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नरेंद्र मोदी सरकार 2.0: सरकार के तेज फैसलों ने विपक्ष को कर दिया मुद्दाविहीन…

2019 में आम चुनाव से ठीक पहले देश के लगभग हर मंच पर विपक्षी एकता साफ नजर आ रही थी। इन विपक्षी दलों का सिर्फ और सिर्फ एक मकसद था किसी तरह नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता में दोबारा लौटने से रोकना। विपक्ष इस बार इस मामले में कामयाब होता भी दिख रहा था क्योंकि विपक्षी ताकत जिस तरह से देश के लगभग हर मंच पर एकजुट दिख रही थी वह तो यही संदेश दे रहा था। लेकिन चुनाव के नजदीक आते-आते विपक्ष की एकता धीरे-धीरे धाराशायी होती नजर आई। विपक्षी दल कई खेमे में बंट गए। कई क्षेत्रीय पार्टियां जो नरेंद्र मोदी सरकार का मुखर विरोध कर रही थी वह भी एक साथ नहीं रह पाई परिणाम सबके सामने था। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा गठबंधन ने प्रचंड बहुमत हासिल की।

उस चुनाव तक देश में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस के पास भी सरकार का विरोध करने के नाम पर एक ही मुद्दा था वह था राफेल। राहुल गांधी खुद ही अलग-अलग मंचों से इस विमान की खरीद में हुए घोटाले को मुद्दा बनाते रहे लेकिन हर जगह वह राफेल की अलग-अलग कीमत बताते और ऑफसेट पार्टनर अनिल अंबानी की कंपनी को सरकार के द्वार दिए गए ठेके को लेकर भी जनता से संवाद करते नजर आए। लेकिन भारत जैसे देश में जहां इतनी बड़ी आबादी बेरोजगारी, गरीबा, अशिक्षा जैसे बुनियादी समस्यां से लड़ रही है। वहां राफेल कहां जनता की समझ में आनेवाला था यहीं कांग्रेस चूक गई और एक बार फिर सत्ता की चाभी भाजपा गठबंधन के हाथ लग गई। सरकार का गठन हुआ तो भी यह मुद्दा आम बना रहा लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस मामले में आए सरकार के पक्ष में फैसले ने कांग्रेस के हाथ से यह मुद्दा भी छीन लिया। फिर कांग्रेस ने भाजपा के घोषणापत्र में किए गए वादों पर घेरने का मन बनाया। घोषणा पत्र में किए गए वादों पर पिछले पांच साल यानि 2014-19 तक भी कांग्रेस सरकार को संसद और सड़क पर घेरने की कोशिश करती रही थी लेकिन देश की जनता को लगता था कि सारी समस्या का समाधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने में सक्षम हैं। इसलिए जनता का भरोसा राजग गठबंधन पर बरकरार रहा। याद ही होगा 2016 में नोटबंदी के फैसले के बाद जिस तरह से सरकार को जनता का समर्थन मिला था उससे यह साबित हो चुका था कि लोग अब विपक्ष की बातों पर कम ही भरोसा कर पाते हैं।

मोदी सरकार के पिछले एक सालों में विपक्ष की सूरत ये रही कि लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी को अध्यक्ष पद से राहुल गांधी को इस्तीफा देना पड़ा। ममता बनर्जी बैकफुट पर आ गईं। क्योंकि पश्चिम बंगाल में 18 सीट जीतकर भाजपा ने सबसे बेहतरीन अब तक का प्रदर्शन राज्य में किया था। अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो मायावती से हाथ मिलाने के बाद भी कुछ नहीं कर पाए तो साइलेंट हो गए। दक्षिण की पार्टियों से मोदी विरोध में कोई भी हलचल नहीं दिखी। विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा ही नहीं रहा।

बार-बार मात खाने के बाद विपक्ष अब अच्छी तरह समझ चुका था कि बीजेपी से वह भावनात्मक लड़ाई में मुकाबला नहीं कर सकता है। विपक्ष ने बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदूवाद को पहले मंडल 2.0 के सहारे काउंटर करने की कोशिश की। लेकिन वह दांव उल्टा पड़ा और मोदी-शाह की अगुवाई के चलते विपक्ष सोशल इंजिनियरिंग में काफी पीछे हो गया।

इसके बाद आर्थिक और किसानों से जुड़े मुद्दे पर ही टिके रहना विपक्षी दलों के लिए मजबूरी बन गई। अब लगभग सभी दल आम सहमति से बीजेपी की मजबूत पिच से खुद को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से लेकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तक, सभी सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर ही बात करने में लगे हैं। विपक्ष अंदर ही अंदर यह भी स्वीकार करता रहा है कि असहिष्णुता और लिंचिंग जैसे संवेदनशील मुद्दों को उठाने का नुकसान ही उनको हुआ। संसद में विपक्षी दलों ने कई मौकों पर इन मुद्दों को उठाया और हर बार विपक्ष का दांव उलटा ही पड़ा। इसके बाद संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष ने अपना पूरा फोकस आर्थिक मुद्दों पर रखा और इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द सरकार को घेरने की कोशिश भी की।

लेकिन इससे क्या होनेवाला है देश में विपक्ष को लेकर लोगों में विश्वास की कमी है। कई सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई कि विपक्ष कोरोना काल में भी केंद्र सरकार पर अधिक हमलावर नहीं हो पाई और विपक्ष के कई नेता मोदी सरकार के हर कदम का इस दौरान समर्थन करते नजर आए।

सरकार को इस एक साल में जिन मुद्दों पर विपक्ष घेरने की कोशिश भी करना चाह रहा था उसमें से प्रमुख मुद्दे आम चुनाव के समय भाजपा की घोषणापत्र में दर्ज थे। जिसको लेकर वह सरकार पर हावी होना चाहती थी। लेकिन सरकार गठन के बाद से जितनी तेजी से इन मुद्दों का निपटारा करना शुरू किया गया उसने विपक्ष को मुद्दाविहीन कर दिया। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करना हो या फिर राम मंदिर, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने के लिए कानून की बात हो या फिर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता दिलाने के लिए नागरिकता संशोधन कानून, देश में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए नए मोटर व्हीकल कानून की बात हो या फिर आतंकवाद पर लगाम कसने के लिए UAPA एक्ट में संशोधन, आर्थिक सुधार की दिशा में बैकों के विलय की बात हो या फिर देश में जल संबंधी समस्या के निवारण के लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन करना।

इसके साथ ही कोरोना के इस संक्रमण काल में भी जिस तरह से अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए पीएम मोदी ने लगातार इसकी निगरानी खुद करने का निर्णय लिया और फिर आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में एक कदम बढ़ाया वह भी विपक्ष के लिए झटके से कम नहीं है। इससे पहले मोदी सरकार ने किसानों को जितनी सौगातें दी। किसानों को पेंशन, आय दोगुनी उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने का जो वादा चुनाव के दौरान किया था, उसे सरकार बनने के बाद अमलीजामा पहनाने का काम किया। इसके साथ ही शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में जिस तरह से लगातार काम किया गया वह भी बेहद सराहनीय पहलू रहा जिसकी वजह से विपक्ष विरोध करने की स्थिति में नहीं था।

वहीं देशभर में लोगों को स्वस्थ्य और खुशहाल रखने के लिए मोदी का मिशन-फिट इंडिया के साथ छोटे व्यापारियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पेंशन योजना की भी शुरुआत की ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। अब आमलोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर वन नेशन, वन राशन कार्ड की योजना को भी सरकार की तरफ से मंजूरी दे दी गई। इसके बाद से विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए जो रहे सहे मुद्दे थे वह भी छीनते चले गए। मोदी 2.0 के एक साल पूरा होते-होते जितनी तेजी से सरकार ने फैसले लिए और जनता से किए गए सारे वादे पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रही है अगर यही रफ्तार रही तो आनेवाले समय में विपक्ष के पास शायद ही सरकार को घेरने के लिए कोई मुद्दा बच पाए।

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