
राहुल गांधी हमेशा से बचकाने बयान देते आए हैं। अब उन्होंने मिस इंडिया प्रतियोगिता में अल्पसंख्यकों, दलितों एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं की भागीदारी को लेकर बयान दिया है और कहा है कि विजेताओं में कोई अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी महिला नहीं है। संभवत: राहुल गांधी बोलने से पहले सोचते तक नहीं है, किसी विषय को लेकर अध्ययन करना तो अलग बात है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब एसटी और एससी समुदाय से आने वाली महिलाओं ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया है और विजेता भी बनी हैं। रिया एक्का छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी लड़की 2022 में मिस इंडिया बनी थीं। इसी साल आदिवासी समुदाय से आने वाली रिया तिर्की फेमिना मिस इंडिया के ग्रैंड फिनाले में पहुंचीं थीं। सांत्वना बी सिमरन, निहारिका सिंह जैसे और भी कई नाम हैं जो एससी और एसटी समुदाय से आते हैं।
बहरहाल हम यहां मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लेने वाली महिलाओं की बात नहीं कर रहे हैं। यहां बात कर रहे हैं राहुल गांधी अपरिपक्वता की, जो कई मौकों पर नजर आती है। देश में जातिगत जनगणना की बात करने वाले राहुल गांधी जो दलितों और वंचितों के लिए लगातार बोल रहे हैं उनकी पार्टी ने कभी दलितों और वंचितों की चिंता नहीं की। उन्हें हाशिए पर रखा। इतिहास के पन्नों में जाएं तो इसके कई साक्ष्य मौजूद हैं।
वर्ष 1952 में बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर को चुनाव हराने के लिए पंडित नेहरू ने लगातार दो सभाएं की थीं। डॉ. आंबेडकर उस समय उत्तर मुंबई की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। नतीजतन डॉ.आंबेडकर करीब 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए । कांग्रेस और नेहरू यही नहीं रुके, डॉ. आंबेडकर को चुनाव हरवाने के लिए 1954 में फिर से पूरी ताकत लगाई गई। इस बार डॉ. आंबेडकर बंडारा लोकसभा सीट का उपचुनाव लड़ रहे थे ।
राहुल गांधी जातिगत जनगणना की मांग को देश के संविधान को मजबूत करने वाली मांग कहते हैं, वह कहते हैं कि देश को 10 प्रतिशत ने नहीं बल्कि 100 प्रतिशत लोगों ने बनाया है। जब राहुल गांधी यह मांग करते हैं तो वह भूल जाते हैं कि उनके परनाना खुद आरक्षण के पक्ष में नहीं थे। इसके ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में देश के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखकर जाति और पंथ के आधार पर नौकरियों में आरक्षण देने के बजाए अच्छी शिक्षा पर जोर दिया था। उन्होंने लिखा था, ” ये सच है कि हम एससी और एसटी की मदद करने के मामले में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हैं । पर, मैं किसी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं।
राहुल गांधी के पिता और देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी भी ने आरक्षण का विरोध किया था। राजीव गांधी ने तो देश में पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश वाली मंडल आयोग की रिपोर्ट का विरोध किया था। जनता पार्टी की सरकार में गठित मंडल आयोग की पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश करने वाली मंडल आयोग की रिपोर्ट को 10 साल तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकारों ने लागू नहीं होने दिया था। जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तब जाकर यह रिपोर्ट लागू हो पाई।
दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की बात करने वाले राहुल गांधी बताएं कि संविधान के निर्माण में महती भूमिका निभाने वाले डॉ. आंबेडकर को कांग्रेस के राज में भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया था ? जबकि कांग्रेस की सरकारों के दौरान जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी भारत रत्न दिया गया। डॉ. भीमराव आंबेडकर को भारत रत्न तब मिला जब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वी.पी. सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी।
1969 में जब मध्यप्रदेश में संयुक्त विधायक दल ‘संविद’ की सरकार बनी थी। गोविंद नारायण सिंह इसके पहले मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद ‘संविद’ सरकार में आदिवासी समुदाय से आने वाले राजा नरेशचंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया तो कांग्रेस ने जोड़—तोड़कर दल बदल करवाकर उनकी सरकार गिरवा दी।
स्वतंत्रता सेनानी रहे दलित समुदाय आने वाले भारत के उप प्रधानमंत्री रहे बाबू जगजीवन राम के साथ कांग्रेस ने क्या किया। उन्हें कांग्रेस में इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देना बेहतर समझा। दलित समुदाय से आने वाले सीताराम केसरी को अपमानित करके उनसे कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिलवाया गया ताकि सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया जा सके। बेहद अपमानजनक तरीके से उन्हें कांग्रेस कार्यालय से बाहर निकाल दिया गया था।
जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागेदारी की बात बोलने वाले और लगातार जातिगत जनगणना का राग अलाप रहे राहुल गांधी हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के कोटे में कोटे के फैसले को लेकर कुछ नहीं बोले। इस मामले पर कांग्रेस के नेताओं की बैठक तो हुई, उसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए। लेकिन दलित समुदाय में आने वाली पिछड़ी जातियों के लिए उन्होंने कोई कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। यदि राहुल गांधी को पिछड़ों की इतनी चिंता होती तो इसके समर्थन में कुछ न कुछ जरूर बोलते।
दरअसल राहुल गांधी का दलित प्रेम कोरा दिखावा है, ढकोसला है, मुद्दा न होने के बावजूद भी बिना बात की बातों को तूल देकर कांग्रेस हमेशा से राजनीति करती आई है। राहुल भी उसी परंपरा को निभा रहे हैं। वंचितों, पिछड़े वर्गों और वनवासियों के कल्याण को लेकर आज की कांग्रेस या राहुल गांधी जो मर्जी दावे करें, चिंता दिखाएं लेकिन वास्तविकता यही है कि कांग्रेस ने हमेशा इन वर्गों से छल कपट किया है। कांग्रेस और राहुल गांधी का दलित प्रेम एक छलावा है ताकि उनका वोट बैंक मजबूत हो सके और वह किसी भी तरह से सत्ता हासिल कर सकें।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।