
नई दिल्ली। जन्म पाकिस्तान के कराची में हुआ, लेकिन लगाव भारत से रहा। बाशिंदे पाकिस्तान के रहे, लेकिन दिल भारत के लिए धड़कता रहा। भारत के प्रति उनके लगाव का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने कई मौकों पर पाकिस्तान के खिलाफ भी मोर्चा खोलने से गुरेज नहीं किया। उम्मीद है, आप समझ गए होंगे कि हम किसकी बात करने जा रहे हैं। दरअसल, हम आपको तारिक फतेह के बारे में बताने जा रहे हैं। कैंसर से जूझ रहे तारिक आज हम सबको हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। उनके निधन की जानकारी खुद उनकी बेटी ने ट्वीट कर दी है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि तारिक फतेह का निधन हो गया है। उनकी क्रांति उन सभी के साथ जारी रहेगी जो उन्हें जानते और प्यार करते थे। हालांकि, इससे पहले भी उनके निधन की खबर आई थी, लेकिन बाद में उनकी बेटी ने सामने आकर इन खबरों को अपुष्ट करार दिया था। वहीं, तारिक के निधन के बाद उनके प्रशंसक खासा दुखी हैं। आइए, आगे आपको बताते हैं कि आखिर कौन हैं तारीक फतेह, जिनके निधन से उनके प्रशंसकों में है शोक की लहर।
Lion of Punjab.
Son of Hindustan.
Lover of Canada.
Speaker of truth.
Fighter for justice.
Voice of the down-trodden, underdogs, and the oppressed.@TarekFatah has passed the baton on… his revolution will continue with all who knew and loved him.Will you join us?
1949-2023 pic.twitter.com/j0wIi7cOBF
— Natasha Fatah (@NatashaFatah) April 24, 2023
आपको बता दें कि तारिक फतेह पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक थे। इसके अलावा वे प्रसारक एवं सेक्युलर उदारवादी कार्यकर्ता थे। तारिक इस्लामिक कट्टरपंथ के विरोध में खुलकर बोलते थे और इस्लाम में उदारवाद की खुलकर पैरोकारी किया करते थे, जिसकी वजह से कई बार इन्हें कट्टरपंथियों की आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ता था, लेकिन वह इन सबकी परवाह किए बगैर हमेशा ही अपने विचारों पर अडिग रहे, जिसकी वजह से भारत में इनके चाहने वालों की एक लंबी कतार है। वे भारतीय टीम चैनलों के डिबेटों में जमकर हिस्सा लेते थे और कई मसलों को लेकर वे भारत के पक्ष में बोलने से गुरेज नहीं किया करते थे, जिसकी वजह से उन्हें पाकिस्तान में आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ता था।
बता दें कि तारिक का जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वामपंथी नेता के रूप में की थी। भारत के पक्ष में बोलने की वजह से उन्हें पाकिस्तानी पुलिस ने दो बार गिरफ्तार भी किया था। इसके बाद जनरल जिया-उल हक ने उन पर राजद्रोह का आरोप भी लगाया था। जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान में एक पत्रकार के रूप में काम करने से रोक दिया गया था। इसके बाद वे कनाडा चले गए थे और वहां पत्रकार के रूप में करने में जुट गए थे। तारिक ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनके पूर्वज राजपूत थे, जिन्हें 1860 में जबरन इस्लाम कबूल करवा दिया गया था। उनकी खास बात यह थी कि तमाम प्रतिरोध के बावजूद भी वो भारत के पक्ष में बोलने से कोई गुरेज नहीं करते थे।