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मोदी सरकार के एक कदम से बड़ी आसानी से बेनकाब हो गए संविधान और देश की बहुसंख्यक आबादी के विरोधी

कांग्रेस द्वारा वक्फ बोर्ड को इतने अधिकार दे दिए गए थे कि कुछ समय पहले वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी बेट द्वारका और तमिलनाडु के एक 1500 साल पुराने मणेंडियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर और उसके पास के गांव की 369 एकड़ जमीन पर अपना दावा कर दिया था।

जब 8 अगस्त को लोकसभा में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक प्रस्तुत किया तो हमेशा की तरह कांग्रेस और साथी राजनीतिक दलों ने हंगामा किया। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने इसे संविधान से मिली महजबी स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। तृणमूल कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी समेत तमाम दलों ने भी विपक्ष के सुर में सुर मिलाया। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती आई कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश करने के लिए वक्फ अधिनियम 1995 में और 2013 में बदलाव कर वक्फ को इतनी शक्ति दे दी थी कि वक्फ किसी भी संपत्ति पर दावा ठोक देता था। संविधान की दुहाई देने वाली कांग्रेस यह बताए कि किस संवैधानिक अधिकार के अनुसार उसने वक्फ बोर्ड को इतनी शक्तियां प्रदान की थीं।

मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती आई कांग्रेस सरकार ने शुरू से ही वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दी हुई थीं। 2013 में वक्फ बोर्ड को कांग्रेस ने और ताकतवर बना दिया था। कांग्रेस ने वक्फ को कितनी ताकत दे रखी थी इसके कुछ उदाहरण:
— वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 के अनुसार कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड में अर्जी लगातार अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है, यदि किसी कारणवश वह संपत्ति बोर्ड में पंजीकृत नहीं हो पाती तो 50 साल बाद स्वत: ही वह वक्फ की संपत्ति हो जाती है। इस नियम के चलते सरकारी जगहों पर अवैध तरीके से बनीं सैकड़ों अवैध मजारें और मस्जिदें वक्फ की संपत्ति हो जाती थीं।
— इस धारा में यह भी प्रावधान है कि वक्फ को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है। जो प्रस्तावित विधेयक लाया गया उसमें इस धारा को खत्म करने की बात कही गई है।
— अभी तक वक्फ अधिनियम की धारा 89 के अनुसार वक्फ बोर्ड के खिलाफ कोई भी दावा करने से पहले 60 दिन पहले नोटिस जरूरी है। जबकि बाकी किसी के लिए यह कानून नहीं है। हिंदू मठों और ट्रस्टों को भी यह अधिकार नहीं है।
— 2013 में वक्फ में कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश करने के लिए धारा 104 बी और जोड़ दी कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ की संपत्ति पर कब्जा किया है जो वक्फ बोर्ड के दावे के बाद उस संपत्ति को छह महीने में वापस करना होगा। इसी की धारा 53 में प्रावधान है कि यदि वक्फ के नाम किसी जमीन पर कब्जा हो गया है तो जिलाधिकारी उसे 30 दिन के अंदर जमीन वापस दिलवाएगा, जबकि यदि वक्फ ने किसी संपत्ति पर दावा कर उस पर कब्जा ले लिया है तो उसे वापस लेना आसान नहीं है।

कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड को ताकत देकर ऐसा अजगर बना दिया था कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा ठोक देता था। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली कांग्रेस और तमाम साथी दल अभी भी वक्फ संशोधन विधेयक को गलत ठहराने में जुटे हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव इसे सोची समझी साजिश बता रहे हैं। रामपुर से सपा सांसद मोहिबुल्ला कह रहे हैं ”मेरे मजहब के मुताबिक कोई चीज है तो उसे आप तय करेंगे या मैं तय करूंगा। यह हमारे मजहब में दखलंदाजी है। ऐसा हुआ तो कोई भी अल्पसंख्यक खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेगा। कहीं ऐसा न हो कि जनता सड़कों पर आ जाए।” डीएमके सांसद कनिमोझी इसे आर्टिकल 30 का उल्लंघन बोल रही हैं। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी बोल रहे हैं कि इस बिल के माध्यम से सरकार सिविल कोर्ट के अधिकारों का हनन करना चाहती है। इस बिल के माध्यम से सरकार हिंदू राष्ट्र की ओर बढ़ना चाह रही है।

वक्फ को लेकर सवाल उठाने वाले कथित सेकुलर दल सरकार के एक कदम से बड़ी आसानी से बेनकाब हो गए की वो संविधान, समानता और देश की बहुसंख्यक आबादी के विरोधी हैं। उन्हें बताना चाहिए कि वक्फ को पहले इतने अधिकार किस आधार पर दिए गए थे कि वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोक देता था, उस मामले की कहीं कोई सुनवाई भी नहीं हो पाती थी। वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत देने का ही नतीजा है कि देश में रेलवे और सेना के बाद वक्फ के पास सबसे अधिक जमीन है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।