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April Fool Day 2023: अप्रैल फूल डे आज, जानिए क्यों मनाया जाता हैं मूर्खता दिवस और भारत में इस दिन की शुरुआत किसने किया?

April Fool Day 2023: इतिहासकारों के अनुसार पोप ग्रेगरी XIII द्वारा 1952 में ग्रेगोरियन कैलेंडर पेश करने के बाद से इस दिन को अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जाने लगा। पोप ग्रेगरी ने ऐसा कहा था कि  नया कैलेंडर 1 जनवरी से शुरू होगा, जो कि अभी होता भी हैं। वहीं इससे पहले की बात करें तो नया साल मार्च महीने के अंत में सेलीब्रेट किया जाता था। ऐसा कहा जाता हैं कि जब पोप ग्रेगरी 1 अप्रैल को कैलेंडर को जूलियन से ग्रेगोरियन में बदलने की शुरुआत की थी

नई दिल्ली। आज के समय में कई नए दिन आ गए जिसे लोग काफी धूम-धाम से मनाते हैं। फिर चाहे फ्रेंडशिप डे की बात करें या फिर अप्रैल फूल डे हो। इन सब दिवस को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं और उसे एन्जॉय करते हैं। आज भारत में हर जगह मूर्खता दिवस के रूप में मनाया जा रहा हैं। आज के दिन लोग अपने दोस्तों, परिवारों के साथ मस्ती-मजाक के साथ-साथ उन्हें कुछ झूठ बोल कर उनके साथ मजाक करते हैं फिर उन्हें कहते हैं कि अप्रैल फूल डे। आज के दिन ऑफिस में लोग, स्कूलों में, कॉलेज में हर जगह बस अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जा रहा हैं। तो चलिए जानते हैं कि इस दिन की उत्पत्ति कैसे हुई और इसे क्यों मनाया जाता हैं।

अप्रैल डे की शुरुआत कैसे हुई

इतिहासकारों के अनुसार पोप ग्रेगरी XIII द्वारा 1952 में ग्रेगोरियन कैलेंडर पेश करने के बाद से इस दिन को अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जाने लगा। पोप ग्रेगरी ने ऐसा कहा था कि  नया कैलेंडर 1 जनवरी से शुरू होगा, जो कि अभी होता भी हैं। वहीं इससे पहले की बात करें तो नया साल मार्च महीने के अंत में सेलीब्रेट किया जाता था। ऐसा कहा जाता हैं कि जब पोप ग्रेगरी 1 अप्रैल को कैलेंडर को जूलियन से ग्रेगोरियन में बदलने की शुरुआत की थी तभी से लोगों ने अप्रैल फूल डे को मनाना शुरु किया था। हालांकि, कई लोगों ने इस बदले हुए कैलेंडर को मानने से इंकार कर दिया था।

अंग्रेजों ने भारत में शुरु किया था

वहीं ऐसा कहा जाता हैं कि फ्रांस ने इस नए कैलेंडर को मानना स्वीकार किया था। वहीं ऐसा कहा जाता हैं कि जिन लोगों ने इस कैलेंडर को माना उनका मजाक बनाया गया और जिन्होंने नहीं माना उनको मूर्ख कहा गया था। बस ऐसा कहा जाता हैं कि इस दिन से ही इसकी शुरुआत हुई। वहीं भारत की बात करें तो सब का कहना हैं कि 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इसे मनाना शुरु किया था।