
भारत की सांस्कृतिक अस्मिता, सामाजिक संतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अवैध घुसपैठियों का प्रमाणिक आंकड़ा बेहद आवश्यक है। राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण यानी एनआरसी यह सुनिश्चित करेगा कि देश की भूमि पर कौन वैध नागरिक है और कौन अवैध घुसपैठिया? इसके बिना किसी भी प्रकार की जनगणना, चाहे वह सामान्य हो या जातिगत कराए जाने का कोई अर्थ नहीं होगा। जातिगत जनगणना से पूर्व राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) कराए जाने की सबसे पहले जरूरत है। ऐसा इसलिए ताकि देश के वास्तविक नागरिकों और अवैध घुसपैठियों में अंतर स्पष्ट हो सके। बिना एनआरसी कराए जातिगत जनगणना कराए जाने का लाभ क्या? जाति केवल हिंदू समाज में नहीं बल्कि मुस्लिमों, सिखों, ईसाइयों समेत तमाम पंथ और मजहब में है। ऐसे में पहले यह पता लगाना अनिवार्य है कि कौन भारत में अवैध तरीके से घुसपैठ कर बस गया है।
एनआरसी केवल अवैध घुसपैठियों का आंकड़ा एकत्रित करना ही नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का दस्तावेज है कि भारत में केवल वही लोग रहें जिनके पूर्वजों ने देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक रचना में योगदान दिया है। पिछले कुछ दशकों में सीमावर्ती राज्यों समेत देश के अंदर स्थिति राज्यों में में पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, रोहिंग्या और अन्य अवैध घुसपैठिए बस गए हैं। इसके चलते वह हमारे संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि इन पर सिर्फ भारतीयों का हक है। बहुत से घुसपैठिए फर्जी दस्तावेजों के जरिए आधार कार्ड और वोटर कार्ड बनवाने में भी कामयाब हो गए हैं। इनके आधार पर वह हर सुविधा का लाभ उठा रहे हैं जो कि भारतीय नागरिकों को दी जाती है।
कथित वामपंथी परजीवी मानवता के नाम पर इनकी वकालत करते हैं। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों रोहिंग्याओं के बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार देने के लिए एक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की थी। इस पर न्यायालय ने फैसला भी दे दिया कि सिर्फ इसलिए किसी को भी स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पास भारत में रहने के वैध दस्तावेज नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में जब हमारे पास ही संसाधन सीमित हैं तो हम क्यों घुसपैठियों को उनका प्रयोग करने दें? यह एक बड़ा सवाल है।
भारत के असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, बिहार, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि दिल्ली में लाखों की संख्या में घुसपैठिए रह रहे हैं। ये अपराधिक वारदातों में भी संलिप्त हैं। सड़कों पर भीख मांगना, चोरी करना, हत्या जैसे जघन्य अपराध भी ये घुसपैठिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने एक ड्राइव चलाकर दिल्ली में 10 से ज्यादा बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया था। जो किन्नर बनकर सिग्नल पर भीख मांगते थे। किन्नर इसलिए बनते थे ताकि उन पर कोई शक न कर सके।
घुसपैठिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी दूषित करते रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते कुछ राजनीतिक दल इनके पक्ष में खड़े होते हैं और इन्हें पहचान पत्र, राशन कार्ड, आधार और यहां तक कि मतदान अधिकार भी दिला देते हैं। उदाहरण के तौर पर ममता बनर्जी ने स्पष्ट घोषणा कर रखी है कि उनके रहते पश्चिम बंगाल में किसी सूरत में एनआरसी लागू होने नहीं देंगी। यह तो तब है कि जबकि एनआरसी कराना या न कराना उनका क्षेत्राधिकार ही नहीं है। यह केंद्र सरकार का मामला है।
जब बिना एनआरसी के जातिगत जनगणना कराई जाएगी तो फिर इसमें अवैध घुसपैठिए भी गिने जाएंगे, ऐसे में जातिगत जनगणना कराया जाना कहाँ तक सफल होगा कहा नही जा सकता। वह तो चिल्ला—चिल्लाकर कहेंगे कि हम यहीं के नागरिक हैं। फिर उनके सपोर्ट में वामंपथी इकोसिस्टम सक्रिय हो जाएगा। मानवतावाद के नाम पर न्यायालय में याचिकाएं दायर की जाएंगी। वामपंथी कलमकार लेख लिखकर, सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाकर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में सबसे पहले केंद्र सरकार को देशभर में एनआरसी सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है ताकि अवैध घुसपैठियों का स्पष्ट आंकड़ा सबके सामने आ जाए। इसके बाद भले ही सरकार जातिगत जनगणना कराए।
बंगाल, असम, केरल आदि राज्यों में जनसांख्यिकी असंतुलन सांस्कृतिक विस्थापन और सामाजिक तनाव का कारण बना है। बंगाल में जिन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ी है, वहां से हिंदू समाज पलायन कर रहा है या कर चुका है। उसके कई जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और कई मुस्लिम बहुल होने के कगार पर हैं। यदि अवैध घुसपैठियों का पता नहीं लगाया गया और इसी तरह जनसांख्यिकी असंतुलन बढ़ता रहा तो कई राज्य ‘दूसरा कश्मीर’ बन सकते हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में बिना पहचान के रह रहे घुसपैठिए आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। इसके अलावा वे अन्य अपराधिक गतिविधियों जैसे मादक पदार्थों की तस्करी, जाली नोट मानव तस्करी और आतंकवाद जैसी गतिविधियों में भी संलिप्त हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि जातिगत जनगणना के पहले पूरे देश में एनआरसी लागू कर प्रत्येक व्यक्ति की नागरिकता की पुष्टि की जाए। इसलिए जातिगत जनगणना से पूर्व एनआरसी कराया जाना केंद्र सरकार का कर्तव्य है। इसे जितना जल्दी संभव हो पूरे देश में लागू करना आवश्यक है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।