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Tunnel Labourers Mental Trauma : कैसे मेंटल ट्रॉमा से बाहर आएंगे सिलक्यारा टनल से निकले 41 मजदूर ?

उत्तरकाशी से आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मजदूरों के लिए शुरूआती दिन बहुत मुश्किल भरे थे क्योंकि अंदर धूप भी नहीं थी । आप परिवार वालों से बात नहीं कर सकते, बाहर भी निकल पाएंगे या नहीं निकल पाएंगे ये भी पता नहीं था ।

सिलक्यारा टनल में चले रेस्क्यू ऑपरेशन को निश्चित तौर पर इतिहास में याद रखा जाएगा । 17 दिन का वक्त, 41 मजदूर अंदर फंसे हुए थे और सबसे पहले ये सवाल उठाया गया कि आखिर वो मजदूर कैसे हैं जिंदा हैं कि नहीं और जिंदा हैं तो स्वस्थ हैं कि नहीं । डॉक्टर्स ये कह रहे हैं कि सभी मजदूर पूरी तरह स्वस्थ हैं । हालांकि, मनोवैज्ञानिक अगले 2-3 दिन में मेडिकल एग्जामिन करने के बाद ही कुछ बता पाएंगे । उत्तरकाशी से जो खबरें आईं उनमें कहीं भी ऐसा नहीं बताया गया कि किसी मजदूर के साथ कुछ गंभीर दुर्घटना हुई हो या किसी को कोई चोट आई हो । उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ में जो नजदीकी अस्पताल है वहां इन मजदूरों का डिटेल मेडिकल एग्जामिन किया जाएगा । इन्हें निगरानी में रखा जाएगा और उसके बाद लगभग 48 घंटे तक वो ऋषिकेश एम्स में भी रखे जाएंगे । 17 दिनों तक एक जगह पर बंद रहना वो भी इतनी ठंड में, परिवार से दूर रहना बात न कर पाने की स्थिति बने रहना तो इन सभी चीजों का बहुत दूरगामी असर पड़ता है । त्वरित रूप से वो चीजें भले न दिखाई देती हों लेकिन हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि ये मजदूर बहुत मजबूत मानसिक स्थिति के लोग थे । इनका मनोबल मिशन के दौरान मजबूत रहा । उत्तरकाशी से आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मजदूरों के लिए शुरूआती दिन बहुत मुश्किल भरे थे क्योंकि अंदर धूप भी नहीं थी । आप परिवार वालों से बात नहीं कर सकते, बाहर भी निकल पाएंगे या नहीं निकल पाएंगे ये भी पता नहीं था । खासतौर पर जब आप टनल के बाहरी छोर से केवल 200 मी. दूर हों लेकिन बाहर न जा पाएं तो ये शुरूआती दिनों में जरूर मुश्किल की घड़ी हो सकती है लेकिन उसके बाद जब इन मजदूरों को खाना मिलना शुरू हो गया, एंडोस्कोपी का कैमरा गया, बाहर मौजूद लोगों से बातचीत शुरू हो गई तब उसके बाद इनका मनोबल बढ़ गया । अब जाहिर तौर पर जब ये मजदूर अपने परिवार वालों से मिलेंगे तो उसका सकारात्मक असर भी इनकी मानसिक स्थिति पर जरूर पड़ेगा । इससे इन्हें मेंटल ट्रॉमा से बाहर आने में भी मदद मिलेगी । डॉक्टर्स और मनोवैज्ञानिकों का भी यही मानना है।