान के परिवार में हुआ था। उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने उसी यूनिवर्सिटी से आगे लॉ की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने वकालत के पेशे में हाथ आजमाया और कुछ वक्त तक वकालत भी की।
राजनीति में कैसे रखा कदम
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत सिद्धारमैया ने 1983 में विधानसभा चुनाव लड़कर किया था। इस चुनाव में उन्होंने जीत का पताका फहराया था। इसके बाद वे पांच मर्तबा विधायक रहे। इन पांचों में उन्हें बड़ी सफलता मिली। उन्हें कन्नड वॉचडॉग कमेटी का चेयरमैन भी बनाया गया था।उन्होंने कर्नाटक में कन्नड भाषा को प्रसिद्ध बनाने की दिशा में अथक प्रयास किया था। जिसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। इसके बाद उन्होंने कैबिनेट में मंत्री पद से विभूषित किया गया, जिसके बाद उन्होंने प्रदेश के विकास के लिए कई कदम उठाए। वहीं, 1992 में उन्हें जनता दल में सेक्रेटरी के पद की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद उन्हें 1999 में पार्टी से बगावत करने की वजह से बर्खास्त कर दिया गया था।
इसके बाद उन्होंने जनता दल सेकुलर का दामन थाम लिया था। इसके बाद उन्हें दोबारा डिप्टी सीएम की कमान सौंपी गई थी। जब कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन की नौका पर सवार होकर सरकार बनाई थी। लेकिन, साल 2005 में उन्हें देवगौड़ा से मतभेद होने की वजह से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद उऩ्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया था। वहीं, वरूणा विधानसभा सीट के परिसीमन के बाद तक वो अपने बेटे के विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हुए आ रहे थे। लेकिन, 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद वो अपने पुराने सीटों पर चले गए।