CAA और NRC के विरोध की असली वजह इस्लाम के ठेकेदारों की साम्राज्यवादी सोच

जो इस्लामिक 1947 में भारत में रह गए, उनके लिए हमारे मन में रत्ती भर भी निषेध नहीं है, लेकिन जो इस्लामिक थोक में दूसरे इस्लामिक मुल्कों से घुसपैठ करके भारत आ रहे हैं, उन्हें मानवता के नाते व्यक्तिगत केसों के आधार पर सीमित मात्रा में तो स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन थोक में नहीं।

Avatar Written by: January 27, 2020 4:01 pm

जो लोग समझ रहे हैं कि CAA और NRC के बारे में धर्म विशेष के लोग अभी ठीक से समझ नहीं पाए हैं या उन्हें ठीक से समझाया नहीं गया है, वे नादान हैं। सच्चाई यह है कि सब कुछ सही-सही समझ लिया गया है, इसलिए न समझने का नाटक किया जा रहा है।

caa protest

यह भली-भांति समझ लिया गया है कि इन दोनों कानूनों और प्रक्रियाओं से भारत के इस्लामिकों सहित किसी भी धर्म के किसी भी नागरिक की नागरिकता नहीं छीनी जाने वाली। लेकिन एजेंडा स्पष्ट है-

1. CAA के तहत घुसपैठियों को भी नागरिकता दो।

2. NRC के तहत एक भी घुसपैठिया निकाला नहीं जाना चाहिए।

3. यह लड़ाई लड़ लेंगे और जीत लेंगे, तो आगे कौन माई का लाल नए घुसपैठियों को देश में घुसने और नागरिकता लेने से रोक सकता है।

4. घुसपैठ निरंतर जारी रहनी चाहिए, तब तक, जब तक कि भारत भी एक पाकिस्तान न बन जाए या कम से कम एक और पाकिस्तान अलग न किया जा सके।

भारत भले धर्मनिरपेक्ष देश बना, लेकिन धर्म के नाम पर इससे एक देश अलग लिया जा चुका है, जो भूगोल और भाषा की भिन्नता के कारण बाद में दो देशों में परिवर्तित हो गया। इसलिए भारत की धर्मनिरपेक्षता का यह मतलब कतई नहीं कि वापस उन्हीं लोगों को घुसपैठ करने देकर थोक में नागरिकता प्रदान की जाए, जिनके पुरखे धर्म के नाम पर खून-खराबा करके हमारा कत्लेआम करके हमसे अलग हो चुके हैं और जिनकी घुसपैठ करने वाली पीढ़ी ने भी वह धर्म छोड़ा नहीं है।

Insurgent

पाकिस्तान और बांग्लादेश का एक धर्म विशेष के देशों के रूप में हमसे अलग विद्यमान रहना इस बात की पर्याप्त वजह मुहैया कराता है कि वहाँ से आने वाले उस धर्म के लोगों को थोक में भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती। व्यक्तिगत केस के आधार पर तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सहित दुनिया के किसी भी देश के किसी भी धर्म के व्यक्ति को भारत नागरिकता दे ही रहा है, इसलिए हमारे संविधान और देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर रत्ती भर खरोंच नहीं है।

यहां यह भी गौर करने लायक है कि जब एक धर्म विशेष के लोग भारत से गए तो जमीन, पैसा और तरह-तरह की सुविधाएं और संसाधन लेकर गए। उन्हें 20 करोड़ रुपये दे दिए जाने के बाद और 55 करोड़ रुपये दिए जाने को ही मुद्दा बनाकर नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मार दी। और केवल महात्मा गांधी नहीं, और भी 10 लाख लोग धर्म के नाम पर अलग देश लेने और ले लेने की उस सनक के कारण मारे गए, जिनके लिए आज तक न तो कोई रोया, न किसी को सज़ा हुई, न उनके नाम-पते किसी रिकॉर्ड में हैं, न इस घटना को धर्मनिरपेक्षता की हत्या, आतंकवाद और देशद्रोह के रूप में चिन्हित किया गया।

यानी धर्म के नाम पर अलग देश लेने और ले लेने की उस सनक की वजह से हमने कितना कुछ खो दिया, लेकिन आज जब उनमें से अनेक वापस भारत में घुस गए हैं, तो जो लिया था, उसे वापस करना तो दूर, उल्टे और लेने, और बदले में ढेर सारी समस्याएं देने आए हैं। यानी उधर भी ज़मीन, पैसा, संसाधन दिया, अब इधर भी दें? ऐसे तो साज़िशन भारत में घुसपैठ चलती ही रहेगी, जिससे धीरे-धीरे भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव आता ही जाएगा।

मुझे पता है कि कुछ धर्मांध, कट्टर और साम्प्रदायिक लोग इस तथ्यसम्मत टिप्पणी के लिए उल्टे मुझे ही साम्प्रदायिक कहेंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत तभी तक एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जब तक कि यहाँ गैर-इस्लामिक आबादी की बहुलता है। जैसे-जैसे इस बहुलता में कमी आएगी, वैसे-वैसे भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप खतरे में आता जाएगा। इस्लामिकों का इतिहास नहीं है कि उन्होंने कोई धर्मनिरपेक्ष देश बनाया हो और वर्तमान में भी उनके जैसे लक्षण हैं, उससे लगता नहीं कि भविष्य में भी वे कोई धर्मनिरपेक्ष देश बना सकते हैं।

इसलिए जो भी लोग भारत में धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार सुरक्षित रखना चाहते हैं, उन्हें इस बात की चिंता करनी ही होगी कि भारत की जनसांख्यिकी धीमे-धीमे बदलने न पाए। यहां यह याद रखिए कि जनसांख्यिकी केवल बच्चे पैदा करने की दर से ही नहीं, अन्य अनेक कारकों के कारण भी बदल सकती है, जिनमें इस तरह की घुसपैठ भी शामिल है, जैसी पकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हुई है।

एक मानवतावादी होने के नाते मुझे इस्लामिकों से भी उतना ही प्यार है, जितना हिंदुओं, बौद्धों, सिखों, जैनियों, ईसाइयों या अन्य धर्मों, विचारों और जातियों के लोगों से। हिंदुओं और मुसलमानों को मैं हमेशा से भारत माता की दो आँखें कहता आया हूँ और आज भी मेरे विचार यथावत हैं, लेकिन मुझे दोनों आँखों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है। ऐसा नहीं हो सकता कि मैं एक आंख से अधिक और दूसरी आँख से कम प्यार करूँ।

CAA protest

इसलिए आज मैं अगर इस बात को छिपा लूंगा कि मुझे इस्लामिक ठेकेदारों से डर लगता है, तो यह विश्व मानवता और धर्मनिरपेक्ष सोच के साथ बहुत बड़ा अन्याय और गंभीर खतरा पैदा करने के समान होगा। मुझे भरोसा नहीं कि अगर किसी भी वजह से हमारी आने वाली पीढ़ियों को इस्लामिक बहुलता या वर्चस्व वाले समाज में रहना पड़े, तो वे अपने धर्म, आस्था, सम्मान, आचरण, विचारों और धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों को बरकरार रखते हुए शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

हमारे भीतर भरोसे की इस कमी की मुख्य वजह इस्लाम का 1400 साल का क्रूरता भरा इतिहास और बर्बरता भरा वर्तमान ही है। आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और यहाँ तक कि खुद भारत के अपने कश्मीर से मारकर और बलात्कार करके भगाए गए करोड़ों अल्पसंख्यक चीख-चीख कर इस अकाट्य तथ्य की गवाही दे रहे हैं। इसके अलावा, आज भी ज़्यादातर इस्लामिक मुल्क धर्म के नाम पर एक निरंतर युद्ध और आतंकवाद से ग्रस्त हैं, जिसकी पीड़ा येन-केन-प्रकारेण आज समूचे विश्व को झेलनी पड़ रही है।

इसलिए जो इस्लामिक 1947 में भारत में रह गए, उनके लिए हमारे मन में रत्ती भर भी निषेध नहीं है, लेकिन जो इस्लामिक थोक में दूसरे इस्लामिक मुल्कों से घुसपैठ करके भारत आ रहे हैं, उन्हें मानवता के नाते व्यक्तिगत केसों के आधार पर सीमित मात्रा में तो स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन थोक में नहीं। यानी दो-चार, दस-बीस, सौ-दो सौ तो मानवता के आधार पर स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन हज़ारों, लाखों या करोड़ों में नहीं।

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सांकेतिक

इसे मेरे इस्लाम-विरोधी विचार के रूप में नहीं, बल्कि इस धरती के एक शांतिप्रिय मानवतावादी लोकतांत्रिक उदारवादी धर्मनिरपेक्ष सहिष्णु व्यक्ति के मन में इस्लाम के क्रूरतापूर्ण इतिहास, बर्बरतापूर्ण वर्तमान, असहिष्णुतापूर्ण आचरण और कट्टरतापूर्ण विचारों के कारण व्याप्त भय के रूप में देखा जाए। हो सके तो दुनिया के इस्लामिक इस भय के लिए मेरी आलोचना करने की बजाय इस बात पर विचार करें कि पूरी दुनिया में गैर-इस्लामिक लोगों को आज उनसे डर क्यों लगता है? और अगर डर पैदा करने को ही उन्होंने अपने धर्म के प्रचार और विस्तार की यूएसपी मान रखा है, तो फिर वह दिन भी दूर नहीं, जब समूची दुनिया के गैर-इस्लामिक, मानवतावादी और धर्मनिरपेक्ष लोग एकजुट होकर इस्लाम की इस साम्राज्यवादी सोच के खिलाफ बिगुल फूँक देंगे। धन्यवाद।