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Problem In Politics: बिहार में सत्ता बदलने के बाद दोराहे पर राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, क्या उठाएंगे सोमनाथ की तरह कदम?

हरिवंश फिलहाल अपने पद पर हैं। उन्हें लेकर जेडीयू की तरफ से कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। हरिवंश ने पत्रकार रहते बिहार से जुड़े मुद्दों को हमेशा अपने अखबार में उठाया। इसी से वो नीतीश कुमार की नजरों में चढ़े और फिर उनके करीबी बने।

नई दिल्ली। बिहार में सत्ता परिवर्तन के कारण पत्रकार से नेता बने एक बड़े शख्सियत की किस्मत भी दांव पर लग गई है। उनका नाम हरिवंश नारायण सिंह है। हरिवंश पहले हिंदी अखबार ‘प्रभात खबर’ के संपादक थे। इसके बाद वो नीतीश कुमार के करीबी बने और फिर जेडीयू की तरफ से राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद सदन के उप सभापति बनाए गए। अब बीजेपी से जेडीयू या कहें कि नीतीश कुमार का अलगाव हो चुका है। ऐसे में सबकी नजरें हरिवंश पर हैं कि वो पद छोड़ते हैं या नहीं। हरिवंश को साल 2020 में एनडीए उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा का दोबारा उप सभापति चुना गया था। वो सदन के तीसरे गैर कांग्रेसी उप सभापति हैं।

harivansh and nitish 1

हरिवंश फिलहाल अपने पद पर हैं। उन्हें लेकर जेडीयू की तरफ से कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। हरिवंश ने पत्रकार रहते बिहार से जुड़े मुद्दों को हमेशा अपने अखबार में उठाया। इसी से वो नीतीश कुमार की नजरों में चढ़े और फिर उनके करीबी बने। अखबार का संपादक पद छोड़ने के बाद हरिवंश को नीतीश ने जेडीयू की सदस्यता दिलाकर महासचिव बनाया था और फिर साल 2014 में राज्यसभा भी भेजा था। उस दौरान बीजेपी और नीतीश के बीच कोई दिक्कत नहीं थी और हरिवंश आसानी से दोनों बार ही उप सभापति चुन लिए गए थे। अब सबकी नजर इसपर है कि क्या वो नीतीश का साथ देते हैं, या अपनी कोई अलग राह चुनते हैं और पद पर बने रहते हैं।

somnath chatterjee

ऐसी ही समस्या यूपीए-1 के दौरान तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष और वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी के सामने भी आई थी। यूपीए-1 के दौरान भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु मामले में संधि की थी। इसपर वामदलों ने कांग्रेस नीत सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उस वक्त सोमनाथ चटर्जी को उनकी पार्टी सीपीएम ने लोकसभा स्पीकर पद से इस्तीफा देने के लिए कहा। सोमनाथ चटर्जी ने इस पर कहा कि स्पीकर किसी दल का नहीं होता। इसके बाद सीपीएम से उन्हें निकाल दिया गया था। अपना कार्यकाल पूरा होने पर सोमनाथ ने राजनीति से ही संन्यास ले लिया था। ऐसे में तमाम कयास इसके भी लग रहे हैं कि क्या हरिवंश भी आखिरकार सोमनाथ चटर्जी की राह ही पकड़ेंगे?