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Sheetala Ashtami 2022: होली के बाद क्यों मनाई जाती है शीतला अष्टमी?, जानें इस पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

Sheetala Ashtami 2022: इसमें माता शीतला को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। ये व्रत खास तौर पर छोटे बच्चों के लिए रखा जाता है, इसमें उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना की जाती है।

नई दिल्ली। देशभर में तमाम तरह के व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। अगर ढ़ंग से देखा जाए तो लगभग हर महीने ही कोई न कोई तिथि ऐसी पड़ती है जब उसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उन्हीं में से एक त्योहार आने वाला है ‘शीतला अष्टमी’। इसे ‘बसोड़ा’ के नाम से भी जाना जाता है। बसोड़ा हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल ये व्रत शुक्रवार यानी 25 मार्च को पड़ रहा है। इस दिन शीतला माता की पूजा करने की प्रथा है। इसमें माता शीतला को बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। ये व्रत खास तौर पर छोटे बच्चों के लिए रखा जाता है, इसमें उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना की जाती है। इस पर्व को मनाने का खास उद्देश्य होली के बाद मौसम में होने वाले बदलावों के प्रति लोगों को जागरुक करना है। इसके लिए शीतला अष्टमी के व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने शीतला माता को सृष्टि को स्वस्थ और आरोग्य रखने की जिम्मेदारी दी है, यही वजह है कि इस दिन माता शीतला का व्रत रख कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इसके अलावा गर्मी और रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी शीतला माता की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कब है शीतला अष्टमी का पर्व?, उसका मुहूर्त, और इसका महत्व…

शीतला अष्टमी की तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी यानी 24 मार्च को देर रात 12 बजकर 09 मिनट पर आरंभ होगी और 25 मार्च को रात 10 बजकर 04 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। उदयातिथि के अनुसार शीतला अष्टमी व्रत या बसोड़ा 25 मार्च को पड़ रहा है। वैसे भी शुक्रवार का दिन शीतला माता को समर्पित है और शीतला अष्टमी या बसोड़ा भी शुक्रवार को ही पड़ रही है। यही वजह है कि इस बार की शीतला अष्टमी बहुत ही फलदायी है। इसकी पूजा का शुभ मुहूर्त 25 मार्च को सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शाम 06 बजकर 35 मिनट तक है।

शीतला माता का स्वरुप

आरोग्य प्रदान करने वाली शीतला माता लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं। माता शीतला अपनी चार भुजाओं में नीम के पत्ते, कलश, सूप और झाड़ू धारण करती हैं। नीम के पत्ते, कलश, सूप और झाड़ू स्वच्छता के प्रतीक माने जाते है। उनकी सवारी गर्दभ (गधा) है।

शीतला अष्टमी व्रत का महत्व

त्वचा रोग से पीड़ित व्यक्ति को खास तौर पर शीतला अष्टमी का व्रत रखना चाहिए। इससे उस व्यक्ति के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्य भी सेहतमंद रहते हैं।