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नाग पंचमी 2020 : साल में सिर्फ एक बार खुलता है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर, जानें इसकी मान्यता

तीर्थ नगरी उज्जैन में ज्योतिर्लिंग भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के प्रांगण में प्रथम तल पर भगवान शिव नागचंद्रेश्वर के स्वरूप में विराजमान है। इनके दर्शन वर्ष में केवल श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पचंमी तिथि जिसे नागपंचमी के रूप में मनाया जाता हैं, उसी दिन होते है।

नई दिल्ली। तीर्थ नगरी उज्जैन में ज्योतिर्लिंग भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के प्रांगण में प्रथम तल पर भगवान शिव नागचंद्रेश्वर के स्वरूप में विराजमान है। इनके दर्शन वर्ष में केवल श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जिसे नागपंचमी के रूप में मनाया जाता हैं, उसी दिन होते है। इस स्वरूप में भगवान शिव, माता पार्वती के साथ शेषनाग पर विराजमान है, साथ मे भगवान श्री गणेश, कार्तिक, नंदी व सिंह भी है।

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नागचंद्रेश्वर जी के दर्शन मध्यरात्रि से अगले दिवस की मध्यरात्रि तक निरन्तर दर्शन होते है,सर्वप्रथम महानिर्वाणी अखाड़े के साथ प्रशासन के द्वारा भगवान का पूजन प्रारम्भ होकर श्रद्धालुओं के लिए कपाट खोले जाते है, जहां पूरे 24 घंटे में लाखों श्रद्धालु बाबा महाकाल व नागचंद्रेश्वर जी के दर्शन करते है।

मान्यता अनुसार नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर जी के दर्शन करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है,इनके दर्शनों से मनुष्य की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है,सर्प हत्या व सर्प भय से मुक्ति प्राप्त होकर मृत्यु उपरांत मनुष्य को भगवान शिव की शरण प्राप्त होती है।
इस वर्ष 2020 में कॅरोना महामारी के कारण भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को मंदिर में दर्शन की अनुमति नही है,अतः हम सभी अपने घर मे रह कर प्रभु से सभी की रक्षा व कल्याण की कामना करें।

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नाग पंचमी स्पेशल: इन बातों का ध्यान रखेंगे तो सफल होगी नाग देवता की पूजा

आज 25 जुलाई, 2020 को हैं नाग पंचमी का त्यौहार

जैसा की नाम से ही साफ है कि नाग पंचमी का त्यौहार नागों को समर्पित होता है। यह खास त्यौहार हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाये जाने की परंपरा है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि इस वर्ष देशभर में नाग पंचमी 25 जुलाई 2020, शनिवार के दिन मनाई जाएगी। मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा इत्यादि की जाती है। नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ अन्य सभी जीवों के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए, उनके संवर्धन के लिए और साथ ही साथ उनके संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरणा देता है। प्रमुख नागों का उल्लेख देवी भागवत में किया गया है। कहा जाता है कि पुराने समय में ऋषि-मुनियों ने नागों की पूजा इत्यादि करने के लिए अनेकों व्रत-पूजन का विधान बताया है। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और फिर उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है।

यह रहेगा नाग पंचमी पर पूजन का शुभ मुहूर्त 25 जुलाई 2020 को

पूजा मुहूर्त – 05:38:42 से 08:22:11 तक ( 25 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि प्रारंभ – 14:35:53 (24 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि समाप्ति – 12:03:42 (25 जुलाई 2020)

जानिए कैसे करें नाग पंचमी पर पूजन

नाग पंचमी के दिन अपने घर के दरवाजे के दोनों तरफ गोबर से सांप बनाएं। इस सांप/नाग को दही, दूर्वा, गंध, कुशा, अक्षत, फूल, मोदक और मालपुआ आदि समर्पित करें। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और व्रत करें, ऐसा करने से घर में सांपो का भय नहीं रहता है। (हालांकि अगर ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन नहीं करा सकते हैं तो, उनके नाम से दान-दक्षिणा आदि निकाल दें और फिर उसे किसी मंदिर में दान कर दें) इसके अलावा इस दिन नागों को दूध से स्नान कराने, उनकी पूजा करने से भी सांप के डर से मुक्ति मिलती है। नागों की पूजा में हल्दी का उपयोग अवश्य किया जाना चाहिए। अनंत, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कंबल, कर्कोटक, अश्व, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालीय तथा तक्षक ये सभी नागों के नाम हैं, इस दिन ये सभी नाम हल्दी-चन्दन के लेप से दिवार पर लिखें।

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इस दिन की पूजा में इस मंत्र का जाप अवश्य करें

‘अनन्तं वासकिं शेषं पद्मकम्बलमेव च।तथा कर्कोटकं नागं नागमश्वतरं तथा।। धृतराष्ट्रंं शंखपालं कालाख्यं तक्षकं तथा। पिंगलञ्च महानागं प्रणमामि मुहुर्मुरिति।।’

मान्यता के अनुसार नाग पंचमी के दिन लोहे की कड़ाही में कोई भी चीज बनाना वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस दिन नैवेद्यार्थ भक्ति द्वारा गेहूं और दूध का पायस बनाकर भुना चना, धान का लावा, भुना हुआ जौ, नागों को दें।

नाग पंचमी और भगवान श्री कृष्ण

नाग पंचमी का एक किस्सा भगवान कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है जिसके अनुसार बताते हैं कि, एक बार भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे जब गलती से उनकी गेंद नदी में जा गिरी। ये वही नदी थी जिसमें कालिया नाग रहा करता था। गेंद नदी में जाती देख भगवान कृष्ण भी नदी में जा कूदे। नदी में कालिया नाग ने भगवान कृष्ण पर हमला कर दिया लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे जो सबक सिखाया उसके बाद कालिया नाग ने ना ही सिर्फ भगवान कृष्ण से मांफी मांगी बल्कि इस बात का वचन भी दिया कि वो गांव में किसी को भी नुक्सान नहीं पहुंचाएगा। कालिया नाग पर श्री कृष्ण की विजय को भी नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

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जानिए नाग पूजा का महत्व

पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि एक बार नागलोक मातृ-शाप से जलने लग पड़ा था। इस पीड़ा से छुटकारा दिलाने के लिए नागों को नाग पंचमी के दिन गाय के दूध से स्नान कराया गया। गाय का दूध शीतल होने की वजह से अग्नि से मिली पीड़ा को शांत करता है और साथ-ही-साथ ऐसा करने वाले भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी प्रदान करता है। जो इंसान नाग पंचमी के दिन सच्चे मन से व्रत और पूजा करता है, उस इंसान के लिए नागों में श्रेष्ठ शेषनाग और वासुकि दोनों, भगवान हरि और भगवान शिव से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हैं। श्रेष्ठ नागों की इस प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और भगवान विष्णु उस इंसान की समस्त कामनाओं को अवश्य पूरा करते हैं।

नाग पंचमी के दिन भूल से भी ना करें ये काम

नागपंचमी के दिन जमीन की खुदाई करना वर्जित माना गया है। नाग पूजा के लिये हमेशा नागदेव की तस्वीर या फिर मिट्टी या धातू से बनी प्रतिमा की ही पूजा करें। असली नागों की पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए यह जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें। इसके अलावा आप चाहें तो इस दिन दूध, धान, खील और दूब चढ़ावे के रूप मे अर्पित कर सकते हैं। इसके अलावा इस दिन अगर मुमकिन हो तो सपेरों से नाग खरीद लें और उन्हें मुक्त कर दें।

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नाग पंचमी पर सांपों को नहीं पिलाना चाहिए दूध : जान लें वजह

नाग पंचमी के दिन कई जगहों पर देखा जाता है कि लोग सपेरों द्वारा पकड़े गए सांपों की पूजा करते हैं जो कि सरासर गलत है। ये गलत क्यों हैं आइये हम आपको बताते हैं। दरअसल सपेरे जिन नागों को पकड़ते है वो उनके दांत तोड़ देते हैं। दांत ना होने की वजह से सांप शिकार नहीं कर सकते हैं। जिससे वो भूखे रहने को मजबूर हो जाते हैं। इसके बाद भूखा सांप चढ़ाये गए दूध को पानी समझकर पीने लगता है। लेकिन इस दूध की वजह से सांप के मुंह में बने घाव (दांत तोड़े जाने से बना घाव) और ज़्यादा ख़राब होने लगते हैं और अंत में सांप की मौत हो जाती है। यहाँ जो बात समझने वाली है वो यह कि सांप कोई शाकाहारी जीव नहीं है। वो दूध नहीं पीता है। ऐसे में लोगों को समझदारी दिखाते हुए असली और ज़िंदा साँपों की नहीं बल्कि उनकी प्रतिमा की ही पूजा करनी चाहिए।