अश्विन मास में दान का मिलता है पुण्य फल

हर तीन वर्ष (Every three years) में करीब 1 मास के बराबर हो ही जाता है। इसे पाटने के लिए हर तीन वर्ष में चंद्र मास (Lunar Month) अस्तित्व में आता है। इसके अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास (Ashwin Mas) का नाम दिया गया है।

ashwini 2020

नई दिल्ली। यह हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर पर आता है। ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया, यह अधिकमास (Adhikmas) सूर्य वर्ष (Sun Year) और चंद्र वर्ष (Lunar Year) के बीच के अंतर का संतुलन बनाए रखने के लिए आता है। भारतीय गणना पद्धति (Indian calculation method) के अनुसार. प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं अगर चंद्र वर्ष की बात करें तो यह 354 दिनों का माना जाता है। इन दोनों वर्षों के बीच करीब 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में करीब 1 मास के बराबर हो ही जाता है। इसे पाटने के लिए हर तीन वर्ष में चंद्र मास अस्तित्व में आता है। इसके अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

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क्या होता है अधिकमास

हमारे सभी व्रत, आस्था मेले, मुहूर्त ग्रहों पर आधारित होते हैं। सूर्य चंद्र के द्वारा हिंदी माह का निर्माण होता है। 30 तिथियों का माह होता है, जिसमें 15 दिनों बाद अमावस्या और 15 दिनों बाद बाद पूर्णिमा होती है। इन माह में पूरे वर्ष ये तिथियां घटती बढ़ती रहती हैं। तीन वर्षों के उपरांत ये घटी-बढ़ी तिथियां एक पूरे माह का निर्माण करती हैं। विशेष यह होता है की इस माह में संक्रांति नहीं होती। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

क्यों पड़ा पुरुषोत्तम मास नाम

कहा जाता है कि अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु हैं। पुरुषोत्तम इनका ही एक नाम है। अत: अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इसे लेकर एक कथा भी प्रचलित है। मान्यता के मुताबिक, भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि, अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मास पुरुषोत्तम मास बन गया।

मान्यता है कि इस मास में किए गए दान का विशेष फल प्राप्त होता है। दान करने से देवतागण प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं। अश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है। इसमें पितरों तर्पण और पिंडदान किया जाता है। अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि के पर्व में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।

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अश्विनी मास में मन को शुद्ध करें

अश्विनी मास में व्यक्ति को अपने मन को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में धर्म के महत्व को समझाना चाहिए और हर प्रकार की बुराई और गलत आदतों का त्याग करना चाहिए। यह मास जीवन से नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है। धर्म के कार्यों को करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति के जीवन को बाधाओं से मुक्ति करती है। इस माह में प्रथम तीर्थ दर्शन, राज्याभिषेक, गृहप्रवेश, गृहारंभ, शादी-विवाह, जलाशयारामदेव प्रतिष्ठा आदि कार्य वर्जित होते हैं। पुरुषोत्तम मास भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है।

साथ ही अधिक मास के 33 देवताओं की पूजा का भी बड़ा महत्व होता है। इस माह के दौरान विष्णु, जिष्णु, महाविष्णु, हरि, कृष्ण, भधोक्षज, केशव, माधव, राम, अच्युत, पुरुषोत्तम, गोविंद, वामन, श्रीश, श्रीकांत, नारायण, मधुरिपु, अनिरुद्ध, त्रीविक्रम, वासुदेव, यगत्योनि, अनन्त, विश्वाक्षिभूणम्, शेषशायिन, संकर्षण, प्रद्युम्न, दैत्यारि, विश्वतोमुख, जनार्दन, धरावास, दामोदर, मघार्दन एवं श्रीपति जी की पूजा से बड़ा लाभ होता है।

इन कार्यो को नहीं करना चाहिए

अश्विनी मास में पड़ने वाले अधिक मास में तीर्थ यात्रा, नये कार्य का शुभारंभ, गृहप्रवेश, विवाह संबंधी कार्य नहीं किए जाते हैं। अधिकमास में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह मास भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मास में भगवान विष्णु की कथा सुननी चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। इस विशेष मन्त्र का जाप देगा पुरुषोत्तम मास में देगा अक्षय पुण्य फल।

गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

अधिक मास में इनका करें दान

पक्ष के अनुसार

कृष्ण पक्ष का दान

(1) घी से भरा चांदी का दीपक (2) सोना या कांसे का पात्र (3) कच्चे चने (4) खारेक (5) गुड़, तुवर दाल (6) लाल चंदन (7) कर्पूर, केवड़े की अगरबत्ती (8) केसर (9) कस्तूरी (10) गोरोचन (11) शंख (12) गरूड़ घंटी (13) मोती या मोती की माला (14) हीरा या पन्ना का नग

शुक्ल पक्ष का दान

(1) माल पुआ (2) खीर भरा पात्र (3) दही (4) सूती वस्त्र (5) रेशमी वस्त्र (6) ऊनी वस्त्र (7) घी (8) तिल गुड़ (9) चावल (10) गेहूं (11) दूध (12) कच्ची खिचड़ी (13 ) शक्कर व शहद (14) तांबे का पात्र (15) चांदी का नन्दीगण।

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