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Who Were The Indentured Laborers In Hindi? : कौन थे गिरमिटिया मजदूर, भारत से क्या है कनेक्शन, पीएम नरेंद्र मोदी के गुयाना पहुंचते ही क्यों होने लगी इनकी चर्चा?

Who Were The Indentured Laborers In Hindi? : मोदी के दौरे को लेकर गुयाना में रहने वाले भारतीयों के साथ स्थानीय नागरिकों में भी खासा उत्साह देखा गया। पीएम मोदी गुयाना पहुंचते ही सबसे पहले वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से मिले। इस दौरान उन्होंने गिरमिटिया मजदूर समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली के पूर्वज भी गिरमिटिया मजदूर ही थे।

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुयाना के दौरे पर हैं। 50 साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब भारत का कोई प्रधानमंत्री गुयाना यात्रा पर गया है। इस लिहाज से पीएम मोदी की यह यात्रा बहुत ही अहम है। मोदी के दौरे को लेकर गुयाना में रहने वाले भारतीयों के साथ स्थानीय नागरिकों में भी खासा उत्साह देखा गया। पीएम मोदी गुयाना पहुंचते ही सबसे पहले वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से मिले। इस दौरान उन्होंने गिरमिटिया मजदूर समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की। आइए आपको बताते हैं कि गिरमिटिया मजदूर कौन हैं और इनका भारत से क्या नाता है।

गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली के पूर्वज भी गिरमिटिया मजदूर ही थे। दरअसल गिरमिटिया मजदूर भारत के ही रहने वाले लोग थे। अंग्रेजों के शासन काल में भारत के लोगों को अनुबंध के तौर पर फिजी, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, मलेशिया, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसी जगहों पर भेजा गया। जैसे दूसरे देशों में मजदूरी करने के लिए भेजा गया था। इनमें में ज्यादा तर लोग अनुबंध पूरा होने के बाद भी कभी भारत नहीं सके क्योंकि उनके पास वतन वापसी के पैसे नहीं थे। मजबूरन उनको वहीं रुकना पड़ा। अंग्रेजों द्वारा इन लोगों को अनुबंध के तौर पर भेजा जाता था और इसीलिए अंग्रेज इनको गिरमिटिया मजदूर कहते थे।

मेहनत के दम पर हासिल किया मुकाम

आज भी गुयाना समेत कई देशों में गिरमिटिया मजदूरों के परिवारों के लोग रहते हैं लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर विदेशों में अपने लिए एक बहुत महत्वपूर्ण जगह बनाई है। इस बात का गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली से अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता क्योंकि उनके पूर्वज भी गिरमिटिया मजदूर ही थे। अंग्रेजों द्वारा गिरमिटिया मजदूरों पर बहुत जुल्म ढाया गया। अपने देश और परिवार से दूर रखकर इन लोगों से कड़ी मेहनत कराई जाती थी। अंग्रेजों ने 1917 में  गिरमिटिया व्यवस्था को खत्म कर दिया, लेकिन इस बात की सुध नहीं ली कि मजदूरों को वतन वापस भेजा जाए।