नई दिल्ली। कोरोना वायरस से निजात पाने के लिए पिछले कुछ दिनों से अच्छी खबरें सामने आ रही हैं। इसकी वैक्सीन बनने को लेकर कई देशों की तरफ से बेहतर दावे किए जा रहे हैं। इस बीच अमेरिका की बायोटेक कंपनी मॉडर्ना की कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर अच्छी खबर सामने आी है। बता दें कि यह वैक्सीन बंदरों पर हुए ट्रायल में पूरी तरह असरदार रही है।
Moderna और नेशनल इंस्टीट्यूट्स फॉर हेल्थ (NIH) की वैक्सीन पर न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में मंगलवार को एक नई स्टडी प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक, मॉडर्ना की कोरोना वैक्सीन ने बंदरों में सफलतापूर्वक तगड़ा इम्यून रेस्पांस विकसित किया है। यह वैक्सीन बंदरों की नाक और फेफड़ों में कोरोना को अपनी कॉपी बनाने से रोकने में भी सफल रही है।
संक्रमित व्यक्ति की नाक में कोरोना को अपनी कॉपीज बनाने से रोकना बहुत जरूरी है, ऐसा इसलिए क्योंकि इससे वायरस का दूसरों तक फैलना रुक जाता है। आपको बता दें कि जब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन का बंदरों पर ट्रायल हुआ था, तब ऐसे नतीजे नहीं आए थे। यही वजह है कि Moderna की वैक्सीन ज्यादा असरदार नजर आ रही है।
स्टडी के मुताबिक, मॉडर्ना ने 8 बंदरों के 3 ग्रुप्स को या तो वैक्सीन दी या प्लेसीबो। वैक्सीन की डोज 10 माइक्रोग्राम और 100 माइक्रोग्राम रखी गई थी। हैरानी की बात यह है कि जिन बंदरों को दोनों डोज दी गईं, उनमें ऐंटीबॉडीज का स्तर कोविड-19 से रिकवर हो चुके इंसानों में मौजूद ऐंटीबॉडीज से भी ज्यादा था।
स्टडी के मुताबिक, वैक्सीन के इस्तेमाल से बंदरों में खास तरह की इम्यून सेल्स (T सेल्स) भी बनीं। मॉडर्ना की वैक्सीन वायरल आरएनए के रूप में जेनेटिक मटीरियल यूज करती है। हालांकि एक और खास तरह की T-सेल (Th2) से वैक्सीन उल्टा असर भी कर सकती है क्योंकि उनसे वैक्सीन एसोसिएटेड एनहैंसमेंट ऑफ रेस्पिरेटरी डिजीज (VERD) का खतरा पैदा हो जाता है, लेकिन राहत की बात यह है कि इस वैक्सीन के प्रयोग में वह सेल्स नहीं बनीं।
वैज्ञानिकों ने बंदरों को वैक्सीन का दूसरा इंजेक्श न देने के 4 हफ्ते बाद नाक और ट्यूब के जरिए सीधे उनके फेफड़ों तक वायरस को पहुंचाया। लो और हाई डोज वाले 8-8 बंदरों के ग्रुप में 7-7 के फेफड़ों में 2 दिन बाद कोई रेप्लिकेटिंग वायरस नहीं था जबकि जिन्हें प्लेसीबो दिया गया था, उन सबमें वायरस मौजूद था। NIH ने एक बयान में कहा कि यह पहली बार है जब किसी प्रायोगिक कोविड वैक्सीन से ऐसे नतीजे मिले हों। फेफड़ों में वायरस के रुकने से बीमारी गंभीर नहीं होगी जबकि नाक में इसकी कॉपी बनने से रुकने पर ट्रांसमिशन का खतरा कम होगा। बता दें कि मॉडर्ना वैक्सीन का बड़े पैमाने पर इंसानों पर ट्रायल शुरू हो चुका है और साल के आखिर तक इसके फाइनल नतीजे आ सकते हैं।