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Chandra Dosh: जानें और समझें अपनी कुण्डली में चंद्र दोष के बारे में, क्या होगा इसका प्रभाव एवं निवारण के क्या हैं उपाय?

Chandra Dosh: चंद्रमा (Chandrama) जातक के मन का स्वामी होता है। जन्म कुंडली (Janam Kundali) में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं।

चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता है। मन की कल्पनाशीलता चन्द्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रह हैं, उन सभी का व्यक्ति के जीवन पर विशेष और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मानव ने जब से काल के चिंतन का आरंभ किया, उसी समय से चन्द्रमा उसके लिए अपने घटने-बढ़ने की प्रक्रिया के कारण प्रकृति का अखंड और निर्विवाद पंचांग रहा है। संसार के सभी धर्मों के धर्मग्रंथों में प्रत्येक काल में चन्द्रमा की ति‍थियों के अनुसार ही धार्मिक विधि रचने का उल्लेख पाया जाता है।

व्यक्ति के चरित्र के सूक्ष्म रूप, विशिष्ट गुण, उसकी प्रतिभा, भावनाओं, प्रवृत्तियों, योग्यताओं तथा भावनात्मक प्रवृत्ति आदि का ज्ञान जन्मकाल के ग्रहों की स्थिति से मालूम हो जाता है।

चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं।

चन्द्रमा मन हैं और इस मन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो चन्द्रमा उन ग्रहों या नक्षत्रों का प्रभाव देने लगता है। पृथ्वी और नक्षत्रों के बीच जब चन्द्रमा आते हैं तो नक्षत्रों के विकिरण चन्द्रमा पर भारी प्रभाव डालते हैं, इसलिए चन्द्रमा का आचरण भिन्न-भिन्न होता है। चन्द्रमा जीव जगत में रस की सृष्टि करते हैं।

चन्द्रमा को इतना महत्व दिया गया है कि जन्म लग्न के समान ही चन्द्र लग्न को माना गया है। नीच भंग राजयोग में चन्द्र लग्न का बड़ा महत्व है। श्रेष्ठ योजनाकारी के, राजपुरुषों के चन्द्रमा बहुत बली होना आवश्यक है। दूसरी तरफ अपराधियों, पागल व्यक्ति, विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति, कुटिल मन व्यक्ति, भावुक व्यक्ति इन सबका क्षीण या पापयुत चंद्र होता है। चन्द्रमा के साथ केतु जैसे ग्रह मन को क्लांत रखते हैं।

इनमें ध्यान से देखें तो चन्द्रबल को लेकर अधिकांश योग आदि गढ़े गए हैं। चन्द्रबल विचार का एक अन्य फार्मूला निकाला गया है।

उसके अनुसार जन्म का चन्द्रमा हो तो लक्ष्मी प्राप्ति, द्वितीय हो तो मन संतोष, तृतीय चंद्रमा हो तो धन-संपत्ति प्रदायक, चौथा चन्द्रमा हो तो कलह, पांचवां हो तो ज्ञानवृद्धि, छठा हो तो धनप्रदायक, सातवाँ हो तो राज-सम्मान, 8वां हो तो मृत्यु भय, 9वें चन्द्रमा से धनलाभ, 10वें से मनोकामना पूर्ति, 11वें चन्द्रमा को लेकर जो वर्जनाएँ की गई हैं वे अतिमहत्वपूर्ण हैं।

दिशाशूल, चन्द्रमा का गोचर, चन्द्रमा का शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में होना, चन्द्रमा का ग्रहों से वेध, भद्रा, पंचक, विवाहकाल में नाड़ी दोष, भकूट दोष आदि बड़े महत्व के हैं। अमावस्या आदि का विचार सबसे अधिक करना चाहिए। किसी मुहूर्त को साधते समय कम से कम इतना अवश्य करें कि मुहूर्त लग्न के किसी अच्छे भाव में चन्द्रमा स्थित हों तो कार्यसिद्धि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

प्रश्न लग्न के मामलों में विशेष रूप से पाया है कि चन्द्रमा पापग्रहों से विद्ध हो या चन्द्रमा पापकर्तरि में हो तो प्रश्न का उत्तर नकारात्मक आता है। यदि किसी ऐसे जातक के लिए प्रश्न किया जाए जो घर से भागा हो, जिसका अपहरण किया गया हो या बीमार चल रहा हो तो अवश्य जातक की जीवनरक्षा की चिंता करनी पड़ती है।

चंद्रमा मन का कारक है। चंद्रमा चतुर्थ भाव का भी कारक है। यह माता का सुख,भवन और आवास का सुख, वाहन का सुख और अन्य सुख-सुविधाएं देने वाला होता है। चंद्रमा रोहिणी हस्त और श्रवण नक्षत्र का स्वामी है। यदि किसी की जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव में अथवा चतुर्थ भाव का कारक चंद्रमा अपनी उच्च स्थिति में हो या बली हो तो वह जातक अपने जीवन में सभी सुख-सुविधाओं को प्राप्त करता है। चंद्रमा मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रों में शुभ होता है और बलवान होता है।

चंद्रमा के मित्र ग्रह सूर्य और बुध हैं। मंगल, गुरु, शुक्र और शनि सम ग्रह हैं। राहु और केतु चंद्रमा के शत्रु ग्रह हैं। चंद्रमा की दिशा वायव्य है। चंद्रमा वैश्य वर्ण के अंतर्गत आते हैं। सत्वगुणी हैं। मुख्य रस नमकीन है। पूर्ण चंद्रमा सौम्य ग्रह की श्रेणी में आता है जबकि क्षीण चंद्रमा पाप ग्रह की श्रेणी में आता है।

कृष्ण पक्ष की एकादशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि तक चंद्रमा क्षीण होते हैं। चंद्र वृष राशि में 3 से 27 अंश तक मूल त्रिकोण में होता है। चंद्रमा स्त्री ग्रह है। चंद्रमा के देवता मां गौरी है। काल पुरुष के अनुसार चंद्रमा मन का कारक है और गले और हृदय पर आधिपत्य रखता है।

यदि गोचर में चंद्रमा उच्च राशि, मूल त्रिकोण वृषभ राशि में हो तो उस समय गले और हृदय संबंधी ऑपरेशन से बचना चाहिए। चंद्रमा अपने भाव से सप्तम भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि रखता है। चंद्रमा की अपनी राशि कर्क होती है। उच्च राशि वृषभ है और नीच राशि वृश्चिक होती है। यह तीव्र गति का ग्रह है। एक राशि को पार करने में सवा 2 दिन लगते हैं। खगोल शास्त्र के अनुसार पृथ्वी के सबसे निकट होने कारण मानव प्रवृत्तियों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

जिन व्यक्तियों का चंद्रमा नीच का है या कम अंशों का है तो पूर्ण चंद्रमा के कारण अर्थात पूर्णिमा के आसपास ऐसे लोगों को अधिक क्रोध आता है। बीपी बढ़ने की शिकायत रहती है। कुछ लोग अपना धैर्य खो देते हैं।

यदि आपकी जन्म कुंडली में चंद्रमा की दशा खराब है और इसके कारण आपके जीवन में जानें कितनी कठिनाईयां आ रही है। तो इसके लिए आप चंद उपाय कर इन मुश्किलों से छुटकारा पा सकते हैं।

चंद्र दोष से जाने अंजाने में हर कोई किसी न किसी रुप में पीड़ित हो ही जाता है, और पीड़ित होने के बाद से ही जातक के जीवन में उथल-पुथल मचने लगती है। वह आशंकित रहने लगता है, भयभीत हो जाता है, लगातार हो रही हानियों से तनावग्रस्त हो जाता है यहां तक पारिवारिक जीवन भी असंतोष से भरने लगता है। कई बार तो जीवन साथी के साथ मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि अलगाव की स्थिति पैदा हो जाती है। इसलिये चंद्र दोष से बचाव के उपाय जरुर करने चाहिए।

पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार कुंडली में ग्रहों की कमजोर स्थिति कई तरह से परेशानी पैदा कर सकती है। अगर आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर स्थिति में है तो यह भी आपकी परेशानी का सबब बन सकता है। चंद्रमा को संतुलित करने या उसकी स्थिति को सुधारने के लिए आप रंगों से लेकर वास्तुशास्त्र तक से जुड़े कारगर उपाय आजमा सकते हैं। जो इस प्रकार हैं…

1. आप पश्चिम दिशा में झाड़ू या कोई भी गंदगी चीज जैसे कि पोंछा, डस्टर आदि ना रखें। साथ ही घर के उत्तर-पश्चिमी कोने में गुलाबी रंग का बल्ब लगाएं और दिन ढलते ही इसे जला देना चाहिए।

2. अगर आपका चंद्रमा कमजोर है और उसे ताकतवर बनाना है, तो कम से कम 10 रत्ती का मोती धारण कर सकते हैं, लेकिन इससे पहले किसी जानकार को अपनी कुण्डली दिखा लें।

3. अगर आप मोती नहीं खरीद सकते हैं, तो मोती के उपरत्न मून स्टोन को भी पहन सकते हैं। इसे भी आप चांदी की अंगूठी में डालकर पहन सकते है। याफिर इसे आप चांदी का लॉकेट बनवाकर गले में पहन सकते हैं।

मन और मस्तिष्क संबंधी देता है परेशानी:–

ऋग्वेद में कहा गया है कि चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।

अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। मन का स्वामी होने के कारण यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मन और मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं। चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है। इसकी राशि कर्क होती हैं ।

पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार भारत में प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये जाते हैं। एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाए तो चन्द्र लग्न मन है। बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना देह के मन का कोई स्थान नहीं है। देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है इसीलिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सूर्य लग्न का अपना महत्व है। वह आत्मा की स्थिति को दर्शाता है। मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।

ग्रहों में सबसे तेज है गति:—-

चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है। परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है। शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग एक वर्ष, राहू लगभग 14 महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन। चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है। विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है। चन्द्र जिस नक्षत्र के स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है।

निरंतर बदलती है ग्रहों की स्थिति:—

ग्रहों की स्थिति निरंतर हर समय बदलती रहती है। ग्रहों की बदलती स्थिति का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है। जैसे शनि चलत में चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और दुसरे भावों में हानिकारक होता है। बृहस्पति चलत में चन्द्र लग्न से दूसरे, पांचवे, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों में इसका फल शुभ नहीं होता। इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है। कई योग ऐसे होते हैं तो चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।

सांस की नाडी और खून का कारक है चंद्र:—

चन्द्र सांस की नाड़ी और शरीर में खून का कारक है। चन्द्र की अशुभ स्थिति से व्यक्ति को दमा भी हो सकता है। दमे के लिए वास्तव में वायु की तीनों राशियां मिथुन, तुला और कुम्भ इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, राहु और केतु का चन्द्र संपर्क, बुध और चन्द्र की स्थिति यह सब देखने के पश्चात ही निर्णय लिया जा सकता है।

चन्द्र माता का कारक है। चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं। इनकी स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है। चन्द्र जब धनी बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।

अशुभ चंद्र देता है ये परेशानी:–

किसी भी कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं ।
इसके प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार-बार आते रहते हैं।

जिस प्रकार सूर्य का प्रभाव आत्मा पर पूरा पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चन्द्रमा का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। खगोलवेत्ता ज्योतिष काल से यह मानते आ रहे हैं कि ग्रह व उपग्रह मानव जीवन पर पल-पल पर प्रभाव डालते हैं। जगत की भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा का प्रभाव होता है…

इन पर राज करता है चंद्र:–

जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है।

जाने क्या है चंद्रमा के प्रभाव आपकी कुंडली में:-

कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और उस पर दूसरे ग्रहों के प्रभावों के आधार पर इस बात की गणना करना बहुत आसान हो जाता है कि मनुष्य की मानसिक स्थिति कैसी रहेगी। अपने ज्योतिषीय अनुभव में कई बार यह देखा है कि कुंडली में चंद्र का उच्च या नीच होना व्यक्ति के स्वा्भाव और स्वपरूप में साफ दिखाई देता है।

कुछ जन्म कुंडलियां जिनमें चंद्रमा के पीडित या नीच होने पर जातक को कई परेशानियां हो रही थीं-

1- सिर दर्द व मस्तिष्क पीडा- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में अगर चंद्र 11, 12, 1,2 भाव में नीच का हो और पाप प्रभाव में हो, या सूर्य अथवा राहु के साथ हो तो मस्तिष्क पीडा रहती हैं।

2- डिप्रेशन या तनाव- चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो । शनि का प्रभाव दीर्घ अवधी तक फल देने वाला माना जाता हैं, तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता हैं जो धीरे धीरे करके मारता हैं। शनि नशो का कारक होता हैं, इन दोनों ग्रहो का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम डिप्रेशन व तनाव उत्पन्न करता हैं।

3- भय व घबराहट- चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो, लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रह या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता हैं। चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित का प्रतिनिधित्व करता हैं, ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता हैं ।

4- मिर्गी के दौरे-चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो तो मिर्गी के दौरे पडते हैं।

5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक तथा लग्नेश पीडित हो या पापी ग्रहो के प्रभाव में हो, चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या मुर्छा के योग बनते हैं। इस योग में मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीडित होते हैं । चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ हैं व्यक्ति को मानसिक रोग होना। लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया हैं परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानी दोगुणे प्रभाव से होती हैं ।

6- आत्महत्या के प्रयास – अष्टमेश व लग्नेश वक्री या पाप प्रभाव में हो तथा चंद्र के तृतिय स्थान में होने से व्यक्ति बार-बार अपने को हानि पहुंचाने की कोशिश करता हैं । या फिर तृतियेश व लग्नेश शत्रु ग्रह हो, अष्टम स्थान में चंद अष्टथमेश के साथ होतो जन्म कुंडली में आत्म हत्या के योग बनते हैं । कुछ ऐसे ही योग हिटलर की पत्रिका में भी थे जिनकी वजह से उसने आत्मदाह किया।