
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत है। यानी जीवन में हार और जीत का फैसला मन की स्थिति पर निर्भर है। मन से मजबूत होने पर व्यक्ति से ताकतवर इस धरा पर कोई नहीं होता है। लेकिन, मन के बीमार या कमजोर होने पर सिर्फ पीड़ा ही नहीं, अंधविश्वास के नाम पर कई यातनाएं भी सहनी पड़ती हैं। ज्योतिष शास्त्र भूत-प्रेत, टोना-टोटका और काला जादू को महज मनोरोग मानता है। ऐसी अवस्था में डॉक्टर से विधिवत इलाज की सलाह दी जाती है। अवसाद, उन्माद, प्रमाद, नशे की लत, सिजोफ्रेनिया और चिंता विकार (अत्यधिक चिंता, डर या घबराहट) आदि मनोरोगों अथवा मनोविकारों को किसी जातक की जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति, दृष्टि और युति से साफ तौर पर देखा और समझा जा सकता है। इसे हम कुछ फिल्मों की कहानियों से समझते हैं। वैसे, ज्योतिष में मन का कारक चंद्रमा को बोला गया है। पश्चिम में भी चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। अंग्रेजी में मानसिक रूप से बीमार को लूनाटिक कहते हैं। लूनाटिक शब्द लैटिन के लूना शब्द से बना है जिसका अर्थ चंद्रमा होता है।
फिल्मी कहानियों से समझिए मनोरोग की अवस्थाएं
वर्ष 2007 में रिलीज हुई फिल्म भूल भुलैया की कहानी को लेते हैं। इसे हॉरर-कॉमेडी के रूप में प्रचारित किया गया था, लेकिन यह मानसिक स्वास्थ्य के बारे में फिल्म की श्रेणी में आ गई। पूरी फिल्म में, यह संकेत दिया गया था कि राधा के चरित्र में कुछ गड़बड़ है, जिसके बारे में माना जाता है कि उस पर एक भूत, मंजुलिका की आत्मा की छाया है। भूत-मंत्र और मनोचिकित्सकों द्वारा खुद को भगवान बताने के तत्वों ने मदद नहीं की। जबकि निष्कर्ष भूत की कहानी को पूरी तरह से खारिज कर देता है। किसी जातक के जीवन में ऐसी स्थिति के लिए कई योग जिम्मेदार हो सकते हैं।
1. शास्त्रीय पुस्तक जातक पारिजात के अनुसार, लग्न, चतुर्थ अथवा दशम भाव में बृहस्पति तथा केंद्र स्थान में मांदि (गुलिक) स्थित हो तो जातक लोकोत्तर आत्माओं आदि के दर्शनजनित व्याधि में पीड़ित होता है।
2. चर राशि का लग्न शुभ ग्रहों से युक्त, शनि सातवें भाव में और चंद्रमा पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक भूत-प्रेत जैसे मनोरोगों से पीड़ित हो सकता है।
3. एक अन्य पुस्तक सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार, लग्न में राहु के साथ शनि हो तो भूत-प्रेत या पिशाच की पीड़ा सहनी पड़ सकती है।
4. लग्न में स्थित केतु पर अनेक पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो भी पिशाच दिखने जैसे मनोरोग का सामना करना पड़ सकता है।
वर्ष 1970 में संजीव कुमार की फिल्म खिलौना रिलीज हुई। कहानी आघात या सदमा लगने से दिमागी तौर पर बीमार विजयकमल की है। उसके पिता ठाकुर सूरज सिंह, चांद (मुमताज) को अपने बेटे की पत्नी बनाकर उसे स्वस्थ बनाने का काम सौंपते हैं, लेकिन विजय की मां और उसका भाई, चांद के नेक इरादों को कभी समझ नहीं पाते हैं और हमेशा उसे प्रताड़ित करते रहते हैं। वर्ष 1983 में श्रीदेवी की पहली हिंदी फिल्म सदमा भी इसी मनोरोग पर आधारित है। वास्तविक जीवन में इससे मिलते जुलते मनोरोग के लिए कई योग बतलाए गए हैं। इसमें कुछ योग इस प्रकार हैं।
1. जातक ग्रंथ जातक तत्वम् के अनुसार, यदि चंद्रमा लग्न में हो और शनि और मंगल देखते हों तो जातक हीनबुद्धि का होता है। इस ग्रंथ में उपर्युक्त योग से उत्पन्न रोग को हीनबुद्धि कहा गया है, जो मानसिक विकृतियों के लिए सामान्यतः प्रयोग किया जाता है।
2. यदि जन्मकुंडली में पंचमेश पापयुक्त हो तो जातक विस्मयशील बुद्धि होता है। विस्मयशील बुद्धि मानसिक विकृतियों का सामानार्थक शब्द है।
3. जातक तत्वम् के अनुसार, किसी जातक की कुंडली में शनि और सूर्य यदि चंद्रमा को देखते हो तो मनोविकार की समस्या पैदा हो सकती है।
4. तृतीय, षष्ठ, अष्टम या 12वें भाव में बुध पापयुक्त हो तो जातक मनोरोगी हो सकता है। इसके अलावा भी कई योग हैं जिससे जातक को मनोरोग का सामना करना पड़ सकता है।
ये फिल्में पूरी तरह काल्पनिक हैं, लेकिन इनकी विषयवस्तु से हमारा समाज अछूता नहीं है। ये बीमारियां अलग-अलग ग्रहों की दृष्टि, युति और स्थिति के संयोग से जीवन के किसी निश्चित कालखंड में परिलक्षित हो सकती हैं। कभी-कभी पूरे जीवन भी जातकों को इन बीमारियों के साथ जीना पड़ सकता है। जन्मजात मानसिक रूप से विकलांग या अक्षमता पूरी तरह से प्रारब्ध या भाग्य से जुड़ा मामला है। बेहतर चिकित्सीय देखभाल से स्थिति में कुछ सुधार जरूर हो सकता है, लेकिन मनोविकार पूर्ण रूप से खत्म नहीं होता। इसके लिए जन्मकुंडली में बहुत सारे कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। लेकिन, मन और मन से संबंधित विकारों अथवा मनोरोगों की बात करें तो यह समय के साथ ठीक भी हो सकता है।
तांत्रिक क्रियाओं से भी पीड़ित होने के होते हैं योग
मारण-सम्मोहन, उच्चाटन, स्तंभन एवं वशीकरण आदि तांत्रिक क्रियाओं से होने वाली परेशानियां भी मनोविकार हैं। इन्हें अभिचार कहते हैं। जातक ग्रंथ जातक पारिजात के अनुसार, शाप या अभिचारजन्य रोगों के योग जन्मकुंडली में देखे और समझे जा सकते हैं।
1. यदि लग्न मंगल से दृष्ट हो और षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) दशम, सप्तम भाव अथवा लग्न में स्थित हो तो जातक मंत्राभिचारजन्य व्याधि से पीड़ित होता है।
2. मंगल यदि लग्नेश के साथ लग्न या केंद्र (1,4,7,10) भाव में स्थित हो और छठे भाव का स्वामी लग्न में हो तो जातक मंत्राभिचारजन्य रोग से पीड़ित हो सकता है।
3. जातक पारिजात के अन्य श्लोक में बताया गया है कि चर राशि (मेष, कर्क, तुला और मकर) के लग्न को यदि षष्ठ भाव का स्वामी देखता हो अथवा मंगल एकादश भाव में स्थित हो या नवम भाव में स्थिर राशि और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि हो तो शत्रुओं द्वारा किए गए अभिचार जन्य परेशानियों से ग्रस्त होना पड़ सकता है।
अन्य मनोरोग के कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योग
ज्योतिष के ग्रंथों में मनोरोगों से संबंधित कई योगों पर चर्चा मिलती है। ये योग प्रायः कारण की विवेचना न करके ग्रह योगों से उत्पन्न फलों के बारे में विशेष तौर जोर देते हैं। इन योगों को शब्दशः किसी कुंडली पर लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन ये योग रोग के कारण और रोग होने की आशंका पर दिशा ज्ञान जरूर देते हैं। उदाहरण कुंडली से इस हम समझने का प्रयास करते है।
ज्योतिष ग्रंथ जातक तत्वम् के अनुसार, मनोरोगों से संबधित कुछ योग इस प्रकार हैं:-
1. किसी जातक की कुंडली में बृहस्पति लग्न में और मंगल सप्तम भाव में हो अथवा विपरीत क्रम में हो।
2. शनि लग्न में हो और मंगल पांचवें, सातवें अथवा नौवें भाव में हो।
3. शनि लग्न में हो और सूर्य द्वादश भाव में मंगल या चंद्रमा त्रिकोण में हो।
4. शनि 12वें भाव में कमजोर या क्षीण चंद्रमा के साथ हो।
5. शनि और द्वितीयेश की युति सूर्य या मंगल के साथ हो।
6. शनि या मंगल की होरा में जन्म हो, सूर्य चंद्रमा की युति 1,5, 9 भावों में हो और बृहस्पति केंद्र भाव में हो।
7. राहु और चंद्रमा लग्न में हों और पाप ग्रह त्रिकोण में हों। यह योग पिशाच-ग्रस्त योग के नाम से भी जाना जाता है। यह बिना किसी कारण भय को दर्शाता है।
उपर्युक्त योगों को डॉ. केएस चरक की पुस्तक चिकित्सा ज्योषित के मौलिक तत्व के एक उदाहरण कुंडली से समझने की कोशिश करते हैं। एक महिला जातक की जन्म कुंडली, जिसमें सिंह राशि लग्न में है। यह महिला सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है। उसकी झगड़ालू प्रवृत्ति है और कभी-कभी अवसाद और आत्मघाती दौरे पड़ते हैं। कर्क राशि का चंद्रमा 12वें भाव में वक्री अष्टमेश बृहस्पति के साथ है और षष्ठेश शनि से दृष्ट है। बुध छठे भाव में वक्री अष्टमेश और द्वादशेश से दृष्ट है। बुद्धि और चिंतन का पांचवां भाव सूर्य और राहु के बैठने से और शनि की दृष्टि से अत्यधिक पीड़ित है। नवांश कुंडली में चंद्रमा और बुध अष्टमेश मंगल और शनि से पीड़ित है। बृहस्पति राहु-केतु अक्ष पर है। चंद्रमा और बुध की युति अच्छी नहीं है क्योंकि बुध षष्ठेश है। अष्टेमश पंचम भाव है। पंचमेश और अष्टम भाव में मंगल और शनि से दृष्ट है। शुक्र-केतु की महादशा में स्थिति खराब हो गई। जब सूर्य की महादशा आई तो स्थिति गंभीर हो गई।
मन-मस्तिष्क और बुद्धि के कारकों का अद्भुत ज्योतिष सिद्धांत
मन, मस्तिष्क और बुद्धि के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले चंद्रमा, बृहस्पति और बुध से संबंधित पौराणिक कथाओं के अंतर्संबंध से पता चलता है कि तीनों ग्रह की अपनी स्वतंत्र सत्ता होने के बावजूद कैसे वह किसी व्यक्ति विशेष के पूरे व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के प्रति चंद्रमा आकर्षित हो गए। इसके बाद उन्होंने तारा का अपहरण कर लिया। इन दोनों के संयोग से जो संतान पैदा हुई वह आगे चलकर बुध ग्रह बने। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपहृत पत्नी से अवैध रूप से जन्म लेने के कारण बृहस्पति ने बुध का परित्याग कर दिया। इसके बाद दैत्य गुरु शुक्र के आश्रम में बुध का पालन पोषण हुआ। ज्योतिष के इस दृष्टांत को जब हम सिद्धांत के तौर समझने का प्रयास करते हैं तो इन ग्रहों के अद्भुत संयोग की जानकारी सामने आती है। ज्योतिष के अनुसार बुध चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं जबकि बृहस्पति बुध को शत्रु मानते हैं। चंद्रमा के लिए बुध मित्र हैं और बृहस्पति सम हैं। बृहस्पति भी चंद्रमा को सम (न तो शत्रु ना ही मित्र) मानते हैं। अब किसी जातक के मानसिक स्वास्थ्य को इन तीन ग्रहों के अलग-अलग कारतत्व के फलित सिद्धांत को समझा जा सकता है।
चंद्रमा – चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। इसका कमजोर या बली होना किसी व्यक्ति की मानसिक अवस्था को दर्शाता है। यह दूसरों के प्रति अनुराग, भावनाएं, भावनात्मक प्रतिक्रियाएं, मानसिक योग्यता आदि का सूचक है। चंद्रमा का कोई शत्रु नहीं है।
बृहस्पति – देव गुरु बृहस्पति को सबसे शुभ ग्रह माना गया है। बृहस्पति विचार की परिपक्वता और बुद्धिमत्ता के कारक हैं। बृहस्पति के लिए बुध शत्रु हैं जबकि बुध के लिए बृहस्पति मित्र हैं। इससे स्पष्ट होता है कि तर्क की कठोर सीमाएं बुद्धिमत्ता के प्रयोग को रोक सकती है।
बुध – यह नाड़ी मंडल, शिक्षा, ज्ञान शक्ति औऱ व्यवहार की समझ और जटिलताओं को दर्शाता है। इसका शत्रु चंद्रमा है। सैद्धांतिक तौर पर देखे तो यह ज्ञात होता है कि मन का विवेक और ज्ञान से गहरा-प्रतियोगी संबंध है।
फलित ज्योतिष के अनुसार, किसी कुंडली में जब चंद्रमा, बुध और बृहस्पति बली हों और अच्छी स्थिति में हो तो जातक मानसिक तौर पर मजबूत होता है। जब इन तीनों ग्रहों पर पाप प्रभाव हो, दुर्बल या पीड़ित हो तो मानसिक बीमारी, नाड़ियों में दुर्बलता, भ्रमित बुद्धि और विवेकपूर्ण निर्णय लेने और उन पर अमल करने में अयोग्यता होती है।
मन के कारक चंद्रमा दिल और दिमाग दोनों के लिए बेहद जरूरी
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा एक उपग्रह है लेकिन ज्योषित में चंद्रमा को भी ग्रह माना गया है। यह पृथ्वी से लगभग 3,84,000 किलोमीटर दूर है। चंद्रमा अपनी धुरी पर परिक्रमा करने के साथ-साथ पृथ्वी की परिक्रमा भी करता है। यह 27 दिन 7 घंटे और 11.6 सेकेंड में अपनी ही धुरी से पश्चिम से पूर्व परिभ्रमण करता है। चंद्रमा पृथ्वी की एक पूरी परिक्रमा 29.5 दिन में करता है। इस तरह 354 दिनों का एक चंद्रवर्ष होता है। कर्क राशि का स्वामी माना जाने वाला चंद्रमा वृषभ राशि में (0-3 अंश तक) उच्च का होता है।
24 घंटे दिन-रात की परिकल्पना चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के बिना संभव नहीं है। यह सिर्फ समुद्र में उठने वाले ज्वार भाटा के लिए ही नहीं बल्कि हमारे मन और मनोदशा के लिए जिम्मेदार है। चंद्रमा मन और दर्शिता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें अंतर्ज्ञान, ज्ञान और धारणा शामिल है। चंद्रमा को प्रसन्नता, संतोष और मानसिक शांति से भी जोड़ा जाता है। चंद्रमा मां का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह मातृत्व, पालन-पोषण और देखभाल से भी जुड़ा है। चंद्रमा प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का भी कारक है। चंद्रमा को भावनाओं, संवेदनाओं और संवेदनशीलता का ग्रह माना जाता है। यह व्यक्ति की भावनाओं को व्यक्त करने और दूसरों से जुड़ने की क्षमता को प्रभावित करता है। ऐसे में चंद्रमा की मजबूत स्थिति यह सिद्ध करती है कि मनुष्य वाह्य कारकों से तभी प्रभावित या परेशान हो सकता है जब वह मन से कमजोर है इसलिए मन को मजबूत रखिए और सदैव प्रसन्न रहिए।