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Shri Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute Case : श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष को एक और झटका, रिकॉल याचिका खारिज

Shri Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute Case : इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने सभी 15 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का आदेश बरकरार रखा। हिंदू पक्ष जहां इस फैसले को बड़ी जीत मान रहा है तो वहीं मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कर रहा है। केस की अगली सुनवाई अब 6 नवम्बर को होगी।

नई दिल्ली। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष को आज एक बार फिर झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल रिकॉल अर्जी को खारिज कर दिया। जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने सभी 15 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का आदेश बरकरार रखा। इस केस की अगली सुनवाई अब दीपावली के बाद 6 नवम्बर को दोपहर 2 बजे होगी। हिंदू पक्ष जहां इस फैसले को बड़ी जीत मान रहा है तो वहीं मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कर रहा है।

हिंदू पक्ष के वकील सौरभ तिवारी ने बताया कि हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की रिकॉल याचिका खारिज कर दी है। यह हिंदू पक्ष की बड़ी जीत है और हमें विश्वास है कि अब मुकदमा बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि मुस्लिम पक्ष ने कार्यवाही में देरी करने के लिए बाधा डालने के उद्देश्य से रिकॉल याचिका दाखिल की गई थी। अब हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है और यह दोनों पक्षों के हित में है। वहीं, शाही ईदगाह मस्जिद, मथुरा के सचिव तनवीर अहमद ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हमारी रिकॉल अर्जी को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश की प्रति मिलने पर हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

इससे पहले हाईकोर्ट ने एक अगस्त को भी मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-हिंदू पक्ष की ओर से दायर सभी 18 याचिकाएं एक साथ सुनी जाएंगी। हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल याचिकाओं में शाही ईदगाह मस्जिद को श्री कृष्ण जन्म स्थान बताते हुए उसे हिंदुओं को सौंपे जाने की मांग की गई है। हिंदू पक्ष के अनुसार ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ का क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है। मंदिर तो तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण किया गया था। वहीं मुस्लिम पक्ष की है कि विवादित जमीन को लेकर दोनों पक्षों में 1968 में समझौता हुआ था लिहाजा 60 साल बाद समझौते को गलत बताना पूरी तरह अनुचित है इसलिए यह मुकदमा चलने योग्य ही नहीं है।