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अमेरिकी रिसर्च में किया गया दावा, कोरोनावायरस को नाक से बाहर नहीं निकलने देगा यह स्प्रे

दुनिया भर में कोरोनावायरस (Coronavirus) मरीजों की संख्या 2.08 करोड़ के पार पहुंच गयी है। वहीं इस घातक वायरस से तकरीबन 8 लाख लोग मारे जा चुके हैं।

नई दिल्ली। विश्वभर में कोरोना महामारी का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में कोरोनावायरस मरीजों की संख्या 2.08 करोड़ के पार पहुंच गयी है। वहीं इस घातक वायरस से तकरीबन 8 लाख लोग मारे जा चुके हैं। बता दें कि कोरोनावायरस के कई वैक्सीन और दवाओं का परीक्षण अंतिम दौर में है।दुनिया भर में फैली इस महामारी के इलाज के लिए दुनिया के कोने कोने में प्रयास किए जा रहे हैं।

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इन्हीं में से एक प्रयास के तहत अमेरिका के शोधकर्ताओं ने एक खास नेजल स्प्रे बनाया है। इसकी खासियत यह है कि इसे नाक में स्प्रे करने से कोरोना संक्रमण नाक से बाहर नहीं फैलेगा। माना जा रहा है कि यह स्प्रे कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए काफी कारगर साबित हो सकता है।

सैन फ्रांसिको की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के बनाए नेजल स्प्रे की खासियत यह है कि न्यूट्रिलाइज करने वाली एंटीबॉडी जैसे प्रोटीन से बना है।यह वायरस को कोशिकाओं को संक्रमण करने से रोक सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस समय इस तरह की दवा की दुनिया को सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि अभी तक न तो कोविड-19 की कोई वैक्सीन निकली है और न ही उसकी कारगर दवा।

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कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के छात्र माइकल स्कूफ की अगुआई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह नया सिंथेटिक पदार्थ बनाया है। यही पदार्थ इनहेलर स्प्रे के रूप में लिया जा सकता है। यह पदार्थ ही कोरोना वायरस के संक्रमण की उस प्रक्रिया को रोकने का काम करता है जिसे सार्स कोव-2 मानवीय कोशिका में घुस पाता है। यह शोध प्रीप्रिंट सर्वर बायोरिक्सिव पर उपलब्ध है। इस वायरस पर अब तक के हुए प्रयोगों से स्पष्ट होता है कि यह सार्स कोव-2 का सबसे बड़ा एंटीवायरल है।

इस स्प्रे या इनहेलर को ऐरोनैब्स नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए एक अलग ही तरह की मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थैरेपी बनाई है। इसके लिए उन्होंने नियमित आकार की एंटीबॉडी का उपयोग करने के बजाए नैनोएंडीबॉडी का इस्तेमाल किया है।

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शोधकर्ताओं को ऐरोनैब्स के तत्वों की प्रेरणा लामा और ऊंट जैसे जानवरों की एंटीबॉडीज से मिली। इन जानवरों में एंटीबॉडी जैसे इम्यून प्रोटीन प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध होते हैं। बहुत से शोधकर्ताओं की टीमें कोविड-19 की दवाओं के लिए लामा, ऊंट और गायों की एंटीबॉडीज पर काम कर रही हैं।