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“Sarkari Katl-e-Aam 1984”: 84 के दंगे पर निर्माता निर्देशक विक्रम संधू की फ़िल्म “सरकारी कत्ल-ए-आम 1984” का रेफरेंस टीज़र लॉन्च

नई दिल्ली। 1984 की वो घटना आज भी लोग याद करके सहम जाते हैं, जो सिखों के लिए ज़ुल्म, अत्याचार और बर्बादी का साल कहलाता है। – यह हिंदी फीचर फिल्म वीएस फ़िल्म वर्ल्डवाइड के बैनर तले बनाई जा रही है। इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति और सेलेब्रिटीज़ भी मौजूद रहे।फ़िल्म का टीज़र उसी …

नई दिल्ली। 1984 की वो घटना आज भी लोग याद करके सहम जाते हैं, जो सिखों के लिए ज़ुल्म, अत्याचार और बर्बादी का साल कहलाता है। – यह हिंदी फीचर फिल्म वीएस फ़िल्म वर्ल्डवाइड के बैनर तले बनाई जा रही है। इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति और सेलेब्रिटीज़ भी मौजूद रहे।फ़िल्म का टीज़र उसी जगह पर लांच किया गया, जहां पर उन सिखों की याद में मेमोरियल बनाया गया है।

Sikh riots old pic

आरजे अनुराग पाण्डेय ने इस इवेंट को होस्ट किया जबकि यहां अली असगर, दीपक कुमार, दीपराज राणा, संजय स्वराज, जान्हवी वोरा, गुलशन पाण्डेय, संजीव जोतंगिया, दिव्या लक्ष्मी, पम्मी बाई (पंजाबी ऎक्टर), हॉबी धारीवाल, राज धारीवाल और तरुण मेदान (स्पेशल गेस्ट पंचकूला) की उपस्थिति देखी गई। सम्मानीय डेलीगेट्स में सरदार मजिन्दर सिंह सिरसा (भाजपा के राष्ट्रीय सचिव), सरदार हरप्रीत सिंह कालका (अध्यक्ष सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी), सरदार जगदीप सिंह कहलोन (जेनरल सेक्रेटरी, दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी), सरदार हरविंदर सिंह फुल्का (एडवोकेट 1984 के सिख विरोधी दंगे), पदमश्री सरदार जगजीत सिंह दर्दी, सरदार भूपेंद्र सिंह भुलर, सरदार डॉ रवेल सिंह का नाम उल्लेखनीय है।

Sikh riots

इस फ़िल्म को वीएस फिल्म्स के विक्रम संधू प्रोड्यूस और डायरेक्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 84 के दंगों की बात सुनकर आज भी मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। मैं भी सिख समुदाय से हूँ और मेरे पूर्वजो ने भी उस दर्द को झेला है। मैंने बहुत पहले सोच लिया था कि इस सच्चाई को मैं पर्दे पर एक दिन दिखाऊंगा। आज मैं ने हिम्मत और हौसला करके इसकी शुरुआत कर दी है। इस कार्यक्रम में उस घटना में शहीद हुए लोगों की विधवाओं को विक्रम संधू ने शॉल और किट्स देकर सम्मानित किया।

वहीं, इस खास मौके पर पीड़ितों ने भी न्यूजरूम पोस्ट से बातचीत के दौरान अपना वर्षों पुराना दर्द साझा किया। एक पीड़िता ने बताया कि कैसे इस दंगे ने उनके परिवार को उजाड़ दिया। उस समय लोग एक-दूसरे के खून के प्यास हो गए थे। सरकार और प्रशासन लाचार नजर आ रही थी। उस वक्त कइयों ने अपनों को खोया जिसकी टिस आज तक लोगों के जेहन में हैं। उस वक्त में हमने दंगाइयों से बहुत मिन्नतें कीं कि हमें मत कुछ कहिए। आपको हमारे घर का जो कुछ ले जाना है। आप ले जाइए, लेकिन हमारे परिवार को कुछ मत कहिए, लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी। इस तरह से कई पीड़ितों ने अपना दर्द न्यूजरूम पोस्ट से बातचीत के दौरान साझा किया।