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धाार्मिक आधार पर जनसांख्यिकी असंतुलन के भयावह परिणाम हो सकते हैं, नजरअंदाज करना ठीक नहीं

जनसंख्या संतुलन सामाजिक संतुलन का आधार है। यह संतुलन लिंग, आर्थिक और क्षेत्रीय कार्य के आधार पर बनता है, जो ऐसे समाज का आधार तैयार करता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पहचान, उपासना पद्धति और मत-पंथ महत्वपूर्ण आयाम हो सकते हैं

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा “धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण” नाम से आई रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर विपक्ष सवाल उठाकर नफरत फैलाने की कोशिश तो बता रहा है लेकिन इस रिपोर्ट को नकार नहीं रहा है, आखिर क्यों, क्योंकि जो रिपोर्ट में कहा गया वह सही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इस रिपोर्ट के आने पर बेरोजगारी, किसानों, महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर तो बात किए जाने की वकालत कर रही हैं लेकिन इस रिपोर्ट को नकार नहीं रही हैं। इस रिपोर्ट के प्रत्युत्तर में कोई सार्थक तर्कसंगत बयान विपक्ष के पास है ही नहीं।

दरअसल सत्य यही है कि देश का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। जनसंख्या संतुलन सामाजिक संतुलन का आधार है। यह संतुलन लिंग, आर्थिक और क्षेत्रीय कार्य के आधार पर बनता है, जो ऐसे समाज का आधार तैयार करता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की पहचान, उपासना पद्धति और मत-पंथ महत्वपूर्ण आयाम हो सकते हैं। इसलिए जनसंख्या के साथ इन चीजों का तालमेल बहुत आवश्यक है। यदि तालमेल नहीं रहा तो सामाजिक ढांचा गड़बड़ा सकता है।

जो रिपोर्ट जारी की गए है उसमें स्पष्ट कहा गया है कि भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसद घट गई। वहीं इसी बीच मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसद बढ़ोतरी दर्ज की गई। हिंदुओं की आबादी घटने का सिलसिला पड़ोसी हिंदू बहुल देश नेपाल में भी देखने को मिला है। साथ ही म्यांमार में भी बहुसंख्यक बौद्धों की आबादी में भी गिरावट आई है।

बता दें कि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव का अध्ययन किया है। परिषद ने यह रिपोर्ट जारी की है। इन देशों में बहुसंख्यक उन्हें माना गया है, जिनकी आबादी 75 फीसद से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में 65 सालों में बहुसंख्यकों की आबादी में 22 फीसद की कमी आई है। लेकिन यह सिलसिला मुस्लिम बहुसंख्यक देशों पर लागू नहीं होता है। मुस्लिम बहुल 38 देशों में मुस्लिम आबादी बढ़ी है। रिपोर्ट का उद्देश्य किसी देश की जनसांख्यिकी परिवर्तन का वहां की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और शासन प्रणाली पर पड़ने वाले असर का आंकलन है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है पूरे विश्व में हो रहा है। डच दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ ईवा व्लार्डिंगरब्रोक ने अपने एक भाषण में बताती हैं कि यूरोपियन देशों में मिडिल ईस्ट से आने वाले शरणार्थी मुसलमानों की संख्या से वहां भी परिस्थियां विषम होती जा रही हैं। उन्होंने बताया था कि लंदन में 54 प्रतिशत, ब्रुसेल्स में 70 प्रतिशत, एम्सटर्डम में 56 प्रतिशत, द हेग में 58 प्रतिशत इनकी संख्या हो चुकी है। इसके चलते वहां का पारिस्थितिक तंत्र भी बदल रहा है।

11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा में अपने एक भाषण में मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था, ‘‘आप स्वतंत्र हैं आप अपने मंदिरों में जा सकते हैं, आप अपनी मस्जिदों में जा सकते हैं या पाकिस्तान के इस राज्य में किसी भी अन्य पूजास्थल पर जा सकते हैं। आप किसी भी मजहब, जाति या संप्रदाय के हो सकते हैं, इससे राज्य का कोई लेना-देना नहीं है।’’ जिन्ना ने जैसा कहा था वैसा वहां हुआ नहीं। आजादी के वक्त यानी 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की कुल आबादी 20.05 प्रतिशत थी। जो 1.6 पर्सेंट प्रतिशत पर पहुंच गई है। आखिर हिंदू चले कहां गए, तो इसका जवाब है ज्यादातर हिंदुओं ने दबाव में आकर इस्लाम अपना लिया। ह्यूमन राइट कमीशन पाकिस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 1000 लड़कियों का धर्मांतरण जबरन कराया जाता है। इनमें ज्यादातर बच्चियों की उम्र 14 से 20 साल के बीच होती है।

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भारत में रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाने से पहले विपक्ष ये जान ले कि यह आंकड़ें सिर्फ भारतीय मुसलमानों के हैं, घुसपैठियों की संख्या तो अभी सामने ही नहीं आई है। आंकड़ों की बात करें तो पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आठ सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी 30 से 40 प्रतिशत तक हो गई है। पश्चिम बंगाल के 8 सीमावर्ती जिलों में 1971 से लगातार बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये बस रहे हैं। 1977 से 2011 तक 34 साल तक रही वाममोर्चा सरकार ने इस घुसपैठ को रोकने के बजाय घुसपैठियों को मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड उपलब्ध कराने के साथ ही आवास, जमीन के पट्टे आदि भी दिए। इसकी एवज में 2006 तक वाममोर्चे को एकमुश्त मुस्लिम वोट मिला लेकिन 2007 में नंदीग्राम हिंसा के बाद यह मुस्लिम वोट बैंक तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में चला गया। सीमावर्ती 8 जिलों उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद, नादिया, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हावड़ा में 35 से 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी हो गई है।

इसी तरह उत्तराखंड में भी लगातार मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। 2001 में राज्य में मुस्लिम आबादी 11.9 प्रतिशत थी, 2011 में 13.9 प्रतिशत थी और अब 2022 तक इसके 16 प्रतिशत तक हो जाने का अनुमान है। उत्तराखंड भारत में असम के बाद सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी वाला राज्य हो गया है। भारत के अन्य कई राज्यों जैसे केरल, बिहार आदि में भी यही स्थिति है। यह रिपोर्ट इस बात की तरफ इशारा करती है कि जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। जब भी कहीं ऐसा होता है तो इससे उस राष्ट्र की मूल संस्कृति, परंपराओं के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा होने पर तेजी से जिनकी जनसंख्या बढ़ती है वह धीरे-धीरे उस क्षेत्र की धार्मिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं जनसांख्यिकी पर वर्चस्व स्थापित कर उस पर कब्जा जमा लेते हैं। इसके दौरान आपसी संघर्ष और कलह की स्थिति निर्मित होने का खतरा रहता है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।