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संजौली मस्जिद निर्माण से उपजा ‘हिमाचल का आक्रोश’ एंटी माइनॉरिटी सेंटीमेंट्स नहीं हैं बल्कि स्थानीय लोगों की जायज ‘चिंताएं’ हैं जो ‘आंतरिक सुरक्षा’ और देवभूमि की ‘देव संस्कृति की रक्षा’ से जुडी हैं

“यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि मुद्दा केवल लिगैलिटी के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें एक मजबूत रिलीजियस अंडरकरंट भी है, और इस प्रकार एक अलग कहानी बनाई जा रही है”

स्रुप्रसिद्ध अंग्रेजी न्यूज़ पेपर द ट्रिब्यून में 17 सितम्बर 2024 को प्रकाशित एक लेख पढ़ा, जिसका शीर्षक था ‘Sanjauli mosque row rooted in anti-minority sentiment’. यह लेख लिखने वाले हैं टिकेंदर सिंह पंवर। पंवर साहब शिमला के उप महापौर जैसे पद पर रह चुके हैं। इस लेख का खंडन द ट्रिब्यून को भेजा है, मुझे नहीं पता कि द ट्रिब्यून उसे छापेगा कि नहीं। कम्युनिस्ट विचारधारा से संबंध रखने वाले किसी लेखक के लेख का शीर्षक ऐसा हो तो उसमें कोई नयीं बात नहीं है। इससे पहले कि मैं इस लेख पर प्रतिक्रिया दूँ कम्युनिस्टों के बारे में डॉ भीमराव आंबेडकर क्या कहते थे यह लिखना जरूरी समझता हूँ। डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था, “मेरे लिए कम्युनिस्टों से रिश्ता रखना बिल्कुल असंभव है. मैं कम्युनिस्टों का कट्टर शत्रु हूँ”। कम्युनिस्टों के लिए डॉ. आंबेडकर ने वैसे तो बहुत कुछ कहा है लेकिन बाबा साहब आंबेडकर राइटिंगस एंड स्पीचेस के वॉल्यूम 15 के पेज 878 पर जो लिखा है वह सबको जरूर पढ़ना चाहिए।
कम्युनिस्टों का चरित्र समझने के लिए डॉ. आंबेडकर के उपरोक्त विचार पर्याप्त हैं। अब पंवर के लेख पर नजर दौड़ाते हैं। अंग्रेजी में लिखे इस इस लेख की शुरुआत बदले हुए नाम विनोद के कमेंट से होती है, जिसमें पंवर अपने कार्यकाल में कोई नीति बनाने का जिक्र करते हैं, लेकिन अंत में लिखते हैं कि.. “यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि मुद्दा केवल लिगैलिटी के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें एक मजबूत रिलीजियस अंडरकरंट भी है, और इस प्रकार एक अलग कहानी बनाई जा रही है” । पंवर ने संजौली मुद्दे को लिगैलिटी और रिलीजियस अंडरकरंट जैसे शब्दों का उपयोग करके तुरंत कम्युनिस्टों का वर्ग संघर्ष का खेल शुरू कर दिया, जबकि इस मुद्दे के पीछे की सच्चाई केवल इतनी ही नहीं है। पंवर ने यह नहीं लिखा कि आखिर संजौली मस्जिद का मुद्दा अचानक क्यों उठा? और फिर हिमाचल में आन्दोलन क्यों हुआ?
तो सच्चाई ये है कि संजौली मस्जिद विवाद के पीछे की वजह मल्याणा गांव में हुई मारपीट की एक घटना है। दरअसल, शिमला के मल्याणा में विक्रम सिंह नाम के एक व्यक्ति से कुछ लोगों ने मारपीट की थी। जिस कारण उसके सिर पर गहरी चोट आई थी। मामले में पीड़ित की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया। इनमें सभी आरोपी बाहरी राज्यों से आये मुस्लिम थे। जिनमें पांच आरोपी यूपी के मुजफ्फरनगर और एक उत्तराखंड का रहने वाला है। इन आरोपियों की पहचान गुलनवाज (32 वर्ष), सारिक (20 वर्ष), सैफ अली (23 वर्ष), रियान (23 वर्ष) और दो नाबालिग के रूप में हुई। स्थानीय लोगों के अनुसार वारदात को अंजाम देकर ये सभी आरोपी संजौली मस्जिद में जाकर छिपे थे।
अब प्रश्न उठते हैं कि क्या पंवर स्थानीय व्यक्ति के साथ मारपीट को जायज मानते हैं? क्या मस्जिद अपराधियों के छिपने का ठिकाना होता है? आखिर ये आरोपी मस्जिद में ही क्यों छिपे? पंवर ने संजौली की महिलाओं के ब्यान इस लेख में नहीं लिखें हैं। जिनमें महिलाओं ने बताया है कि इस मस्जिद में आने वाले बाहरी लोग उनके साथ कैसी अभद्रता करते हैं! टॉयलेट के दरबाजे खुले छोड़कर ही टॉयलेट करते हैं, और जब उनसे इस विषय पर बात की जाती है तो ये बाहरी लोग अभद्रता करते हैं। क्या पंवर महिलाओं के साथ ऐसे अभद्र व्यवहार को सही ठहराते हैं? अगर पंवर के परिवार वालों के साथ ऐसा अभद्र व्यवहार किया जाये तो पंवर क्या करेंगे? बाहरी राज्य से आये सलीम खान जो दर्जी का काम करता है उसके बारे में पंवर ने कुछ न बताया, आखिर क्यों? क्या पंवर हिमाचल के बाहर जाकर सलीम खान की तरह अवैध निर्माण करवा सकते हैं?
लेख में आगे पंवर लीगल इलीगल पर विमर्श खड़ा करते हुए दिल्ली के सेंट्रल विस्टा सहित शिमला के कई भवनों के बारे में बात करते हैं। यह विमर्श इसलिए खड़ा किया ताकि संजौली सहित पुरे हिमाचल के अवैध मस्जिद निर्माण को उचित ठहराया जा सके। हिमाचल में ये अवैध मजार और मस्जिद निर्माण पिछले कुछ वर्षों में ही शुरू हुआ है। जबसे हिमाचल में बाहरी राज्यों खासकर उतर प्रदेश के सहारनपुर के लोग आने लगे हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम होते हैं, तबसे ये काम होने लगे हैं। ये लोग हिमाचल में दर्जी, नाई और फेरी लगाने का काम करते हैं। जिससे स्थानीय व्यापारी वर्ग को नुकसान होता है। यहाँ एक बात कहना जरूरी है कि जम्मू कश्मीर के लोग बहुत पहले से हिमाचल में फेरी लगाने या मजदूरी का काम करते रहे हैं लेकिन उनको लेकर ऐसा प्रदर्शन कभी नहीं हुआ है। लेकिन जैसे ही उत्तरप्रदेश के जमाती और फेरी वालों की संख्या हिमाचल में बढ़ने लगी यहाँ चोरी, लव जिहाद, अवैध मस्जिद निर्माण, बच्चों का गायब होना शुरू हो गया। लोगों के साथ अभद्रता शुर हो गयी। पंवर ये सब अपने लेख में लिखने से चूक गए हैं।
आगे पंवर लिखते हैं, “संजौली मस्जिद वक्फ बोर्ड की मालिकाना भूमि पर बनी है…”
पंवर साहब लिख रहे हैं कि ये जमीन वक्फ बोर्ड की है, जबकि सच्चाई यह है कि इस जमीन का केस लगभग 10-12 साल एक मुस्लिम व्यक्ति लड़ रहा था, जिसे कोर्ट ने बाद में इस केस के योग्य नहीं माना और उसका मालिकाना हक़ सिद्ध नहीं हुआ उसके बाद इस केस में अचानक वक्फ बोर्ड की एंट्री हुई। इसी वक्फ बोर्ड ने शिमला के कोर्ट में कहा है कि “जमीन हमारी है लेकिन उसे यह पता नहीं है कि चार मंजिले किसने बता दी” । ये तो बड़ा अच्छा मजाक चल रहा है। जबकि दुसरे पक्ष के अनुसार यह जमीन सरकारी यानी राजस्व विभाग की है और वक्फ बोर्ड अतिक्रमणकारी है। प्रश्न यह है कि देवताओं के मंदिर और देव स्थल होने के कारण देवभूमि हिमाचल में वक्फ बोर्ड की जमीन कहाँ से आ गयी? जब यहाँ मुस्लिम जनसंख्या बहुत कम है और पहले से यहाँ मस्जिदें कम थीं तो फिर ये वक्फ बोर्ड यहाँ कि जमीन का मालिक कैसे बन गया है? क्या भूमि या राजस्व जैसे सरकारी विभागों में जमीन वक्फ बोर्ड के नाम करने की कोई साजिश हुई है या चल रही है? सरकार को यह जांच करनी चाहिए और दोषियों को सजा देनी चाहिए।
जहाँ तक वक्फ बोर्ड की जमीन होने का सवाल है तो इसके लिए हमें विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने संजौली मस्जिद के अवैध निर्माण को लेकर जो कहा है उसे देखना होगा। उन्होंने इसे राज्य सरकार की जमीन बताया है। साथ ही उन्होंने प्रदेश में बाहरी लोगों के हो रहे घुसपैठ पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हिमाचल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या जमाती आते जा रहे हैं। संजौली बाज़ार में महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है। चोरियां हो रही हैं, लव जिहाद जैसी घटनाएं हो रही हैं, जो प्रदेश और देश के लिए खतरनाक हैं। मस्जिद का अवैध निर्माण हुआ है।
इसके बाद पंवर हिन्दू धर्म के प्रति कम्युनिस्टों की घृणा का प्रदर्शन करते हुए शिमला के सुप्रसिद्ध राम मंदिर और अन्य मंदिरों पर सवाल खड़ा करते हैं कि इनके द्वारा भी नियमों का पालन नहीं किया जाता है। पंवर साहब ये मंदिर देवभूमि का अस्तित्व हैं, देवभूमि हिमाचल में अगर मंदिर नहीं होंगे तो क्या अवैध मस्जिदें होंगी? कम से कम मार्क्स, लेनिन और स्टालिन की मूर्तियाँ को कभी न होंगी ! पंवर को बताना चाहिए कि जिन मंदिरों को लेकर ये ऐसी बातें कर रहे हैं उनसे शिमला की जनता को कौन सी समस्या हुई है? जिन समस्याओं का जिक्र मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने किया है, क्या इन मंदिरों से या इनमें रहने वाले लोगों से कभी ऐसी समस्याएं हुईं हैं?
पंवर आगे लिखते हैं, “संजौली मस्जिद पर विवाद अल्पसंख्यक विरोधी भावना (एंटी-माइनॉरिटी सेंटिमेंट) से जुड़ी कई हालिया घटनाओं में से एक है, और अधिनायकवादी डिजाइन का हिस्सा है”।
वर्ग संघर्ष के साजिशकर्ताओं को जब तक ‘एंटी’ शब्द का उपयोग करने का मौका न मिले तब तक मजा नहीं आता है। इनको एंटी-माइनॉरिटी सेंटिमेंट की बड़ी चिंता है, लेकिन देवभूमि के हिन्दू समाज की भावनाओं का इनके लिए कोई मतलब नहीं है। प्रदेश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर इनको कोई समस्या नहीं है! हिमाचल के व्यापारियों को हो रहे नुकसान को लेकर उन्हें कोई मलाल नहीं है! हिमाचल में हो रहे लव जिहाद से इनको कोई समस्या नहीं है! देवभूमि हिमाचल में फैलती इस्लामिक जिहाद की जड़ों को लेकर इनको कोई समस्या नहीं है ! भारत में कम्युनिस्ट इस्लामिक जिहाद के पैरोकार हैं। इसलिए जब जब इस्लामिक जिहाद की घटनाएँ भारत में होती हैं तब तब कम्युनिस्ट लॉबी तुरन्त पर्दा डालने या मुद्दे से भटकाने के कुत्सित खेल में लग जाते हैं। यही काम इस लेख के माध्यम से पंवर कर रहे हैं।
इसके बाद पंवर दिल्ली की बात करके मुस्लिमों की स्थिति का वर्णन करके असली वामपंथी विषवमन करते हुए लिखते हैं, “बढ़ते इस्लामोफोबिया, कानूनी प्रतिबंधों का सामना, और असुरक्षा की गहरी भावना ने कई मुसलमानों को बस्तियों/ झुग्गियों में शरण लेने के लिए प्रेरित किया है। यह आत्म-अलगाव उन्हें शहरी विकास प्रक्रियाओं से और भी अलग कर देता है, बिल्कुल वही जो हिंदुत्व ताकतें चाहती (डिजायर ऑफ़ हिंदुत्व फोर्सेज) हैं”।
अब पंवर से कोई ये पूछे कि दुनिया में ऐसी कौन सी जगह हैं जहाँ इनके ख़ास मुस्लिम लोग बहुत ख़ुशी और सुख से रहते हैं? क्या लीबिया, सीरिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, बंगलादेश में सब कुछ हिंदुत्व फोर्सेज के डिजायर के अनुसार ही सब चल रहा है। क्या बंगाल में हिंदुत्व फोर्सेज की सरकार हैं? क्या आये दिन भारत में सर तन से जुदा के नारे हिंदुत्व फोर्सेज लगाती हैं? क्या PFI का मिशन 2047 डॉक्यूमेंट भी हिंदुत्व फोर्सेज ने ही बनाया था? क्या पंवर देश में अनेक जगह हिन्दू मन्दिरों में मुस्लिमों द्वारा मांस फैंकने, तोड़फोड़ करने को उचित मानते हैं?
आगे पंवर बड़े ही शातिर तरीके से लिखते हैं, “कुछ दिन पहले, शिमला में मुस्लिम समुदाय ने संजौली मस्जिद के अवैध हिस्सों को तोड़ने की पेशकश की थी। क्या ऐसा प्रस्ताव कभी मंदिरों की समितियों द्वारा दिया जाएगा, जिनमें से कुछ सरकारी भूमि पर बने हैं?”
जिस मस्जिद का मामला मुस्लिम पिछले 14 सालों से लड़ रहे हैं, फिर जिसमें अचानक वक्फ बोर्ड की एंट्री होती है और केस और लंबा चलने की संभावना बन गयी है, उस मस्जिद के अवैध भाग को तोड़ने की मांग अचानक मुस्लिम पक्ष करने लगा है। जबकि मंत्री अनिरुद्ध के अनुसार ये पूरी मस्जिद अवैध निर्मित है। स्थानीय लोगों के अनुसार भी ये पूरा मस्जिद निर्माण अवैध है। आन्दोलन के बाद संजौली सहित पुरे हिमाचल में साजिश का पर्दाफाश होने के बाद ऐसी पेशकश करना कोई उदार बात नहीं है, बल्कि कोई साजिश ही हो सकती है। आखिर ये निर्माण मुस्लिमों ने होने क्यों दिया? मंडी, बिलासपुर और अन्य जगहों पर भी तो ऐसा ही चल रहा है, उसका क्या?
पंवर आगे प्रश्न खड़ा करके हिन्दुओं के मंदिर तुड़वाने की पेशकश की बात करते हैं। इस पर इतना कहना काफी है कि देवभूमि हिमाचल मंदिरों के कारण ही देवभूमि है। मन्दिर अवैध गतिविधियों का अड्डा नहीं होते हैं और न ही लोगों को इनसे कोई समस्या होती है। हिमाचल के मंदिरों का पैसा सरकारे उपयोग करती हैं। हो सकता है पंवर जब उप महापौर रहे हो तब उनको जो सरकारी सुख-सुविधाएँ मिली हो उनके लिए भी पैसा हिमाचल के ही किसी मंदिर से आया हो। क्या पंवर बतायेंगे कि हिमाचल में कौन सी मस्जिद का पैसा सरकार लेती है? क्या पंवर बतायेंगे कि बाहरी राज्यों से आने वाले फेरी वाले हिमाचल सरकार को कितना टैक्स देते हैं? मंत्री अनिरुद्ध स्वयं कह रहे हैं कि अवैध रोहिंग्या हो सकते हैं क्योंकि पंजीकरण अच्छे से नहीं हो रहा है। अब जब हिमाचल का हिन्दू समाज पीड़ित होने लगा है और उसने अपना पक्ष रखने का काम किया तो पंवर इसको ‘इलास्मोफोबिया’ से जोड़ने लग गए हैं। पंवर साहब ये इस्लामोफोबिया नहीं है बल्कि इस्लामिक जिहाद और गजवा-ए-हिन्द का दुस्वप्न पूरा करने के लिए ‘काफिरफोबिया’ से ग्रस्त जिहादी मानसिकता के प्रतिकार की शुरुआत है। भारत के कम्युनिस्ट शुरू से ही इस्लामिक शक्तियों के सहायक रहें हैं। भारत का झूठा इतिहास इन्ही कम्युनिस्टों ने लिखा है जिसमें इस्लामिक आक्रान्ताओं का महिमामंडन किया गया है। कम से कम हिमाचल प्रदेश में इस्लामिक कम्युनिस्ट गठजोड़ की साजिशें नहीं चलने वालीं है। यदि पंवर साहब को मुस्लिमों के झुग्गियोंया बस्तियों में रहने पर बड़ी पीड़ा होती है तो उनको बताना चाहिए कि उन्होंने अपने घर में कितने प्रवासी मुस्लिमों को रखा है? या क्या शिमला में बड़े पद पर रहते हुए इन्होने हिमाचल में बाहर से आये लोगों को अवैध रूप से बसाने का काम किया है?
हिमाचल सरकार को इनके कार्यकाल की जांच भी करनी चाहिए, आंदोलनरत हिमाचल के लोगों के विरुद्ध स्टैंड लेने के पीछे कोई न कोई पृष्ठभूमि होने का संदेह तो बनता है।
कोई पंवर से पूछे आखिर लोग सडकों पर क्यों आये? क्या सिर्फ इसके पीछे इस्लामोफोबिया ही है? या स्थानीय लोगों को जायज चिंताएं हैं? अपनी आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लोगों द्वारा की गयी प्रतिक्रिया को क्या उप महापौर जैसे पद पर रहे व्यक्ति द्वारा ‘इस्लामोफोबिया’ की संज्ञा देना क्या उचित है? इसका मतलब है कि खुद पंवर इस्लामिक ‘काफिरफोबिया’ से ग्रस्त हैं ! क्या पंवर यह मानते हैं कि प्रवासियों का उचित प्रक्रिया के तहत पंजीकरण कराने की हिमाचल के लोगों की मांग ‘इस्लामोफोबिया’ है? क्या स्थानीय लोगों की भावनाओं का पंवर के लिए कोई मूल्य नहीं है जो एंटी-माइनॉरिटी सेंटिमेंट जैसे शब्द लिख रहे हैं? क्या बहुसंख्यक समाज की भावनाएं नहीं होती हैं? या पंवर के लिए हिमाचल का आंदोलनरत समाज बुर्जुआ बन गया है? क्या पंवर इस बात को नकारेंगे कि इन प्रवासियों के कारण हिमाचल में आंतरिक सुरक्षा का खतरा बढ़ गया है? क्या पंवर को 2022 में ऊना जिला में हुआ प्राची हत्याकांड के बारे में पता है? क्या पंवर इस बात को नकार रहे हैं कि ये प्रवासी अपनी पहचान छिपाकर हिमाचल में रह रहे हैं? क्या पंवर के पास मंत्री अनिरुद्ध से ज्यादा जानकारी है?

ऐसे कितने और प्रश्न हैं जो पंवर से पूछे जा सकते हैं। वास्तव में शिमला का संजौली मस्जिद का मुद्दा हिमाचल में चल रही साजिश के खिलाफ जनता की प्रतिक्रिया का सूत्रधार बना है। इसे केवल संजौली में अवैध मस्जिद निर्माण तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि यह पूरे देवभूमि हिमाचल की ‘डेमोग्राफी’ बदलने की साजिश है, व्यापार जिहाद है, फेरी वालों की अपराधिक गतिविधियों से जुडा है, फर्जी पहचान पत्रों या बिना पहचान और पंजीकरण से रहने वालों से जुडा है। इसे हिमाचल की ‘आंतरिक सुरक्षा’ के कोण और हिमाचल की ‘देव परंपरा’ के विरुद्ध साजिश के रूप में देखा जाना चाहिए। हिमाचल के लोगों का सड़कों पर उतरने के पीछे यही कारण है।