
चुनाव समाप्ति की ओर है। 4 जून को नतीजे जनता के सामने होंगे। पिछले एक दशक यानी 2014 से 2024 तक विपक्षी लगभग हर चुनाव हारते आ रहे हैं। फिर चाहे वह विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव। हर बार विपक्ष दावा करता है कि इस बार भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकेगे, लेकिन होता उसका उलट ही है। पीएम मोदी के नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति के सामने विपक्ष चारों खाने चित है। विपक्ष पहले ही हार मान चुका है। विपक्ष जानता है कि किसी भी सूरत में एनडीए का विजय रथ रोक पाना मुश्किल है। हार के बहाने तलाशने के लिए ही एक जून को इंडी गठबंधन ने दिल्ली में बैठक रखी है, क्योंकि यदि इंडी गठबंधन को जीत का जरा भी भरोसा होता तो इतनी जल्दबाजी में बैठक नहीं बुलाई गई होती। जाहिर है इंडी गठबंधन चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है, क्योंकि नतीजे क्या होंगे यह उन्हें पहले से ही मालूम हैं।
लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में एक जून को 57 सीटों पर चुनाव है। इसमें बिहार, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल है। जिस दिन वोटिंग होनी है, कांग्रेस अध्यक्ष और संसद में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने, उसी दिन यानी एक जून को इंडिया ब्लॉक के नेताओं की बैठक बुलाई है। कहा जा रहा है कि यह बैठक लोकसभा चुनाव पर चर्चा और समीक्षा के लिए बुलाई गई है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है? सही मायनों में देखें तो यह बैठक लोकसभा चुनाव पर चर्चा और समीक्षा करने के लिए नहीं बुलाई गई है। यह बैठक बुलाई गई कि चुनाव में आसन्न हार का ठीकरा अब किस तरह और किस पर फोड़ा जाए, क्योंकि इंडी गठबंधन के तमाम नेता यह जान चुके हैं कि वह बुरी तरह से चुनाव हार रहे हैं। पहले और दूसरे चरण के मतदान में हुई थोड़ी कम वोटिंग के बाद विपक्ष ने प्रयास किया था कि वह एनडीए गठबंधन पर दबाव बनाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। चुनाव अपनी गति से चलता रहा और भाजपा अपनी रणनीति से चलती रही।
दरअसल इस बार भाजपा ने नारा दिया था ”अब की बार 400 पार” पूरा विपक्ष चुनाव लड़ने की बजाए बस इसी पर लगा रहा कि किसी भी तरह 400 सीटें पार न हों। चुनाव जीतना उनकी प्राथमिकता ही नहीं रही बल्कि प्राथमिकता यह रही कि एनडीए गठबंधन किसी भी तरह 400 सीट पार न कर जाए। इसका सीधा सा अर्थ है तमाम मुद्दों को लेकर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे विपक्ष के पास कोई मुद्दा था ही नहीं। जैसे ही भाजपा ने इस बार नारा दिया ”अब की बार 400 पार” इसके चलते विपक्ष मनोवैज्ञानिक तौर पर पहले ही चुनाव हार गया। चुनाव के पिछले छह चरणों को देखते हैं तो पहले से लेकर छठे तक हर चरण के बाद विपक्ष हताश और हताश पड़ता गया। अब जबकि विपक्ष जानता है कि चार जून को नतीजे उसके पक्ष में नहीं आ रहे हैं तो दिल्ली में इंडी गठबंधन की बैठक रख ली।
एक जून को चुनाव है, इसी दिन शाम को एक्जिट पोल भी जारी हो जाएंगे, उस समय टीवी चैनलों पर और डिबेट में कैसे इन आंकड़ों को झुठलाना है, कैसे ईवीएम पर दोषारोपण करना है। कैसे मुख्य मुद्दों से हटकर अनर्गल बातें करनी है। कैसे अपनी हार को छिपाना है। कैसे हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना है। इन्हीं सब बातों पर विचार करने के लिए यह बैठक बुलाई गई है। यदि केवल लोकसभा चुनावों की चर्चा और उसकी समीक्षा की बात थी तो यह बैठक चार जून को या उसके बाद भी बुलाई जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक जून को देश के लोगों के सामने अपनी हार को लेकर कैसे बातें रखनी है यह बैठक इस पर चर्चा के लिए बुलाई गई है।
इंडी गठबंधन में शामिल ममता बनर्जी से स्पष्ट मना कर दिया है कि वह एक जून को बैठक में शामिल नहीं होना चाहती, क्योंकि ममता बनर्जी चाहती हैं कि उनका पश्चिम बंगाल में जो भी जनाधार है वह उनके साथ बना रहे, इसलिए उन्होंने बीच चुनाव में पश्चिम बंगाल न छोड़ने का फैसला कर समझदारी दिखाई है। एक जून को अरविंद केजरीवाल को वापस जेल में जाना लगभग तय है, उनकी अंतरिम जमानत की अवधि इसी दिन समाप्त हो रही है। दिल्ली में कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन को लेकर भी उन्होंने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि यह यह गठबंधन अस्थाई है, उन्होंने कहा है कि कांग्रेस के साथ न ही लव मैरिज की है, न ही अरेंज मैरिज। केजरीवाल का संदेश साफ है वह आगे शायद कांग्रेस के साथ गठबंधन न रखें। कांग्रेस को छोड़कर इंडी गठबंधन में शामिल अन्य दल भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं, जो किसी राज्य में अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में इंडी गठबंधन भी आगे कायम रह पाएगा यह कहना भी मुश्किल है। बहरहाल इतना तो कहा ही जा सकता है कि हताश और निराश विपक्ष अब सामने दिखाई दे रही हार को लेकर मुंह छिपाने का रास्ता तलाश कर रहा है। संभवत: इन्हीं सब बातों पर चर्चा करने के लिए यह बैठक बुलाई गई है।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।