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Ravindranath Tagore: रवींद्र नाथ टैगोर की जयंती आज, जानिए किसने दी उन्हें गुरुदेव की उपाधि

Ravindranath Tagore: रवींद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा कोलकाता के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उसके बाद इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में बैरिस्टरी की। उसके बाद लन्दन विश्वविद्यालय में कानून के अध्ययन के लिए उन्होंने दाखिला लिया लेकिन वर्ष 1880 में बिना डिग्री लिए भारत वापस लौट आए।

नई दिल्ली। आज राष्ट्रगान निर्माता रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती है। अपनी रचनाओं से भारतीय साहित्य के खजाने की वृद्धि करने वाले गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक बहुत बड़े विचारक, चिंतक, शिक्षक, कहानीकार और सहित्यकार थे। बंगाली साहित्य में अमर कृतियों का सहयोग देने वाले टैगोर भारत के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।गुरूदेव रवींद्रनाथ का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता शहर के ‘जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी’ में हुआ था। उनकी मां का नाम शारदा देवी और पिता का नाम देवेंद्रनाथ था। टैगोर के बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया था। उनके पिता एक ब्रह्मसमाजी थे और उनका पूरा जीवन व्यापक यात्राओं में ही बीता था। रवींद्रनाथ का लालन-पालन नौकरों की देख-रेख में ही हुआ। रवींद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा कोलकाता के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उसके बाद इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में बैरिस्टरी की। उसके बाद लन्दन विश्वविद्यालय में कानून के अध्ययन के लिए उन्होंने दाखिला लिया, लेकिन वर्ष 1880 में बिना डिग्री लिए ही भारत वापस लौट आए।

टैगोर ने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया था और उसे एक ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया। टैगोर को प्रकृति बहुत पसंद थी। उनका मानना था कि छात्रों को प्रकृति के समीप रहते हुए ही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, इसीलिए उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के स्वामी रवींद्रनाथ ने देश-विदेश के साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। आधुनिक विचारों वाले मानवतावादी टैगोर स्वस्थ परंपराओं में भी पूर्ण विश्वास रखते थे। टैगोर एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया है। भारत का ‘जन-गण-मन’ और ‘आमार शोनार बांग्ला’ राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का ही एक हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि श्रीलंका का राष्ट्रगीत ‘श्रीलंका मथा’ भी गुरुदेव रवींद्रनाथ की रचनाओं से प्रेरित है।

इसके रचयिता आनंद समरकून कई दिनों तक शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के पास रहे थे। आनंद टैगोर की कविताओं से काफी प्रभावित थे। साल 1941 को बांगलादेश की आजादी से पहले गुरूदेव का निधन हो गया। टैगोर और महात्मा गांधी एक दूसरे का काफी सम्मान करते थे। गांधी जी की सलाह पर ही टैगोर ने शांति निकेतन में छोटे-छोटे काम नौकरों से करवाना बंद करके स्वयं करने लगे थे। हालांकि, दोनों में काफी वैचारिक भिन्नता थी। बता दें, रवींद्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ की उपाधि महात्मा गांधी ने और गांधी जी को ‘महात्मा’ की उपाधि गुरुदेव ने ही दी थी।