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Makhanlal Chaturvedi Birth Anniversary: ‘पुष्प की अभिलाषा’ के रचयिता ने क्यों लौटाया ‘पद्मभूषण’, जानिए उनके मुख्यमंत्री पद ठुकराने का किस्सा

Makhanlal Chaturvedi Birth Anniversary: ​​उन्होंने ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ जैसे प्रतिष्ठित पत्रों का संपादन कर पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। माखन लाल की काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

नई दिल्ली। स्वाधीनता संग्राम में जो भूमिका स्वतंत्रता सेनानियों की रही, वहीं भूमिका साहित्यकारों और कवियों की रही। उस दौर के लेखकों ने अपनी कलम के जरिए लोगों के दिलों में आजादी की अलख जगाए रखी। इन्हीं कवियों में एक ख्यातिप्राप्त कवि माखन लाल चतुर्वेदी की आज जयंती है। आज उनके जन्मदिन के अवसर ‘दद्दा’ के नाम से पुकार जाने वाले माखन लाल को याद करते हुए जानते हैं उनके जीवन के कुछ खास किस्से… साहित्यकारों के बीच में ‘एक भारतीय आत्मा’ के रूप में उनकी ख्याति आज भी वैसे ही कायम है। राष्ट्रप्रेम को भारी-भरकम शब्दों से मुक्त करके उसे सरल सहज रूप में प्रस्तुत कर जन-जन तक पहुंचाना उनके लेखन की विशेषता रही है। 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के ‘होशंगाबाद’ में जन्में माखन लाल का परिवार ‘राधावल्लभ संप्रदाय’ का अनुयायी था, जिसका प्रभाव उनके जीवन और व्यक्तित्व पर भी देखने को मिलता था। घर पर ही प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद घर पर ही उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। उनका विवाह पंद्रह वर्ष की अवस्था में ही हो गया था। जीवन यापन के लिए उन्होंने आठ रुपए मासिक वेतन पर शिक्षक के रूप में पढ़ाना शुरू किया, लेकिन 1913 में नौकरी छोड़ कर पूरी तरह से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्र की सेवा में लग गए। माखन लाल ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और कई बार गिरफ्तार भी हुए।

उनकी पहली गिरफ्तारी असहयोग आंदोलन में महाकोशल अंचल से हुई। इसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान भी वो गिरफ्तार हुए। उनकी कविताएं अंग्रेजों के खिलाफ नारे के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। उन्होंने ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ जैसे प्रतिष्ठित पत्रों का संपादन कर पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। माखन लाल की काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में 10 सितंबर 1967 को माखनलाल चतुर्वेदी ने ये अलंकरण वापस लौटा दिया था। ‘हिमकिरीटिनी’, ‘हिम तरंगिणी’, ‘युग चर’, ‘समर्पण’, ‘मरण ज्वार’, ‘माता’, ‘बीजुरी काजल आंज रही’, ‘चिंतक की लाचारी’, ‘कला का अनुवाद’, ‘साहित्य देवता’, ‘समय के पांव’, ‘अमीर इरादे-गरीब इरादे’, ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ आादि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं। महान संपादक पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए। वर्ष 1920 में सागर के समीप ‘रतौना’ में ब्रिटिश सरकार ने 40 लाख की लागत से बना एक कसाईखाना खोलने का निर्णय लिया। माखन लाल ने इसके विरूद्ध संपादकीय लिखकर आंदोलन छेड़ दिया, जिसके बाद दूसरे अखबारों ने भी इस विषय को उठाया। सबके अथक प्रयासों से आखिरकार, अंग्रेजों को हार माननी पड़ी।

आजादी के बाद जब मध्य प्रदेश की घोषणा नए राज्य के रूप में की गई तो माखन लाल का नाम पहले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तावित हुआ। जब उन्हें इस विषय में सूचना मिली कि उन्हें मुख्यमंत्री पद पर आसीन होना है, तो उन्होंने सबको फटकारते हुए कहा कि ‘मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते ‘देवगुरु’ के आसन पर बैठा हूं। मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठाना चाहते हो, जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है।‘ उनके इंकार करने के बाद रविशंकर शुक्ल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। 30 जनवरी 1938 को भोपाल में उनका देहांत हो गया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ जैसी कालजयी कविताओं के रचयिता माखनलाल जी न सिर्फ शब्दों से बल्कि अक्षर जीवन मूल्यों से साहित्यकारों के पूज्य और आदर्श रहे हैं। उनकी कविताएं आज भी राष्ट्र निर्माण और साहित्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा प्रदान करती हैं।