Ajab Gazab News: अजीबोगरीब है इस देश की परंपरा, मरने से पहले करते हैं अपनी मौत की तैयारी, यहां पढ़ें अनोखी कहानी

Ajab Gazab News: जापान की ये परंपरा तीन चरणों में पूरी की जाती है। इस प्रक्रिया में कुछ लोग तो पहले या दूसरे चरण में ही मर जाते हैं, तो कुछ तीन चरणों के पूरा होते-होते मर जाते हैं। इस प्रथा को निभाने के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती या दबाव नहीं होता बल्कि मरने वाला व्यक्ति इसका फैसला स्वयं लेता है।

Avatar Written by: June 8, 2022 1:35 pm

नई दिल्ली। इस दुनिया में हर चीज नश्वर है। जो यहां आया है, वो एक दिन जाएगा भी। सभी की मौत निश्चित है। सच जानते हुए भी कि एक दिन हमें मरना ही है, हम मौत से डरते हैं साथ ही इस तरह से जीते हैं जैसे हमें कभी मौत आएगी ही नहीं। लेकिन जापान के एक तबके को मौत से डर नहीं लगता है बल्कि वो अपने मरने की खुद तैयारी करते हैं। वो भी कुछ मिनट, घंटे या फिर एक-दो दिन पहले नहीं बल्कि, तकरीबन सात साल पहले से ये लोग अपनी मौत की तैयारियां शुरू कर देते हैं। जापान की ये परंपरा तीन चरणों में पूरी की जाती है। इस प्रक्रिया में कुछ लोग तो पहले या दूसरे चरण में ही मर जाते हैं, तो कुछ तीन चरणों के पूरा होते-होते मर जाते हैं। इस प्रथा को निभाने के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती या दबाव नहीं होता बल्कि मरने वाला व्यक्ति इसका फैसला स्वयं लेता है। तो आइए जानते हैं क्या है ये प्रथा और उसे निभाने के पीछे का कारण…

दरअसल, ये हैरान करने वाली परंपरा जापान की है, जहां बौद्ध भिक्षु सोकोशिनबुत्सु (sokushinbutsu) होते हैं। इन भिक्षुओं में में ममी बनने की परंपरा प्रचलित है, जिसे तीन अलग-अलग चरणों में निभाया जाता है और भिक्षुओं की मौत के बाद उनके शरीर को सोने के पानी से कवर करके सहेज लिया जाता है। इस परंपरा के तीनों चरणों को पूरा होने में लगभग सात साल का समय लग जाता है। हालांकि, इस परंपरा को बौद्धभिक्षु द्वारा अपनी आध्यात्मिक ताकत का प्रदर्शन करने का एक तरीका भी माना जाता है। इसमें वो स्वयं को ममी के रूप में बदल कर इसी स्वरूप में रहते हैं। ये बौद्ध भिक्षु इस अनोखी परंपरा को निभाते हुए करीब सात सालों तक सधी हुई दिनचर्या का पालन करते हैं। इसके पहले चरण में बौद्ध भिक्षु एक हजार दिनों के लिए भोजन का त्याग कर देते हैं और केवल नट्स और बींस खाकर जीवन गुजारते हैं। इसे सफलता पूर्वक पार करने के बाद वो दूसरे चरण में प्रवेश करते हैं। दूसरे चरण में वो अगले एक हजार दिनों तक जहरीली चाय का सेवन करते हैं।

ये चरण काफी कठिन होता है, ज्यादातर लोग इसी चरण में मौत को गले लगा लेते हैं, लेकिन कुछ लोग इस भयानक चरण को भी पार कर जाते हैं। इसके बाद वो तीसरे चरण में प्रवेश करते हैं। सबसे कठिन और खतरनाक माने जाने वाले इस चरण में बौद्ध भिक्षु खुद को पूरी तरह से बंद एक मकबरे में कैद कर लेते हैं। इसमें सांस लेने के लिए केवल एक नली बाहर निकली होती है। ताकि जीवित रहने भर की हवा अंदर-बाहर हो सके। इस दौरान भिक्षु रोज मकबरे में लगी एक घंटी को बजा देते हैं। जब तक यह घंटी बजती रहती है, लोग मानते हैं कि भिक्षु अभी जीवित हैं और जिस दिन ये घंटी नहीं बजती, उस दिन मान लिया जाता है कि उनकी मौत हो चुकी है। इसके कुछ दिन बाद मकबरा खोला जाता है और भिक्षु के शव को ममी के रूप में बदल कर सहेज लिया जाता है।

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