नई दिल्ली। इस्लामिक देश ताजिकिस्तान में कट्टरपंथ पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन, जो पिछले 30 साल से देश की सत्ता पर काबिज हैं, ने मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने और पुरुषों के दाढ़ी बढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। नए कानून के तहत, नियमों का पालन न करने वालों पर भारी जुर्माना और सजा का प्रावधान किया गया है। इमोमाली का मानना है कि यह कदम देश में बढ़ते धार्मिक कट्टरपंथ पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए आवश्यक है।
आतंकी घटनाओं के चलते कड़ा कानून
ताजिकिस्तान, जो अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमाओं से घिरा है, लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय निगरानी में है। मार्च 2024 में रूस की राजधानी मॉस्को में हुए आतंकी हमले में ताजिक मूल के चार आतंकवादियों की संलिप्तता सामने आने के बाद सरकार ने इस्लामिक पहनावे और पहचान पर रोक लगाने की दिशा में कदम उठाए हैं। ताजिकिस्तान में करीब 98% आबादी मुस्लिम है, लेकिन सरकार का मानना है कि इस्लामिक पहचान को सार्वजनिक रूप से सीमित करने से रूढ़िवादी और चरमपंथी विचारधारा कमजोर होगी।
इस्लामिक देश ताजिकिस्तान ने कट्टरपंथ के खिलाफ बड़ा फैसला लिया है. पिछले 30 साल से देश की सत्ता पर काबिज तानाशाह इमोमाली ने देश की मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके साथ ही दाढ़ी बड़ी रखने पर भी रोक लगा दी है. नियमों का पालन नहीं करने पर जुर्माने और सजा… pic.twitter.com/oSXPuojeYy
— ABP News (@ABPNews) September 12, 2024
जुर्माने की राशि और आलोचना
नए नियमों के अनुसार, सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने और दाढ़ी बढ़ाने पर रोक लगा दी गई है। इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना लगाया जा रहा है, जो 1 लाख रुपये से अधिक हो सकता है। वहीं, ताजिकिस्तान में औसत मासिक वेतन लगभग 15 हजार रुपये है, जिससे जुर्माने की राशि काफी अधिक है। इस कारण सरकार के इस फैसले की आलोचना भी हो रही है। दुशांबे की एक शिक्षिका निलोफर ने अपनी आपबीती साझा करते हुए बताया कि पुलिस ने उन्हें तीन बार हिजाब उतारने के लिए कहा। जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया तो उन्हें रातभर थाने में रखा गया। उनके पति को भी दाढ़ी न काटने के कारण पांच दिन जेल में बिताने पड़े। अब अपने करियर को नुकसान से बचाने के लिए निलोफर ने हिजाब पहनना बंद कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम कट्टरपंथ को नियंत्रित करने के बजाय और बढ़ावा दे सकता है। मानवाधिकार विशेषज्ञ लरिसा अलेक्जांडरोवा के अनुसार, सरकार असली समस्याओं जैसे गरीबी, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता पर ध्यान देने के बजाय सतही उपाय कर रही है। उनका मानना है कि इस तरह के सख्त कदम देश में असंतोष को बढ़ा सकते हैं।