newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

तकनीकी तौर पर जेल से सरकार नहीं चला सकते केजरीवाल, देना ही पड़ेगा इस्तीफा

आतिशी ने कहा कि जनप्रतिनिधि कानून कहता है कि जब तक सजा न हो इस्तीफा नहीं देना होगा। केजरीवाल के पास पूरा बहुमत है। आतिशी ने कहा कि इससे जुड़े दो लीगली और संवैधानिक प्रावधान है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट (जनप्रतिनिधि कानून) ये कहता है कि अगर आपको दो साल से ज्यादा सजा हो जाए तो फिर आप एक जनप्रतिनिधि नहीं रह सकते हैं चाहे आप विधायक हों या फिर सांसद हों। दूसरा यदि किसी मुख्यमंत्री के पास बहुमत न हो तो उसको इस्तीफा देना पड़ता है।

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया गया है। वह फिलहाल तिहाड़ जेल में रहेंगे। ऐसे में दिल्ली की सरकार कैसे चलेगी, इस विषय पर आप नेता और दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। आतिशी ने कहा कि जनप्रतिनिधि कानून कहता है कि जब तक सजा न हो इस्तीफा नहीं देना होगा। केजरीवाल के पास पूरा बहुमत है। आतिशी ने कहा कि इससे जुड़े दो लीगली और संवैधानिक प्रावधान है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट (जनप्रतिनिधि कानून) ये कहता है कि अगर आपको दो साल से ज्यादा सजा हो जाए तो फिर आप एक जनप्रतिनिधि नहीं रह सकते हैं चाहे आप विधायक हों या फिर सांसद हों। दूसरा यदि किसी मुख्यमंत्री के पास बहुमत न हो तो उसको इस्तीफा देना पड़ता है। बहरहाल यह तो हो गई कानूनी और संवैधानिक बात, लेकिन तकनीकी तौर पर देखें तो केजरीवाल को इस्तीफा देना ही होगा।

दिल्ली सरकार द्वारा जेल में विधाराधी कैदियों से मिलने के लिए कुछ नियम और कायदे तय किए गए हैं, क्योंकि जेल दिल्ली सरकार के अंतर्गत ही आती है। दिल्ली सरकार जेल के नियमों के हिसाब से जेल में बंद विचाराधाीन कैदियों को सप्ताह में दो बार ही मिलने की अनुमति होती है। इस निर्णय के खिलाफ याचिका दायर होने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसे सही ठहराया था। 16 फरवरी 2023 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के इस नियम को नीतिगत बताते हुए सही ठहराया था। इस साल इस मामले पर सुनवाई करते हुए इस वर्ष 9 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा था कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह एक नीतिगत फैसला है। इस फैसले के तहत विचाराधीन कैदी सप्ताह में दो बार ही अपने दोस्त, रिश्तेदार या फिर कानूनी सलाहकारों से मिल सकेंगे।

अब यहां सवाल उठता है कि एक तरफ तो जेल में मिलने के कुछ नियम व कायदे तय हैं। जिसके तहत विचाराधीन कैदी उसके द्वारा दिए गए 10 नामों में से सप्ताह में दो बार ही मुलाकात कर सकता है। इन नामों में उसके परिजन और कानूनी सलाहकार शामिल होते हैं। मुलाकात भी 30 मिनट की अवधि की होती है। एक बार में तीन लोगों से ज्यादा लोग विचाराधीन कैदी से मुलाकात नहीं कर सकते हैं। इस बारे में जब हमने सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील आरपी लूथरा से बात की तो उनका कहना था कि माना कि संंविधान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है कि जेल जाने वाला मुख्यमंत्री या मंत्री इस्तीफा देने के लिए बाध्य है लेकिन ऐसा करना ही पड़ता है। दिल्ली के मामले में भी ऐसा ही होगा, तकनीकी तौर पर देखें तो अरविंद केजरीवाल को इर सूरत में इस्तीफा देना ही होगा।
लूथरा कहते हैं कि सरकार के बहुत से फैसले ऐसे होते हैं जो गोपनीय होते हैं, सैकड़ों फाइल होती हैं जिन पर हस्ताक्षर करने होते हैं। जेल मैन्युअल के हिसाब से सारे कागज जेल अधिकारियों द्वारा जांचें जाते हैं। यदि ऐसा होगा तो गोपनीयता वाली बात कहां रह गई। दूसरा नियमानुसार अरविंद केजरीवाल सप्ताह में दो बार ही अपने परिजनों और अपने वकीलों से मुलाकात कर सकते हैं, यदि उनकी पार्टी के लोग ऐसा कह रहे हैं कि वह जेल से सरकार चलाएंगे तो इसके लिए जेल के नियमों को बदलना पड़ेगा, जो संभव नहीं है। दूसरा कोई भी अधिकारी या दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव मुलाकाती बनकर तो जेल में अरविंद केजरीवाल से फाइल पर हस्ताक्षर करवाने जाएंगे नहीं, क्योंकि जेल मेंं मुलाकाती के लिए भी नियम होते हैं, जिसमें समय लगता है। ऐसे में यदि अधिकारी मुलाकाती बनकर उनसे फाइलों पर हस्ताक्षर करवाने के लिए जाएंगे तो यह उनकी नौकरी के नियमों का उल्लघंन हैं। सरकारी नौकरी के नियमों की बात करें तो प्रशासनिक अधिकारियों को यदि अपने किसी परिचित से मिलने भी जेल में जाना होता है तो उन्हें पहले अपने विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है, उसके बाद अवकाश लेकर जेल में अपने परिचित से मुलाकात करने के लिए जा सकते हैं। इसके अलावा और कई तकनीकी कारण हैं जिसके चलते जेल से सरकार नहीं चलाई जा सकती। ऐसे में यदि अरविंद केजरीवाल को जमानत नहीं मिलती है तो उन्हें हर हाल में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।