आखिर ऐसी क्या बात है कि हिंदू शब्द से राहुल गांधी को इतना परहेज है। राहुल गांधी की माता जी सोनिया गांधी मूलत: इटली से हैं। उनका असल नाम अंटोनिया एडवीज अल्बिना मायनो है। वह कैथोलिक क्रिश्चियन थीं। शादी के बाद जब वह भारत आईं तो उनका नाम रखा गया सोनिया गांधी। संभवत: उनकी परवरिश जिस माहौल में हुई शायद यही सबसे बड़ा कारण हो कि राहुल गांधी हिंदू शब्द से परहेज करते हैं।
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी हिन्दुओं को हिंसक बोल ही चुके हैं। दरअसल राहुल गांधी मौका पड़ने पर हिंदू हैं और मौका पड़ने पर दत्तात्रेय ब्राह्मण भी हैं। ये बात दीगर है कि उनके दादा फिरोज गांधी पारसी थे। दरअसल राहुल गांधी सेकुलर हैं, लेकिन उनका सेकुलरिज्म सीमित है। हिंदुओं की बात आने पर वह सेकुलर हो जाते हैं। ऐसा ही बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के मामले में हुआ।
राहुल गांधी ने बांग्लादेश के मामले में सिर्फ एक बयान जारी किया कि वह बांग्लादेश मामले पर सरकार के साथ हैं । जब मामले ने तूल पकड़ा तो कांग्रेस पार्टी के कम्युनिकेशन प्रमुख जयराम रमेश ने जरूर सफाई दी कि वह पहले ही इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े रहने की बात कह चुके हैं। पर, बात-बात में खुद के हिंदू होने, ब्राह्मण होने और सच्चा सनातनी होने का दावा करने वाले राहुल गांधी या उनकी पार्टी की तरफ से जारी इस बयान में जिस तरह हिंदू शब्द के प्रयोग से परहेज बरता गया है, हिंदू या हिंदुओं की जगह सिर्फ अल्पसंख्यक शब्द लिखा गया है उससे कांग्रेस की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं।
ये वही कांग्रेस है जो गाजा पट्टी पर तुरंत प्रतिक्रिया देती है। पिछले साल 9 अक्टूबर को कांग्रेस ने कांग्रेस वार्किंग कमेटी की बैठक में इजराइल पर हमास के हमले में फिलिस्तीन का समर्थन किया था। बैठक में राहुल गांधी, सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे। इसके बाद राहुल गांधी ने एक और बयान दिया था कि जिसमें राहुल गांधी ने फिलिस्तीन और इजरायल के बीच युद्ध पर कहा था कि गाजा में निर्दोष नागरिकों की हत्या, बिजली पानी में कटौती मानवता के लिए अपराध है।
बांग्लादेश के मामले में भी कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी से उम्मीद थी कि वह वहां हिंदुओं पर हुए अत्याचारों पर भी कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे। खासतौर से तब, जब वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसे बड़े संवैधानिक पद पर हैं। पर, निराशा ही मिली। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह से तमाम देशों में लोगों ने वहां पर हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई वैसा कांग्रेस ने नहीं किया, उनकी बहन प्रियंका गांधी ने जो बयान दिया उसे भी सेकुलर बयान ही कहा जा सकता है। एक बार हिंदू शब्द का प्रयोग दोनों में से किसी ने भी नहीं किया।
कांग्रेस और राहुल गांधी का यह रवैया तब है जब बांग्लादेश में मुस्लिमों के अत्याचारों का शिकार और मारे गए हिंदुओं में ज्यादातर दलित और पिछड़े वर्ग के हैं। राहुल गांधी बीते दो वर्षों से इन्हीं वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार से लड़ने का दम भरते चले आ रहे हैं। उनका अपने पिता स्व. राजीव गांधी, दादी स्व. इंदिरा गांधी और परनाना स्व. जवाहर लाल नेहरू की नीति से इतर जातिगत जनगणना को कांग्रेस के एजेंडे में शामिल करने के पीछे भी बकौल उन्हीं के शब्दों में इन्हीं वंचितों, शोषितों और पिछड़े वर्गों को अधिकार दिलाने की चिंता है। तब इस मामले पर उनकी चुप्पी और गोलमोल बातें उन पर तथा कांग्रेस पर दोहरे रवैये के आरोपों को बल ही देती हैं।
कहीं इसकी वजह मुसलमानों की नाराजगी का भय तो नहीं है? कारण, मुस्लिम तुष्टिकरण कांग्रेस का पुराना चरित्र है। शाहबानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को संसद से पलट देने से लेकर वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार दे देने, हिंदुओं के उत्पीड़न और मुस्लिमों को खुश करने के लिए सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक-2011 जैसे खतरनाक कानून को लागू करने तथा मुस्लिमों को आरक्षण देकर उन्हें प्रसन्न करने की असफल कोशिशों से जुड़ी कांग्रेस मुसलमानों को तो नाराज कर ही नहीं सकती। आखिर उसने मुस्लिमों और सनातन विरोधियों को खुश करने के लिए ही तो राम को काल्पनिक बताया था। रामसेतु तुड़वाने की असफल कोशिश सहित सनातन आस्था को अपमानित करने वाले अनगिनत काम कर रखे हैं।
दरअसल इस बार भी राहुल गांधी और कांग्रेस का बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए खुलकर नहीं बोलना उनकी चुनावी रणनीति का ही हिस्सा है। इस बार के चुनाव में जिस तरह मुस्लिमों का एकमुश्त वोट ” इंडी ” गठबंधन को मिला उससे कांग्रेस सहित मोदी विरोधी ज्यादातर दल आश्वस्त दिख रहे हैं कि उनकी एकजुटता और उनका मोदी व हिंदुत्व विरोधी अभियान देश के 15-16 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बड़े हिस्से के समर्थन की गारंटी है । इसीलिए कांग्रेस बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार तथा उनकी हत्याओं की निंदा से परहेज करती है
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।