
यह एक स्थापित सत्य है कि मैक्स मूलर और मैकॉले ने भारतीय जनमानस से ‘भारतीयता’ को मिटाने का कुत्सित खेल रचा था। उनकी साजिश इतनी गहरी थी कि उसका दुष्प्रभाव आज तक भारतीयों के मानस पर है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित शिक्षा पद्धति के कारण भारतीय दर्शन को गहरा आघात पहुंचा है। भारतीयों के विचारों का गुरुत्वाकर्षण केंद्र आज भी ऑक्सफ़ोर्ड और हार्वर्ड ही हैं। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज भी भारत को भारत की दृष्टि से देखने वालों की संख्या बहुत कम है। पर उत्साहवर्धक बात यह है कि अब भारत को भारत की दृष्टि से देखने वालों की संख्या में धीमी गति से ही सही, लेकिन वृद्धि हो रही है।
ऐसा कहा जाता है कि विचार बनाए जिंदगी। इसलिए विचारों का सही या स्पष्ट होना अत्यंत आवश्यक है। विचार ही समस्या बनते हैं और विचार ही समाधान होते हैं। जैसे विचार होते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व हो जाता है। युगों से चलने वाली शास्त्रार्थ की परंपरा वैचारिक शुद्धिकरण या स्पष्टीकरण के लिए ही थी। लेकिन, आजकल शास्त्रार्थ की परंपरा विलुप्त हो गयी है और उसकी जगह डिबेट या बहस ने ले ली है। ऐसे में वैचारिक संवर्धन के लिए पुस्तकों का बड़ा महत्व है। दुनियाभर में पुस्तकों ने ही बबाल मचा रखा है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता।
अभी हाल ही में एक पुस्तक हाथ लगी और आदतानुसार जल्दी से पढ़ भी डाली । पुस्तक का नाम है ‘बनाएँ जीवन प्राणवान’, इसके लेखक हैं भारतीय दर्शन के सुप्रसिद्ध चिंतक और विचारक मुकुल कानिटकर। आई व्यू इंटरप्राइजेज द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में छोटे-छोटे 10 अध्याय हैं। मात्र 96 पृष्ठों की इस पुस्तिका में ‘गागर में सागर’ भरा गया है।
दो पृष्ठों का पुरोवाक या भूमिका पढ़ने के बाद पाठक इस पुस्तक को एक ही बार में पूरा पढ़ने के लिए विवश हो जाता है। इस बात का अनुमान पुरोवाक से उद्धृत इस अंश से हो जाएगा, “भारतीयता के रहस्य को समझना है तो बाहरी निरिक्षण और निष्कर्ष से काम नहीं चलेगा, जड़ को पकड़ना होगा। हिंदुत्व के मृत्युंजय होने का रहस्य है उसका दर्शन। सृष्टि के नियमों का ऋषियों ने न केवल साक्षात किया अपितु तर्कपूर्ण विश्लेषण से सिद्धांत में निरुपित किया। केवल यहीं तक नहीं रुके तो उस सिद्धांत को व्यवहार में गढ़कर कालजयी परंपराओं का निर्माण किया। दृष्टि, तत्त्व और कर्म की त्रिपुटी ने हिंदुत्व को सनातन बनाया।”
पुस्तक पढ़ने के बाद यह कहा जा सकता है कि हिन्दू जीवन मूल्यों को समर्पित यह पुस्तक भारतीयता अथवा भारतीय जीवन दर्शन अर्थात् हिंदुत्व के गूढ़ रहस्यों या यूँ कहें कि ‘सनातन दर्शन’ पर आधारित है। सनातन दर्शन प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित जीवनोपयोगी गूढ़ सूत्रों और सिद्धांतों को अपने आचरण में लागू करने पर आधारित है। इस पुस्तक में उसी प्राचीन जीवनोपयोगी ज्ञान का व्यवहारिक उपयोग कैसे किया जा सकता है, यह बहुत ही सरल तरीके से बताया गया है।
प्राण विद्या का अत्यंत सरल तरीके से परिचय कराने वाली यह पुस्तक मनुष्य जीवन में ‘प्राण की महत्ता’ और भारतीय जीवन दर्शन में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है। भारतीयता और प्राण के महत्त्व को समझाते हुए लेखक लिखते हैं, “प्राण ही सब भौतिक, मानसिक और भावनात्मक जगत के व्यवहार का मूल आधार है। उसे जाने बिना अर्थात् विस्तार और सूक्ष्मता से अनुभव किये बिना भारतीयता को समझा नहीं जा सकता।”
प्रथम अध्याय में साधना के तीन प्रकार अर्थात् मंत्र, यंत्र और तंत्र बहुत से सरल तरीके से प्रस्तुत किये गए हैं। प्राण वास्तव में होता क्या है? दूसरा अध्याय इस प्रश्न का विस्तार से और प्रमाणिक उत्तर देता है। तीसरा और चौथा अध्याय पाठक को रोमांचित कर देता है क्योंकि इसमें प्राण और विज्ञान का समावेश और समन्वय मिलता है। पांचवा अध्याय भी इसी दिशा में उदाहरण सहित लिखा गया एक उत्कृष्ट अध्याय है। और जहाँ तक छठे और सातवें अध्यायों की बात है तो छठा अध्याय इस पुस्तक का प्राण है और सातवाँ अध्याय इसकी आत्मा है।
ट्वीट की तेज गति से चलने वाली इस दुनिया में लोग प्रमाण के बिना कुछ भी नहीं मानते है। यह कहा जा सकता है कि आज की पीढ़ी तर्कप्रधान है और उस हर बात यह घटना के पीछे का रहस्य जानना चाहती है। अब यह जानना भी दो प्रकार का है, एक है बाह्य जानकारी और दूसरी है आंतरिक जानकारी या अनुभूति भारतीय दर्शन में आंतरिक अनुभूति या भीतर की यात्रा (जिसे अध्यात्म कहा जाता है) को अधिक महत्त्व दिया गया है। इस पुस्तक में भी लेखक ने भारतीयता को समझने के लिए बाहरी निरीक्षण की तुलना में आंतरिक अनुभव और अभ्यास की महता पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। पुस्तक का अगला अध्याय प्राण विद्या का स्वयं साक्षात्कार अर्थात् अनुभूति करने के लिए एक मार्गदर्शक अध्याय है। मार्गदर्शक इसलिए क्योंकि इस अध्याय में प्राण दर्शन या विद्या को समझने के लिए अभ्यास करने की अनेक विधियां और मुद्रायें प्रस्तुत की गई हैं।
भारतीय दर्शन के आधार प्राणविद्या की पुनः प्रतिष्ठा के लिए स्वाध्याय, अभ्यास और जागरण पर बल देने की आवश्यकता है और यह पुस्तक इस कार्य को अच्छे से करती है। संक्षेप में कहें तो प्राण विद्या के सिद्धांत और अभ्यास दोनों का ही समावेश इस पुस्तक में है। यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए जीवन के मूल प्राण और प्राण विद्या को समझने और एक स्वस्थ, निरोग और खुशहाल जीवन जीने के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।