
औरंगजेब मुगल इतिहास के सबसे क्रूरतम और मजहबी कट्टर शासकों में से था। जिसने तख्त के लिए अपने भाइयों और भतीजों को मारा। अपने पिता को कैद किया। हिंदुओं पर जजिया लगाया, ऐसे मजहबी कट्टरपंथी को अपना नायक मानने वाले देशद्रोही नहीं तो और क्या हैं। औरंगजेब शासनकाल के दौरान इस देश के बहुसंख्यक समाज के पास तीन ही विकल्प थे। पहला कन्वर्जन कर इस्लाम स्वीकार करके मुसलमान हो जाओ। अगर कन्वर्जन नहीं करना तो जजिया दो, और तीसरा था यदि दोनों में से कुछ भी नहीं कर सकते तो मारे जाओ।
इस बात में कोई दोराय नहीं कि औरंगजेब का शासनकाल भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर और विभाजनकारी समयों में से एक है। उसके शासन में जिस तरह से धार्मिक कट्टरता और अत्याचार का बोलबाला था, उसने भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को गहरा धक्का दिया। उसकी नीतियों ने न केवल गैर-मुस्लिम समुदायों के प्रति दमन और अत्याचार का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि उसकी मजहबी कट्टरता ने कट्टरपंथी मानसिकता को बढ़ावा दिया। उसके शासनकाल में ही हिंदुओं के त्योहारों पर पथराव शुरू हुए। उसी मानसिकता के लोग आज भी ऐसा ही कर रहे हैं।
सैकड़ों वर्षों बाद भी, औरंगजेब की उसी कट्टरपंथी सोच का प्रभाव भारत के कट्टरपंथी समाज में दिखाई देता है। कट्टरपंथी उसे अपने नायक की तरह देखते हैं। वे आज भी अपने को विशिष्ट समझते हैं। औरंगजेब के शासनकाल की तरह ही वे आज भी शासन चलाना चाहते हैं। नागपुर में हुई हालिया घटनाक्रम इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहां मुस्लिम कट्टरपंथियों ने औरंगजेब के नाम पर उपद्रव किया, आगजनी की। यह घटना यह साबित करने के लिए काफी है कि समाज के एक वर्ग में अभी भी औरंगजेब की मजहबी कट्टरता और हिंसक विचारधारा को स्वीकार्यता प्राप्त है।
इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ”हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब” में औरंगजेब की क्रूरता और उसकी नीतियों का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान खुलेआम धार्मिक असहिष्णुता का प्रदर्शन किया। हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया, जजिया कर फिर से लागू किया, और जबरन इस्लाम में लोगों का धर्म-परिवर्तन कराया। उसने सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को बर्बरता से मरवाया।
औरंगजेब की नीतियों के चलते पूरे भारत में संघर्ष की स्थिति बनी रही, जिसने समाज में गहरा विभाजन पैदा किया। आज भी उस स्थिति से समाज पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है। कट्टरपंथी आज भी उसी मानसिकता के साथ जीते हैं, जो औरंगजेब के समय की है। यह स्थिति एक बड़े और गहरे सवाल को जन्म देती है कि आखिर औरंगजेब जैसे आततायी को नायक के रूप में देखने की मानसिकता क्यों और कैसे पनप रही है? दरअसल इस मानसिकता के पीछे एक ऐसी कट्टर मजहबी उन्माद से भरी विचारधारा है, जो मजहब के नाम पर अत्याचार, दमन और हिंसा को न्यायसंगत ठहराती है। जो कहती है कि काफिरों को जीने का अधिकार नहीं है।
आततायी औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं, सिखों, जैनों और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों के प्रति जिस तरह की क्रूरता और हिंसा को वैधता दी गई, वह उसकी कट्टरपंथी मानसिकता का प्रमाण है। उसने लाखों निर्दोष लोगों की हत्या करवाई। लेकिन आज भी, उसके प्रति सम्मान और श्रद्धा रखना उस विचारधारा की निकृष्टतम मानसिकता का परिणाम है।
नागपुर की घटना इस बात की तरफ इशारा करती है कि अगर समय रहते इस कट्टरपंथी मानसिकता का समाधान नहीं किया गया, तो यह न केवल भारत के सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि यह देश की शांति और सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बन सकती है। औरंगजेब को जिंदा पीर बताने वालों की इस देश में भी कमी नहीं है। उसकी कब्र को मजहबी स्थल के रूप में मान्यता देना और उसे संरक्षित रखना, इस कट्टरपंथी विकृत मानसिकता को और प्रोत्साहित करता है। समय आ गया है कि हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर औरंगजेब की कब्र जैसी जगहों का हमारे समाज में कोई स्थान होना चाहिए या नहीं।
जहां हम एकता और समरसता की बात करते हैं, वहां ऐसे प्रतीकों को क्यों रहने देना चाहिए? जो स्थल मजहबी कट्टरता के लिए प्रेरणा बनते हैं उन्हें क्यों नहीं उखाड़ फेंकना चाहिए? औरंगजेब की कब्र एक ऐसा स्थल बन गया है, जिसके माध्यम से उसकी कट्टरपंथी विचारधारा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस तरह के प्रतीक समाज में घृणा और हिंसा को बढ़ावा देते हैं। इसलिए इसे उखाड़ फेंकना ही समाधान है। केवल कब्र ही नहीं, बल्कि उसकी विचारधारा को भी मिटाना आवश्यक है, ताकि भविष्य में औरंगजेब जैसे चरित्र को नायक मानने की मानसिकता समाप्त हो सके।
उसकी कब्र केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं हो सकती है, बल्कि वह एक ऐसी विचारधारा का प्रतीक है, जिसने भारतीय समाज को सदियों तक दुख दिया है। औरंगजेब जैसे आततायी, दुराचारी, मजहबी उन्मादी और कट्टरपंथी शासक की कब्र को संरक्षित करना उस पीड़ा और विभाजन को बनाए रखना है, जिसे औरंगजेब ने अपने शासनकाल में बढ़ावा दिया था। यदि हमें इस मानसिकता को नष्ट करना है और एक मजबूत, एकीकृत और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना है, तो ऐसे तमाम प्रतीकों को नष्ट कर देना ही एकमात्र उपाय है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।