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Boycott Brahmastra: ब्रह्मास्त्र के नाम पर लव स्टोरी दिखाना दर्शकों को नही आया रास, 10 साल में 400 करोड़ लगा कर ये क्या बना दिया बॉलीवुड ने ?

Boycott Brahmastra: ब्रह्मास्त्र के नाम पर लव स्टोरी दिखाना दर्शकों को नही आया रास, 10 साल में 400 करोड़ लगा कर ये क्या बना दिया बॉलीवुड ने ? यहां हम आपको बताएंगे आखिर कैसे फिल्म के माध्यम से दर्शकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है।

नई दिल्ली। ब्रह्मास्त्र (Brhmastra) फिल्म सिनेमाघर में रिलीज़ हो गई है। फिल्म के रिलीज़ होने से पहले बड़ी-बड़ी बातें फिल्म को लेकर की जा रही थीं। ऐसा बताया जा रहा था कि ये एक बहुत बड़ी फिल्म है जिसमें उच्च तरह के इफेक्ट्स (High Visual Effects)  डाले गए हैं। जिसकी कहानी आध्यात्म (Spirituality) और हमारे भारतीय संस्कृति (Indian Culture) पे आधारित है। आपको बता दें इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है। कहीं भी फिल्म न ही आध्यात्म की बात करती है और न ही विसुअल लेवल पर फिल्म उतनी शानदार है। फिल्म देखने पर साफ़ साफ़ लगता है कि फिल्म की जो कहानी आज से पहले बनी हुई थी, जिसका नाम ड्रैगन था जिसका विषय रूमी से जुड़ा हुआ था। फिल्म देखने के बाद फिल्म में नज़र भी वही आता है। फिल्म एक आध्यात्म की कहानी कहने के बजाय आलिया (Alia Bhatt) और रणबीर (Ranbir Kapoor) के लव (Love) के बीच में टिकी रह जाती है। यहां हम आपको बताएंगे आखिर कैसे फिल्म के माध्यम से दर्शकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है।

आपको बता दें जब इस फिल्म को लेकर प्रमोशन चल रहे थे तब काफी कुछ फिल्म के बारे में बोला जा रहा था। दर्शकों से काफी वादे भी किए जा रहे थे। बड़ी-बड़ी बातें की जा रही थी। ऐसा बोला जा रहा था कि फिल्म को दस साल में बनाया गया है फिल्म में काफी मेहनत लगी है। लेकिन वो मेहनत और काम कहीं भी स्क्रीन पर दिखता नहीं है। दस साल से बन रही फिल्म की कहानी में कुछ भी नहीं है। वहीं फिल्म में जो इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया है वहां भी कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। ऐसा सुनने में आ रहा था कि शायद, कहानी हमें हल्की-फुलकी देखने को मिले लेकिन वीएफएक्स तो अच्छे होंगे लकिन फिल्म वहां पर भी आपको निराश करती है।

इसके अलावा फिल्म में आलिया और रणबीर का सिर्फ प्यार (Love) देखने को मिलता है। आपको सिर्फ देखने को मिलता है कि आलिया भी प्यार का इजहार कर लेती हैं और रणबीर भी प्यार का इजहार कर लेते हैं। प्यार को भी इतने बेहूदे ढंग से लिखा और दिखाया गया है कि लगता है कि इससे अच्छी पटकथा (Screenplay) तो शायद कोई नया व्यक्ति लिखा लेता। क्योंकि जिस तरह से प्यार को दिखाया गया है वो आपको जोड़ता नहीं है। एक तरह से फिल्म पूरी आलिया और रणबीर पर ही केंद्रित रह जाती है। उनके किरदार को आप भूल जाते हो और आलिया -रणबीर को फिल्म में देख रहे होते हो। फिल्म में उनकी एक्टिंग पूरी तरह से बोगस है।

इसके अलावा इस फिल्म का नाम ब्रह्मास्त्र है लेकिन इस फिल्म में प्यार के सिवा कुछ भी नहीं है। प्यार पर कुछ संवाद भी हैं। जिसका हिस्सा अमिताभ बच्चन भी बनते हैं लेकिन उनके हिस्से के भी संवाद सिर्फ फीके ही नही बेस्वाद भी हैं। फिल्म में सिर्फ प्रेम, प्यार, प्यार की ताकत यही सब देखने को मिलता है। कहीं भी ब्रह्मास्त्र और उसकी महत्ता का वर्णन देखने को नहीं मिलता है। आपको कुछ संवाद बताएंगे जिसे आपको पता चलेगा ये फिल्म रूमी के विषय से कितनी मिलती जुलती है –

“प्यार से खूबसूरत कुछ नहीं है इस दुनिया में”

“प्यार से बड़ा कोई ब्रह्मास्त्र नहीं है दुनिया में”

अब यहां पर राइटर और डायरेक्टर से सवाल बनता है कि अगर प्यार ही सबसे ऊंचा था तो इस फिल्म का नाम ब्रह्मास्त्र क्यों रखा ? आप इस फिल्म का नाम ड्रैगन रख देते और फिर प्यार की ताकत दिखाते। ये तो वैसे ही हुआ कि बेच कुछ और रहे हैं और माल अंदर वो है ही नहीं जिसे दर्शक ख़रीदने आए हैं। कहीं भी अस्त्रों की ताकत या अस्त्रों के बारे में कुछ भी बताया नहीं गया है। सबको सबकुछ बस यूं ही मिल गया है। उसको क्यों मिला ? कहां से मिला ? इन्हीं को क्यों मिला ? इन सवालों के कोई जवाब फिल्म में नहीं हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि फिल्म में अध्यात्म और हिन्दू धर्म को लेकर कुछ नहीं है हालाँकि प्रेम को दिखाने की भरपूर कोशिश की गई है जो कि फिल्म को रूमी वाले विषय से जोड़ती है जो इस कहानी का पहले विषय था। इस प्रकार से कहीं न कहीं दर्शकों को ये अंदाजा हो गया है कि ब्रह्मास्त्र एक हिन्दू धर्म से जुड़ी हुई मूवी नहीं है बल्कि इसे सिर्फ हिन्दू धर्म से जोड़कर बेचा गया है और दर्शकों को बेवकूफ बनाया गया है।