
ज्योतिष शास्त्र वैज्ञानिक है या अवैज्ञानिक विधा इसे समझने के लिए आजादी यानी भारत और पाकिस्तान के जन्म की तारीख से जुड़ी यह प्रामाणिक कहानी पढ़ना बहुत जरूरी है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। हमारी शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा ठीक मध्य रात्रि को नई दिल्ली में इंडिया गेट के प्रिसेंस पार्क पर फहराया गया। लेकिन, आजादी के लिए चुना गया15 अगस्त का दिन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर अशुभ था।कर्क राशि में पांच ग्रहों की सूर्य और शनि के साथ युति थी। चंद्रमा क्षीण था और राहु की वृषभ राशि में मौजूदगी थी, जो युद्ध और रक्तरंजित संघर्ष की स्थिति पैदा करने का संकेत दे रही थी। 15 अगस्त के दिन को लेकर विश्व विजय पंचांग के निर्माता प्रख्यात ज्योतिषी हरदेव शर्मा त्रिवेदी, और उज्जैन के ज्योतिषी सूर्य नारायण व्यास ने सलाह दी थी। उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद से आधी रात में ही ध्वजारोहण की बात कही थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इससे सहमत हो गए और आधी रात को ध्वजारोहण किया गया। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण बताए गए। 1. चंद्र का पुष्य नक्षत्र में प्रवेश, 2. अभिजीत मुहुर्त और 3. लग्न में वृषभ राशि का उदित होना। एक स्थिर लग्न भवन आदि की स्थापना के लिए अति शुभ माना गया है।
एम.एस. मेहता की पुस्तक मेदिनी ज्योतिष के अनुसार, लंदन के न्यूजपेपर द टाइम्स में मई 1988 में छपे एक लेख में दोनों ज्योतिषीयों की प्रशंसा करते हुए कहा था –This is how Indian astrologers saved the nation. (इस तरह भारतीय ज्योतिषी ने देश को बचाया)।वहीं, पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना मुहर्तू और ज्योतिष जैसी बातें नहीं मानते थे। उन्होंने आजादी के लिए 14 अगस्त 1947 का दिन चुना। पंडित व्यास ने आगाह भी किया था कि 14 अगस्त का दिन ठीक नहीं है। लग्न में मेष राशि यानी अस्थिर लग्न है। गुरु भी शत्रु स्थान पर है, जो देश को अस्थिर रखेगा। लेकिन वे नहीं माने और आज उस देश की हालत हम सभी के सामने है। वहां संपन्नता नहीं है और सरकार प्रशासन सब उल्टा-पुल्टा है।
ज्योतिष शास्त्र, तारों-नक्षत्रों और आकाशीय पिंडों की गति देखने और उनकी स्थिति का मानव जीवन पर प्रभाव के अध्ययन विषय है। दुनिया भर की सभ्यताएं विकास के साथ ही अपने-अपने तरीके से इसे समझने और जानने का प्रयास करती रही हैं, कभी समय की गणना के लिए तो कभी रास्तों की पहचान के लिए-हमेशा इंसान आकाश की तरफ देखता रहा।आजकल ज्योतिष और कुंडली की लोकप्रियता बहुत है। साथ ही सवाल उठता है कि लगभग 5हजार वर्षों से पूरी दुनिया के लिए यह शास्त्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इसके आलोचकों का मानना है कि ज्योतिष द्वारा निकाले गए परिणामों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
आगे बढ़ने से पहले एम.एस. मेहता की पुस्तक मेदिनी ज्योतिष में दर्ज एक अन्य उदाहरण भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का लेते हैं। प्रख्यात ज्योतिषीय और भारतीय विद्या भवन ज्योतिष संस्थान के संस्थापक श्रीके.एन. राव ने अगस्त 1990 में ही इस राजीव गांधी के हिंसात्मक अंत की भविष्यवाणी की थी। 21 मई 1991 को राजीव गांधी एक बम विस्फोट में शहीद हो गए थे। इस भविष्यवाणी पर द टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र ने टिप्पणी दी थी। ऐसे कई अन्य उदाहरण भी हैं। इसके बावजूद भारत के महान वैज्ञानिक सीवी रमन और भारत के पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम समेत दुनिया के कई जाने-माने वैज्ञानिकों ने ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान मानने से इनकार कर दिया। ज्योतिष शास्त्र के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी पूरी तरह खारिज कर दिया। पश्चिमी विद्वान शॉन कार्लसन, दार्शनिक एडवर्ड डब्ल्यू. जेम्स सहित कई वैज्ञानिकों ने ज्योतिष को तर्कहीन बताया। इसके पीछे उनका तर्क है कि यह प्राचीन शास्त्र वैज्ञानिक पद्धित के प्रमुख सिद्धांतों पर खरा नहीं है। सत्यापन, परीक्षण और दोहराव के मामले में यह सही साबित नहीं होता है। ज्योतिष शास्त्र की कुछ भविष्यवाणियों को सटीक स्वीकार करते हुए महज इसे मनोवैज्ञानिक और मेन्टलिज़्म या मांइडरीडिंग के तौर पर देखा जाता है।
अब सवाल उठता है कि ज्योतिष शास्त्र क्या सही मायनों में विज्ञान है या इसे महज विश्वास का विषय कहना ही उचित होगा। इसे समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि सैद्धांतिक तौर पर विज्ञान किसे कहते हैं? एनसीआरटी के विज्ञान की एक पुस्तक के अनुसार, प्राकृतिक परिघटनाओं के सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध प्रेक्षणों, सुसंगत तर्कों एवं प्रयोगों से प्राप्त ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है। लंदन स्थित साइंस काउंसिल की विज्ञान की सैद्धांतिक और आधुनिक परिभाषा के मुताबिक, विज्ञान साक्ष्य पर आधारित एक व्यवस्थित पद्धति का पालन करते हुए प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के ज्ञान और समझ की खोज और अनुप्रयोग है। वैज्ञानिक पद्धति में उद्देश्यपूर्ण अवलोकन, साक्ष्य, पुनरावृत्ति, आलोचनात्मक विश्लेषण, सत्यापन और परीक्षण इत्यादि कसौटियां शामिल हैं।
गणित है ज्योतिष की आत्मा
वैदिक गणित के सिद्धांत और व्यवहारिकता से पूरी दुनिया को आश्चर्य में डालने वाले गोवर्धन मठपुरी के 143वें शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थजी महाराज ने विज्ञान की गुत्थी को बड़ी सहजता से सुलझाने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि गणित और अगणित के बीच समस्त ब्रह्मांड का ज्ञान निहित है। प्रकृति के जिन रहस्यों को हम समझ सके हैं वह गणित है और जिन्हें समझना अभी शेष है वह सभी अगणित। यानी पूरी मानव सभ्यता की यात्रा गणित और अगणित के बीच स्थित है।
इसी गणित की आत्मा ज्योतिष शास्त्र में निहित है। गणित और ज्योतिष एक-दूसरे के सिर्फ पूरक न होकर एक-दूसरे पर्याय हैं, इसलिए इसे वेदों का पांचवां अंग नेत्र की संज्ञा दी गई। गणित की विभिन्न शाखाएं भी ज्योतिष शास्त्र की जटिलताओं की गणना के कारण ही विकसित हुई हैं। इनमें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, ज्यामिती, त्रिकोणमिति, शांकव गणित और ज्योतिष गणित अथवा सिद्धांत इत्यादि शामिल हैं।
सृष्टि और ब्रह्मांड की शून्य से उत्पत्ति के ज्योतिष सिद्धांत की समस्त गणनाएं ज्योतिष ही नहीं गणित और उसकी विभिन्न शाखाओं का आधार हैं। इसे हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। महीने में दो बार जब चंद्रमा सूरज के ठीक सामने होता है यानी एक सीधी रेखा में होता है। उस दिन पृथ्वी, सूरज और चंद्रमा के बीच एक समकोण बनता है। इससे नापा जा सकता था कि पृथ्वी और सूरज के बीच बनने वाला कोण 1 डिग्री का सातवां हिस्सा है। त्रिकोणमिति के साइन प्रणाली से पता चलता है कि 1 डिग्री के सातवें भाग का अर्थ है 1 का अनुपात 400 है। इसका अभिप्राय है कि पृथ्वी से सूरज की दूरी चंद्रमा के मुकाबले 400 गुणा अधिक है। पांचवीं शताब्दी में आर्यभट्टीय सिद्धांत देने वाले महान गणितज्ञ ने पृथ्वी की परिधि 39,968 किलोमीटर बताई थी, जबकि आधुनिक विज्ञान ने इसे 40,075 किलोमीटर बताया है। आर्यभट्ट का मान वास्तविक मान से केवल 0.2% छोटा है। अपनी धुरी पर पृथ्वी के घूमने की उन्होंने सटीक गणना की। आर्यभट्ट ने इसकी गणना 23 घंटे, 56 मिनट और 4.1 सेकंड के रूप में की। आधुनिक गणना से इसके मान में महज 0.09 सेकेंड का अंतर है। सदियों पहले उन्होंने सूर्य और चंद्र ग्रहण का जो सिद्धांत प्रस्तुत किया, आधुनिक वैज्ञानिक उसकी वास्तविकता को स्वीकार करते हैं।
सातवीं शताब्दी में ज्योतिष ज्ञान परंपरा से जुड़े भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य की गणना का नया सिद्धांत दिया। इससे 1 से 9 तक संख्या तक सीमित गणित को अनंत की गणना का एक नया तरीका मिल गया। इसके बाद 12वीं शताब्दी में भास्कराचार्य और उनके आगे के आने वाले गणितज्ञों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शून्य के विभाजन और ऋणात्मक संख्याओं के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जो आधुनिक विज्ञान का आधार है। इसके साथ ही यह साबित हो गया कि किसी संख्या की सूक्ष्म से सूक्ष्म गणना सिर्फ अंक गणना का साधन नहीं है। वह अदृश्य या मूर्त इकाइयां हैं जो मानवीय कल्पनाओं से परे हैं।
शून्य और अनंत की गणना ने कैसे भविष्य में झांकने का सिद्धांत दिया, जिसे हम ज्योतिष शास्त्र के नाम से जानते हैं। इसके लिए हमें थोड़ा और लगभग 5000 वर्ष पहले वैदिक काल में चलना होगा। जब जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले समय को मापने के लिए विभिन्न गणना के सिद्धांत तैयार हो रहे थे। इन सिद्धांतों की आवश्यकता इंसानी जीवन को सिर्फ सुव्यवस्थित करना नहीं था बल्कि मानव सभ्यता के अस्तित्व को संजोए रखने की चुनौती थी। समय के आधुनिक मापक वर्ष, महीने, सप्ताह, घंटा, मिनट और सेकेंड की आधारशिला वहीं रखी गई। वैदिक काल में समय की सुव्यवस्थित और किसी कार्य विशेष के लिए सटीक समय की जानकारी के लिए पंचांग अस्तित्व में आया। इसे ज्योतिष शास्त्र की रीढ़ माना गया। तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग इन पांच भागों से बने होने के कारण इसे पंचांग नाम दिया गया। अपनी जीवन यात्रा में इसमें कई बदलाव आए लेकिन इसकी मौलिकता में कोई अंतर नहीं आया। पूरी दुनिया में समान रूप से स्वीकार किए जाने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर के नाम से जानते हैं। इसका आधार भी पंचांग है।
सबसे लोकप्रिय फलित ज्योतिष
अब बात ज्योतिष शास्त्र के सबसे लोकप्रिय विभाग फलित ज्योतिष की। पूरी दुनिया में 17वीं या 18वीं शताब्दी तक, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का अभ्यास साथ-साथ किया जाता था। भारत में खगोल विज्ञान गोल सिद्धांत या सिद्धांत ज्योतिष का पर्याय था। बाद में पश्चिमी शिक्षा में खगोल विज्ञान के स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाए जाने के कारण भारत में भी यह अलग विषय के रूप में स्थापित हो गया। लेकिन, वैदिक ज्योतिष अभी भी अपने मूल स्वरूप के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है।
ज्योतिष के सिद्धांत में खगोल पिंडों की गति और उन गति से प्रकट होने वाली ऊर्जा और तरंगों का समस्त स्थूल और सजीव जीवों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन फलित ज्योतिष कहलाता है। इन ऊर्जाओं का जीवों खासकर मनुष्यों पर पड़ने वाले असर के सूक्ष्म अध्ययन ही प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का आधार है, जो सभी चिकित्सा पद्धतियों की जननी है।
सवाल उठता है कि मनुष्य जब पैदा होता है तो आकाश में ग्रह पिंडों की स्थिति उसके भविष्य का निर्धारण कैसे कर देते हैं? इसका जवाब बेहद गूढ़ है। इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश की जा सकती है। परमाणु विस्फोट के बाद फैलने वाले रेडिएशन से इसे समझ जा सकता है। रेडिएशन में एक्स-रे और गामा किरणें पूरी सभ्यता का विनाश कर सकती हैं। चिकित्सा पद्धति में इस्तेमाल में लाए जाने वाला एक्स-रे 5 रोएंटगन से अधिक नहीं होता है, जो कि परमाणु विस्फोट के बाद 250 रोएंटगन वातावरण में फैल जाता है, जिसे ना तो देखा या महसूस किया जा सकता है। इससे पूरी सभ्यता नष्ट हो जाती है। रोएंटजन (आर) एक्स-रे और गामा किरणों के एक्सपोजर के लिए माप की एक इकाई है। इस तरह गामा किरणें मानव शरीर के डीएनए सिस्टम को ही पूरी तरह तहस-नहस कर देती है, जिससे कुछ घंटों में ही दर्दनाक मौत हो जाती है। प्रत्यक्ष तौर पर इसका असर 3 हजार वर्ष तक रहता है। परमाणु विस्फोट का यह सिद्धांत विज्ञान द्वारा प्रमाणित है। हमारे अंतरिक्ष में भी ऐसे ही कई परमाणु एवं अन्य विस्फोट प्रति माइक्रो सेकेंड हो रहे हैं, लेकिन उसकी गुत्थी सुलझाना अभी तक संभव नहीं हो सका है ना ही इसके प्रभाव का आकालन करने की कोई मशीनरी अभी तक विकसित हो सकी है। इसे अभी भी गणित के मौलिक सिद्धांतों द्वारा ही समझा जा सकता है।
अभी तक विज्ञान दो तरह तरंगों की खोज कर पाया है, जिसमें अनुदैर्ध्य तरंगें और अनुप्रस्थ तरंगें शामिल हैं। जीवन को प्रभावित करने वाली ग्रह पिंडों की ऊर्जा और तरंगों के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव को फलित ज्योतिष सिद्ध करता आ रहा है। ज्योतिष शास्त्र ने इन्हीं सिद्धांतों को अध्ययन की सुविधा के लिए दृष्टांत के रूप प्रस्तुत किया। सही मायनों में ज्योतिष शास्त्र लौकिक विज्ञान के सिद्धांतों से परेय सिद्धांतों पर आधारित परा ज्ञान है। गणित से अगणित की यात्रा की तरह ही ज्योतिष शास्त्र की अभी अनंत यात्रा है। फलित ज्योतिष बांचने वाले गलत हो सकते हैं, उनकी गणनाएं त्रुटिपूर्ण हो सकती हैं। दक्षता और पूर्ण अभ्यास के अभाव में किसी व्यक्ति के बारे में बताई गई बात गलत हो सकती है लेकिन इससे ज्योतिष कतई अवैज्ञानिक नहीं हो जाता। किसी से साइकिल चलाते नहीं बन रही है तो यह साइकिल के आविष्कारक की गलती नहीं है, उसे चलाने वाले की दक्षता में कमी ही कहा जाएगा।
—