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Who Was MS Swaminathan: कौन थे हरित क्रांति के जनक वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन?, जिनका 98 साल की उम्र में हुआ निधन

Who Was MS Swaminathan: महज 11 वर्ष की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। उनके परिवार वावे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई करवना चाहते थे, लेकिन आगे चलकर उन्होंने प्राणि विज्ञान में जाने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने 1944 में उन्होंने मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की।

नई दिल्ली। आखिर कैसे भुलाया जा सकता है कि 1943 के बंगाल के उस अकाल को जब लोग दाने-दाने को मोहताज़ हो चुके थे। लोगों को महीनों तक अन्न के दर्शन नहीं हुए थे। भूख से लोग दम तोड़ने पर मजबूर थे। बंगाल के खेत-खलिहान बंजर भूमि में तब्दील हो चुके थे। खेत में अनाज उगना बंद हो चुके थे। हालांकि, कुछ जानकार दावा करते हैं कि उस वक्त बंगाल से अनाज का निर्यात दूसरे समृद्ध देशों में किया जाता था। इसके अलावा उन दिनों मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार और ब्रितानी हुकूमत मौज उड़ा रहे थे। लेकिन आम हिंदुस्तानी दाने-दाने को मोहताज थे। उस वक्त यह सबकुछ अपनी आंखों से देख रहे एक छोटे से बच्चे ने प्रण लिया कि अब मैं इस देश को कभी भूखे नहीं मरने दूंगा और बाद में वो बच्चा भारत का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का महान वैज्ञानिक बना।

जी हां… हम बात कर रहे है हरित क्रांति के पितामह एम एस स्वामीनाथन की। जिनका आज 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने कृषि विज्ञान के क्षेत्र में जिस तरह के कीर्तिमान स्थापित किए थे, उन्हें शब्दों में इस छोटे से लेख के जरिए बयां कर पाना मुश्किल है, लेकिन यकीनन आपको यह जानकर अति पीड़ा होगी कि अब वो हमारे बीच नहीं रहे। उनका हम सभी को यूं छोड़कर चले निसंदेह एक अपूरणीय क्षति है। कृषि विज्ञान के क्षेत्र में उनकी अप्रतिम उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता था।

1943 में बंगाल में आई भूखमरी ने उन्हें कृषि विज्ञान के क्षेत्र में जानने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संकल्प लिया कि इस क्षेत्र में जाने के बाद वो कुछ अद्भुत प्रयोग करेंगे जिसके बाद कभी-भी अनाज की किल्लत पैदा नहीं होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और दूसरे कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्म (HYV)बीज विकसित किए थे। जिसके बाद देश में गेहूं की बंपर पैदावार हुई। 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे, जिसके बाद पैदावार में बंपर बढ़ोतरी देखने को मिली।

महज 11 वर्ष की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। उनके परिवार वालों ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई करवाना चाहते थे, लेकिन आगे चलकर उन्होंने प्राणि विज्ञान में जाने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने 1944 में उन्होंने मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने 1947 में वो आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने आलू पर भी शोध किया।

हालांकि, इस बीच उन्हें परिवार के दबाव में आकर सिवील सेवा की परीक्षा देनी पड़ी, जिसके बाद उनका चयन आईपीएस में हुआ, लेकिन जब उन्हें नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में जाने का मौका मिला, तो उन्होंने इस मौके को हाथ जाने से नहीं दिया। इसके बाद वो 1954 में भारत आ गए, जिसके उन्होंने अपना शेष जीवन कृषि विज्ञान को समर्पित कर दिया। वहीं, स्वामीनाथन को स्वामीनाथन को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) शामिल हैं।