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जानें शिवलिंग के हैं कितने नाम, जानिए क्या है इसका महत्व

शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे कि: प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग इत्यादि! यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं। ऊर्जा और पदार्थ। इसमें से हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है जबकि आत्मा एक ऊर्जा है।

नई दिल्ली। शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे कि: प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग इत्यादि! यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं। ऊर्जा और पदार्थ। इसमें से हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है जबकि आत्मा एक ऊर्जा है। ठीक इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। क्योंकि ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बोला जाए तो हम कह सकते हैं कि शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि हमारे ब्रह्मांड की आकृति है और अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की भाषा में बोला जाए तो शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है। अर्थात शिवलिंग हमें बताता है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं।

शिवलिंग की पूजा के अनुसार ही है आइंसटीन का सूत्र-

शिवलिंग की पूजा को ठीक से समझने के लिए आप जरा आइंसटीन का वो सूत्र याद करें जिसके आधार पर उसने परमाणु बम बनाया था। क्योंकि उस सूत्र ने ही परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी ये सर्वविदित है। और परमाणु बम का वो सूत्र था e / c = m c {e=mc^2} अब ध्यान दें कि ये सूत्र एक सिद्धांत है जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है, अर्थात पदार्थ और उर्जा दो अलग-अलग चीज नहीं बल्कि, एक ही चीज हैं परन्तु वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं।

जिस बात को आइंसटीन ने अभी बताया उस रहस्य को हमारे ऋषियों ने हजारों-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था। यह सर्वविदित है कि हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है, परन्तु उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है बल्कि, उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें वही बता रहे हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है।

shiv ratri

लगभग 137 खरब वर्ष पुराना सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में उपलब्ध होता है और भावार्थ बदल जाने के कारण इसे किसी अन्य भाषा में पूर्णतया अनुवाद नही किया जा सकता। कम से कम अंग्रेजी जैसी कमजोर भाषा में तो बिल्कुल नहीं।

इसके लिए एक बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि आज “गूगल ट्रांसलेटर” में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है परन्तु संस्कृत का नहीं क्योंकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है। कुछ समय पहले जब नासा के वैज्ञानिकों ने अपने उपग्रह आकाश में भेजे और उनसे रेडार के द्वारा इंग्लिश में संपर्क करने की कोशिश की, जो वाक्य उन्होंने पृथ्वी से आकाश में भेजे उपग्रह के प्रोग्राम में वो सब उल्टा हो गया और उन सबका उच्चारण ही बदल गया।

इसी तरह वैज्ञानिक ने 100 से ज्यादा भाषाओँ का प्रयोग किया लेकिन सभी में यही परेशानी हुई कि वाक्यों का अर्थ ही बदल जा रहा था। बाद में वैज्ञानिकों नें संस्कृत भाषा का उपयोग किया तो सारे वाक्य सही अर्थ में उपग्रह को मिले और फिर सही से सभी वाक्यों का सही संपर्क मिल सका। आप में से कोई भी नासा वाली बात का सबूत गूगल पर सर्च कर सकते हैं।

जानिए क्या है शिवलिंग का महत्व-

शिवलिंग का प्रकृति में बनना हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते हैं जब कि किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो, उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशो दिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ ऊपर व नीचे ) होता है। जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है उसी प्रकार बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं। दरअसल सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके।

हमारे पुराणों में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है। इस तरह सामान्य भाषा में कहा जाए तो उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है।

शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है जैसे कि हमारी आकाश गंगा, हमारी पड़ोसी अन्य आकाश गंगाएं (पांच-सात-दस नहीं अनंत है) ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना, संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह (जो अभी तक रहस्य बने हए है और, हजारों की संख्या में है तथा, जिनमें से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है) समुद्री तूफान, मानव डीएनए, परमाणु की संरचना  इत्यादि! इसीलिए तो शिव को शाश्वत एवं अनादी, अनत निरंतर भी कहा जाता है! याद रखो सही ज्ञान ही आधुनिक युग का सबसे बड़ा हथियार है।