नई दिल्ली। विख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता के हाल के इस्तीफे के बाद सोनीपत में अशोका विश्वविद्यालय (Ashoka University) के कुलाधिपति रुद्रांशु मुखर्जी ने संस्थान के मूल सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता और इसके संस्थापक और ट्रस्टियों की भूमिका पर उठाए गए सवालों का जवाब दिया है। मेहता और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यन, नरेंद्र मोदी सरकार के दो मुखर आलोचक हैं, जिन्होंने हाल ही में विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया। मुखर्जी ने कहा, “मैं इसका जवाब देना चाहता हूं। सबसे पहले कि प्रताप भानु मेहता एक करीबी निजी दोस्त हैं, जिनका मैं बहुत सम्मान करता हूं। मैं उन्हें अशोका विश्वविद्यालय लाने वालों में शामिल था, और वो यहां के कुलपति बने। उन्होंने अशोका विश्वविद्यालय के निर्माण में बहुमूल्य योगदान दिया है। यह संस्था जो आज है, उनकी वजह से है।” उन्होंने कहा, “जो कुछ भी हुआ वो ठीक नहीं था। लेकिन मुझे यकीन है कि आगे सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
मुखर्जी ने कहा, “आज जब संस्थापकों पर अकादमिक स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समझौता करने और पर्दा डालने की कोशिश के लिए हमला किया जा रहा है, तो मैं इसे चांसलर के रूप में आवश्यक रूप से देखता हूं और अशोक के साथ अपने जुड़ाव को देखते हुए, स्पष्ट रूप से यह कहता हूं कि संस्थापकों ने कभी भी शैक्षिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं किया है। संकाय सदस्यों को अपने स्वयं के पाठ्यक्रमों के निर्माण, शिक्षण और मूल्यांकन के अपने तरीकों का पालन करने के लिए पूरी छूट है।”
मुखर्जी ने कहा, “अशोका विश्वविद्यालय के मूल सिद्धांतों और संस्थापकों और ट्रस्टियों की भूमिका के बारे में प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता के हालिया इस्तीफे के बाद सवाल खड़े किए जा रहे हैं, जिसका मैं जवाब देना चाहता हूं।” उन्होंने कहा, “चांसलर के रूप में, मैं इसे अपने कर्तव्य के रूप में देखता हूं कि संस्थान के मूल सिद्धांतों का पालन पूरी तरीके से हो, क्योंकि अशोका विश्वविद्यालय इस वक्त एक कठिन दौर से गुजर रहा है।”