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भाजपा को लंबे समय तक सत्ता में बने रहना है तो अपने कोर वोटर ‘मध्यम वर्ग’ को रखना होगा साथ

भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक मध्यम वर्ग है। केंद्र में अपने पिछले दो कार्यकालों के दौरान भाजपा ने इस वर्ग के लिए कुछ खास नहीं किया जिसका खामियाजा उसे चुनाव में भुगतना पड़ा।

पिछले दो लोकसभा चुनावों से उत्साहित भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया था, लेकिन 240 सीटों पर सिमट गई। सरकार बनाने के लिए उसे साथी दलों का सहारा लेना पड़ा। सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को उत्तर प्रदेश में हुआ, जबकि महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा में भी निराशा मिली।

दरअसल, देश में भाजपा को वोट करने वाले वोटर्स में सबसे बड़ा मध्यम वर्ग है। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण वर्ग है। जब भी सरकार उसकी चिंताओं को समझने और समस्याओं का समाधान करने में विफल रहती है तो यह वर्ग सरकार बदल देता है। बीते दस सालों से मध्यम वर्ग इसी आधार पर वोट भी कर रहा है कि कौन उसकी प्राथमिकताओं को पूरा कर रहा है? तमाम काम करने के बावजूद भाजपा पिछले दस सालों में मध्यम वर्ग के लिए जो करना चाहिए था, वह नहीं कर पाई।

केंद्र सरकार में सरकारी नौकरियों के लिए अभी भी 9.64 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं, यह जानकारी 2023 के मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा और लोकसभा में दी गई थी। हर मध्यम वर्गीय परिवार की चाहत होती है कि कम से कम उसके घर से एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में जाए, लेकिन भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकारी नौकरियों की भर्ती नहीं निकलती, यदि निकलती भी हैं तो बहुत कम।

बेरोजगारी, प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक होने और अग्निवीर जैसी योजना के चलते युवा वर्ग मोदी सरकार के प्रति उदासीन रहा। वह वोट डालने नहीं गया। वेतन भोगी मध्यम वर्ग की तरफ भाजपा सरकार की तरफ से अपेक्षित ध्यान दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका भी नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा।

Maharastra People in LTT

शिक्षा की बात करें तो सरकारी यूनिवर्सिटी में सामान्य स्नातक कोर्सेस की फीस पिछले 10 सालों में लगभग ढाई गुनी हो चुकी हैं। उच्च शिक्षा की बात करें तो 2014 से पहले आईआईटी की फीस सालाना 90,000 हुआ करती थी, जो अब तकरीबन दो लाख रुपए सालाना हो चुकी है। जाहिर है, मध्यम वर्ग के परिवार के लिए इतनी फीस भरना आसान नहीं है। यह केवल फीस है। इसके अलावा पढ़ाई के अन्य खर्च होते हैं।

भारत में इनकम टैक्स भरने के बदले टैक्सपेयर को सुविधा क्या मिलती है? कुछ नहीं। यदि कोई व्यक्ति एक कार भी खरीदने जाता है तो उसे 28 प्रतिशत जीएसटी चुकाना होता है। टैक्स भरने के बाद भी उसको हर चीज पर टैक्स देना पड़ता है क्यों? स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति देश में बहुत अच्छी है नहीं, ऐसे में यदि कोई हेल्थ इंश्योरेंस भी करवाता है तो भी उसे 18 प्रतिशत जीएसटी चुकाना होता है, इनकम टैक्स में छूट की सीमा को पिछले पांच सालों से नहीं बढ़ाया गया है, यह भी मध्यम वर्ग का एक बड़ा सवाल है। बजट में वित्त मंत्री की तरफ से टैक्स भरने वाले इस वर्ग को बस एक थैंक्यू के सिवा कुछ नहीं मिला। इसके चलते वेतन भोगी मध्यम वर्ग भाजपा से इस बार काफी हद तक छिटका रहा। उसने भाजपा के विरोध में भले ही वोट नहीं दिया हो, लेकिन वह उसके पक्ष में वोट डालने बाहर भी नहीं निकला।

भारत में रेलवे को ट्रांसपोर्ट का सस्ता साधन माना जाता रहा है। साल 2020 में कोरोना महामारी आने से पहले रेलवे में न्यूनतम किराया 10 रुपए था। इसके बाद रेलवे ने न्यूनतम किराया तीन गुना बढ़ाकर 10 रुपए से 30 रुपए कर दिया। सीनियर सिटीजन के लिए रेलवे में पहले 50 प्रतिशत छूट दी जाती थी, लेकिन कोरोना काल में इसको बंद कर दिया गया, जबकि इसमें बहुत खर्चा नहीं आता था।

निचले लेवल पर हो रहे भ्रष्टाचार से भी मध्यम वर्ग को कोई राहत नहीं मिल पाई है। अफसरशाही आज भी बहुत हावी है। भाजपा सरकार में सिंगल विंडो समाधान की बात कही गई थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। सरकारी दफ्तरों में लोगों को आज भी लगातार चक्कर काटने पड़ते हैं।

लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे ज्यादा सीटें तो जीत गई लेकिन अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई। यदि भाजपा को अपनी स्थिति में सुधार करना है तो उसे अपने सबसे बड़े वोट बैंक मध्यम वर्ग के लिए काम करना होगा, उनको फायदा पहुंचाने वाली योजनाएं लानी होंगी और उनको साधना होगा। ऐसा न हो सकने की स्थिति में यदि यह वर्ग छिटक गया तो अगली बार भाजपा को इतनी भी सीटें ला पाना मुश्किल हो जायेगा।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।