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Who Was Pandit Laxmikant Dixit In Hindi: जानिए कौन थे पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित, जिनके निधन से वाराणसी में शोक की लहर; भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में मिली थी अहम जिम्मेदारी

Who Was Pandit Laxmikant Dixit In Hindi: वाराणसी की परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए भी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने काम किया। काशी नरेश के सहयोग से बने सांगवेद महाविद्यालय के भी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित वरिष्ठ आचार्य थे। उन्होंने हमेशा लोगों को ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव सिखाया।

वाराणसी। प्रकांड विद्वान पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का शनिवार को वाराणसी में निधन हो गया। उनकी उम्र 90 साल थी। पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान 121 आचार्यों का नेतृत्व किया था। उनको रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य आचार्य बनाया गया था।

पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित के निधन से वाराणसी में शोक की लहर है। वाराणसी में सभी उनको जानते थे। मूल रूप से पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का परिवार महाराष्ट्र के सोलापुर का था। उनके पूर्वज वहां से आकर काशी में बसे थे। वाराणसी के मंगलागौरी में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का का पैतृक आवास है। वाराणसी यानी काशी में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित के ज्ञान की लोग चौतरफा चर्चा करते थे। वाराणसी में यजुर्वेद के मूर्धन्य विद्वानों में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित की गिनती की जाती थी। सनातन धर्म का सदा पालन करने में वो भरोसा करते थे। उनका काशी के लोग बहुत सम्मान करते थे। कई संगठनों ने उनको तमाम सम्मान से विभूषित भी किया था।

वाराणसी की परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए भी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने काम किया। काशी नरेश के सहयोग से बने सांगवेद महाविद्यालय के भी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित वरिष्ठ आचार्य थे। लोगों और अपने यजमानों को ईश्वर के प्रति हमेशा समर्पित रहने के लिए कहने वाले पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित उत्तर भारतीय तरीके से पूजा पद्धति के भी माहिर थे। पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने अपने चाचा गणेश दीक्षित से वेद की शिक्षा ली थी और सनातन पूजा पद्धति के तहत अनुष्ठान कराने सीखे थे। इसी प्रतिष्ठा और ज्ञान के कारण ही भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में पंडित लक्ष्मीकांत त्रिपाठी को मुख्य आचार्य बनाकर 121 अन्य आचार्यों का नेतृत्व सौंपा गया था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के सभी कर्मकांड उनकी ही देखरेख में किए गए थे।