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चुनाव के अंतिम दौर में हुआ खिसकती जमीन का अंदाजा, इसलिए घोषणा पर घोषणा कर रही कांग्रेस

राहुल गांधी जानते हैं कि चुनाव बाद परिणाम क्या रहने वाला है। वह यह भी जानते हैं कि कांग्रेस का कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं होने वाला। चार चरण के चुनावों में कांग्रेस को अपनी स्थिति पता चल चुकी है। इसलिए वह घोषणा पर घोषणा कर रहे हैं, लेकिन जनता सब जानती है और सबको पहचानती है।

एक कहावत है कि “का वर्षा जब कृषि सुखानी” कहावत का अर्थ है :- समय बीतने पर सहायता व्यर्थ है। इस कहावत को राहुल गांधी के संदर्भ में यहां पर लिखे जाना बेहद जरूरी हो जाता है, जबकि देश में चुनाव चल रहे हैं और राहुल गांधी लगातार घोषणाओं पर घोषणाएं किए जा रहे हैं। देश में चुनाव का आज पांचवा चरण है। दो चरण और बाकी हैं। चार जून को आने वाले नतीजे विपक्ष के दावों की पोल खोल देंगे। विपक्षी दल जो अभी तक आस लगाए बैठे हैं कि चुनावों के बाद भाजपा के हाथों में सत्ता नहीं रहेगी, उनको खासा झटका लगने वाला है। कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही होना है।

संभवत: कांग्रेस इस बात को समझ चुकी है और राहुल गांधी भी इस बात को समझ चुके हैं। राहुल गांधी ने चुनाव में बहुत सारी गारंटियां दीं, लेकिन उनका असर होता दिखाई नहीं दिया। राहुल गांधी और समूची कांग्रेस मोदी जी द्वारा कोरोना काल में शुरू की गई जिस मुफ्त राशन योजना का मजाक उड़ाते थे, चुनाव का अंत आते—आते अब राहुल गांधी उसी योजना को आधार बनाकर हर महीने गरीबों को दोगुना मुफ्त अनाज देने की बात कर रहे हैं। पिछले दिनों चुनावी रैली में प्रियंका गांधी ने भी कहा था कि हम आपको निर्भर नहीं, आत्मनिर्भर बनाने में विश्वास रखते हैं। अब जब कांग्रेस को पता लग गया है कि उसकी जमीन खिसक चुकी है वह घोषणाएं करके लोगों को अपने साथ लाना चाहते हैं तो यह कांग्रेस की गलतफहमी है कि लोग उनके बहकावे में आएंगे।
2019 के  चुनावों में भी कांग्रेस ने हर महीने गरीब महिलाओं को छह हजार रुपए देने की बात कही थी, लेकिन जनता ने उनकी नहीं सुनी। इस बार वह फिर से गरीब महिलाओं को हर महीने 8 हजार 500 रुपए देने की बात कर रहे हैं, दरअसल जनता ने कांग्रेस को 2019 में भी नकारा था और अब 2024 में भी नकारने वाली है। कांग्रेस जनता का विश्वास खो चुकी है। धड़ाधड़ घोषणाएं कर जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे राहुल गांधी को पता होना चाहिए कि वे उसी कांग्रेस पार्टी के नेता हैं जिसके राज में 2011 में कहा गया था कि 32 रुपए रोजाना खर्च करने वाला गरीब नहीं हैं। बाकायदा इस विषय में योजना आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर किया था।

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उस हलफनामें कहा गया था कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु या चेन्नई में अगर चार लोगों का परिवार महीने में 3860 रुपये से ज्यादा खर्च करता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। शहरों में जो 965 रुपए प्रति माह खर्च करते हैं। यानी शहरों में जो 32 रुपए प्रति दिन खर्च करते हैं वो गरीब नहीं है। गांवों में जो 781 रुपए प्रति माह खर्च करते हैं गरीब नहीं है। गांवों में जो हर दिन 26 रुपए खर्च करते हैं वो गरीब नहीं हैं। ये हलफनामा कांग्रेस सरकार में योजना आयोग ने 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में दिया था।

अब कोई राहुल गांधी जी से पूछे आपकी सरकार रोज 32 रुपए कमाने वाले को गरीब नहीं मानती थी और वह देश से गरीबी हटाने की बात करते हैं।  गरीबी कैसे हटाएंगे इसका कोई जवाब राहुल गांधी के पास नहीं है। जनता यह जानती है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राहुल गांधी वायदे पर वायदे इसलिए कर रहे हैं कि चुनाव के पिछले चार चरणों में उनकी स्थिति उनको पता लग गई है। यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि कांग्रेस को इस चुनाव से बहुत फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। इसलिए राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता घोषणावीर बने हुए हैं कि कहीं से कुछ तो बटोर लें। सत्ता तो आनी है नहीं कम से कम कुछ सीट ही कांग्रेस की बढ़ जाए। लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है, क्योंकि जनता सब कुछ जानती है। जनता जानती है कि मोदी सरकार में  शुरू की गई विभिन्न लाभकारी योजनाओं से उसे कितना फायदा हुआ है। कोरोना काल में शुरू की गई मुफ्त राशन योजना, हर गांव में सबको पक्के मकान देने की प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, और भी कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका लाभ आम जनता को हुआ है।

कोरोना काल में जब सब कुछ थम गया था, ऐसे में गरीबों के लिए शुरू की गई मुफ्त राशन योजना बड़ी क्रांतिकारी सिद्ध हुई है। मोदी सरकार ने कोरोना काल में गरीबों को भोजन के संकट से बचाने के लिए मुफ्त राशन की सुविधा मुहैया कराई थी। कोरोना काल के बाद से लगातार केंद्र सरकार मुफ्त राशन की सुविधा दे रही है। इस योजना के तहत करीब 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है। अब इस योजना को 2028 तक बढ़ा दिया गया है। इस पर जो खर्च होगा उसकी अनुमानित लागत 11.8 लाख करोड़ रुपए है। मोदी को सत्ता से हटाने का सपना देख रही कांग्रेस को यह पता होना चाहिए कि समय पर दी गई सहायता लोग याद रखते हैं। कोरे वायदे करने से कुछ नहीं होता। इसके लिए धरातल पर उतरकर काम करना पड़ता है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।