
नई दिल्ली। आज से नवरात्रि की शुरूआत हो रही है। देश भर के मंदिरों की भव्य सजावट हो चुकी है। आज पूरे विधि-विधान से मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। नवरात्रि नौ दिनों तक चलता है। इस दौरान पूरे नौ दिनों तक मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। आज माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की वंदना की जाएगी। ऐसी मान्यता है कि पूरे विधि-विधान से माता की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। तो आइए इस पावन अवसर पर आपको बताते हैं कि मां शैलपुत्री कौन थीं साथ ही बताएंगे कि इस व्रत में पूजा करने की विधि क्या है?
कौन थीं मां शैलपुत्री?
कहा जाता है कि मां शैलपुत्री माता पार्वती का ही एक अवतार हैं। उनका जन्म भी पर्वतराज हिमालय के यहां हुआ था। यही कारण है कि मां शैलपुत्री को ‘शैलसुता’ के नाम से भी जाना जाता है। शैलपुत्री माता अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, जिससे वो पापियों का नाश करती हैं। उनके बाएं हाथ में कमल विराजमान है, जो ज्ञान और शांति का प्रतीक माना जाता है।
देवी शैलपुत्री की पूजा-विधि
1.सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2.इसके बाद पूजा-स्थल को स्वच्छ कर उस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें।
3.इस चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
4.अब इस कपड़े पर केसर चंदन से ‘शं’ लिखकर मनोकामना पूर्ति के लिए गुटिका रख दें।
5.इसके बाद यहां माता की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
6.मां शैलपुत्री को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है इसलिए उन्हें सफेद रंग का घी से बना भोग लगाएं।
7.तत्पश्चात हाथों में लाल फूल ले लें।
8.’ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ऊँ शैलपुत्री देव्यै नम:’ का जाप करते हुए फूल मां के चरणों में समर्पित कर दें।
9.इसके बाद कथा का पाठ करें।
10.अंत में माता की आरती करें और मां को प्रणाम कर क्षमा याचना करें।
देवी शैलपुत्री का स्त्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणाभ्यम्।। त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।। सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्।। चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन। मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्।
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