जनवरी 2024 में 500 वर्षों के बाद अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। संपूर्ण विश्व की निगाहें इस दिन भारत की तरफ थी। हर भारतवासी के लिए यह गौरव का क्षण था। ऐसा ही एक और गौरवपूर्ण क्षण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमें 19 जून को देखने को मिला जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर उद्घाटन किया।
यह कैंपस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए परिसर का उद्घाटन करते हुए भारतीय शिक्षा का इतिहास और नालंदा विश्वविद्यालय की गौरव गाथा का भी उल्लेख किया।
उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की प्राचीन व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि ”हमें भारतीय परंपरा के अनुसार विश्वविद्यालय की प्राचीन व्यवस्था को फिर से मजबूती देनी है। पुरातन काल में इस विश्वविद्यालय में राष्ट्रीयता देखकर प्रवेश नहीं मिलता था, बल्कि श्रेष्ठता और ज्ञान के आधार पर यहां छात्र प्रवेश पाते थे। वर्तमान में यहां यहां नालंदा में 20 से ज्यादा देशों के छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। ये वसुधैव कुटुंबकम की भावना का कितना सुंदर प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय केवल भारत के ही अतीत का पुनर्जागरण नहीं है। इसमें विश्व के कितने ही देशों की विरासत जुड़ी हुई है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि ” नालंदा एक पहचान का नाम है, नालंदा एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य है, एक मंत्र है और गौरवगाथा है। नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि पुस्तकें भले ही जला दी जाएं, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं। नालंदा भारत की परंपरा और पहचान का जीवंत केंद्र हुआ करता था। शिक्षा को लेकर आज भी हम ऐसा ही मानते हैं। शिक्षा ही हमें गढ़ने का काम करती है, हमारी सोच बनाती है, विचारों को आकार प्रदान करने का काम भी शिक्षा की करती है।”
बता दें कि 800 साल पहले बख्तियार खिलजी द्वारा जलाए गए नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन भारतीय संस्कृति, भारतीय ज्ञान और भारतीय अस्मिता का पुनर्जागरण है। यह संपूर्ण विश्व के लिए एक संदेश की तरह है कि भारत फिर से विश्वगुरू के तौर पर स्थापित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हर कदम से यह बात साबित की है, फिर चाहे वह अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने की बात हो या फिर नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किए जाने की बात हो।
गुप्त शासनकाल में हुई थी स्थापना
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासनकाल के दौरान की गई थी। अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसे पहला आवासीय विश्वविद्यालय होने का दर्जा प्राप्त था। दुनियाभर से छात्र यहां शिक्षा लेने के लिए आते थे। प्रवेश परीक्षा के माध्यम से यहां पर छात्रों का चयन किया जाता था। यहां पर सभी विषयों की शिक्षा दी जाती थी, फिर चाहे वह आयुर्वेद हो भौतिक विज्ञान हो रसायन विज्ञान हो, वनस्पति विज्ञान को, इतिहास हो या फिर कला एवम संस्कृति हो। सभी विषयों के प्रख्यात आचार्य यहां शिक्षा देते थे।
तीन महीने तक जलती रही थीं पुस्तकें
800 साल पहले 1199 में बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला दिया था। कहते हैं कि वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगने पर भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू-धू करके जलती रहीं। बख्तियार ने अनेक धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं मार डाला था। जिस बख्तियार ने इस विश्वविद्यालय को जलाया था उसी बख्तियार के नाम पर बिहार में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन है, यह पुरानी सरकारों के कथित सेकुलरवाद के चलते ही है, नहीं तो अभी तक इस आततायी बख्तियार के नाम पर यहां रेलवे स्टेशन नहीं होता। आशा है जल्द ही इस स्टेशन का नाम भी बदल दिया जाएगा। बिहार जैसा राज्य जो विकास और शिक्षा के मामले में पिछड़ा हुआ माना जाता है वहां पर नालंदा विश्वविद्यालय की शुरुआत होना फिर से बिहार के गौरवकाल की शुरुआत है। इससे बिहार का गौरव बढ़ेगा और साथ ही साथ यहां विकास की नई संभावनाएं भी बढ़ेंगी।
अतीत के आईने में नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा की बात करें तो सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत भ्रमण करने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस विश्वविद्यालय की खूब प्रशंसा की है। नालंदा महाविद्यालय ने, विश्वविद्यालय के रूप में पांचवीं और छठी शताब्दी में विशेष कीर्ति अर्जित कर ली थी। नालंदा विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय में भारत के ही नहीं बल्कि सुदूर तिब्बत,चीन, मंगोलिया, तुर्की, कोरिया, जावा और लंका तक विद्यार्थी और विद्वान आते रहते थे। विश्वविद्यालय में सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। वहीं बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अध्ययन-अध्यापन विशेष रूप से होता था। विश्वविद्यालय में हस्तलिखित ग्रन्थों का एक विशाल पुस्तकालय जो तीन विशाल भवनों में,जिनमें से एक नौ खंडों (मंजिलों) का था, स्थापित था। आज के किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय को यह श्रेय प्राप्त नहीं है। एक बार फिर से नालंदा विश्वविद्यालय अपने गौरव को प्राप्त करने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह बदलते भारत की नई तस्वीर दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।