शिवलिंग के बारे में जो भी मन में है भ्रांतियां, इसे पढ़िए जरूर हो जाएंगी दूर

शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया गया कुछ लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते है, छोटे-छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं, इन लोगों को संस्कृत का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है।

नई दिल्ली। शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया गया कुछ लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते है, छोटे-छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं, इन लोगों को संस्कृत का वास्तविक ज्ञान नहीं होता है। आज के समय में कुछ अज्ञानी किस्म के प्राणियों ने परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर पता नहीं क्या-क्या और कपोल कल्पित अवधारणाएं फैला रखी हैं। क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग का मतलब क्या होता है और, शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है?

दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और कुछ खास किस्म के धर्म विरोधी लोगों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है! खैर जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है जैसे कि नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र इत्यादि। उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ: सम्पति भी हो सकता है और मतलब भी। ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।

shivling

आइये इसका सही अर्थ जानें और समझें

1.) त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५

अर्थात रूप, रस, गंध और स्पर्श ये लक्षण आकाश में नहीं है किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है।

2.) निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकश स्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २०

अर्थात जिसमें प्रवेश करना व् निकलना होता है वह आकाश का लिंग है अर्थात ये आकाश के गुण है।

3.) अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि। -वै०। अ ० २। आ ० २ । सू ० ६

अर्थात जिसमें अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते हैं, इसे काल कहते हैं, और ये  काल के लिंग है।

4.) इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०

अर्थात जिसमें पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व नीचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते हैं।

5.) इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञाना न्यात्मनो लिंगमिति – न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १

अर्थात जिसमें (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है। इसीलिए शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारण इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है एवं धरती उसका पीठ या आधार है और, ब्रह्माण्ड का हर चीज अनन्त शून्य से पैदा होकर अंततः उसी में विलिन होने के कारण इसे लिंग कहा है।

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क्या होता हैं लिंग

लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है, जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत में शिशिन कहा जाता है।

शिवलिंग=शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक

पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक।

अब यदि जो लोग पुरुष लिंग शब्द का अर्थ मनुष्य के जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते हैं..तो वे बतायें ”स्त्री लिंग” के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है।

फिर ”शिवलिंग” का सही अर्थ क्या है?

शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।

शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है, ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ..दरअसल ये गलतफहमी संस्कृत भाषा के शब्दों के अन्य भाषाई सीमाओं के कारण यथानुरूप भावान्तरण न कर शब्दानुवाद करने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी त्रुटिपूर्ण व्याख्या से उत्पन्न हुआ है।

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है: ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार प्रकृति पदार्थ और शिव शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं।

ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। (The universe is a sign of Shiva Lingam)

शिवलिंग भगवान शिव की देवी शक्ति का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है।

अब बात करते हैं योनि शब्द की

मनुष्य योनि ”पशुयोनी” पेड़-पौधों की योनि” पत्थरयोनि”

योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव, प्रकटीकरण अर्थ होता है… जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है… कुछ धर्म में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है… इसीलिए उन धर्मों के अनुयायी योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है जबकी हिंदू धर्म में 84 लाख योनी यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) हैं।

मनुष्य योनी =पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है… अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है।

तो कुल मिलकर अर्थ ये है कि, लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है, शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक। दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं। हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके। लेकिन कुछ विकृत मानसिकता वालों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इसके पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया।