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केंद्र सरकार को महंगाई भत्ते पर घेरने गई कांग्रेस, तो सामने आ गया खुद का ऐसा अतीत

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को मोदी सरकार को महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए फटकार लगाने की कोशिश की।

नई दिल्ली। लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक तनातनी कम नहीं हो रही है, कभी कोरोना जांच किट के मुद्दे को लेकर बहस हो रही है तो कभी किसी और मुद्दे पर। अब एक और नया मुद्दा दिल्ली की राजनीति में बयानबाजी की आग पर पक रहा है और वो है महंगाई भत्ता।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को मोदी सरकार को महंगाई भत्ते में बढ़ोत्तरी पर रोक लगाने के लिए घेरने की कोशिश की और इसके साथ ही कहा कि इस तरह से सरकारी कर्मचारियों और सशस्त्र बलों के जवानों पर और मुश्किलें खड़ी करना जरूरी नहीं है।

गौरतलब है कि कांग्रेस के मुताबिक उसका सरोकार खासकर उन पेंशनभोगियों से है जिनके पास कई जिम्मेदारियां मौजूद हैं। बेशक कांग्रेस केंद्र इस फैसले पर सवाल खड़े कर रही हो लेकिन पार्टी के स्वयं के रिकॉर्ड पर अगर नजर डाली जाए तो ये पता चलता है कि आज इस महंगाई भत्ते के मुद्दे पर उसका स्टैंड महज एक दिखावा है।

Rahul Gandhi, Sonia Gandhi and Manmohan Singh

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने केवल जून 2021 तक के लिए महंगाई भत्ते (DA) और महंगाई राहत (DR) में बढ़ोतरी को रोक दिया है, हालांकि, पुरानी दरों के हिसाब से इसका भुगतान जारी रखा जाएगा।

बेशक कांग्रेस आज मोदी सरकार के मुश्किल की घड़ी में लिए गए इस कड़े फैसले का विरोध कर रही है लेकिन, 1963 से 1974 के ये दस्तावेज कांग्रेस राज में ‘निरंकुश’ शासन को साफ तौर पर दिखाते हैं। इसपर कांग्रेस के अतीत को याद दिलाते हुए भाजपा प्रवक्ता सुरेश नाखुआ ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने 1963 और 1974 का जिक्र किया है।

ये 1974 की बात है जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं और डॉ मनमोहन सिंह मुख्य आर्थिक सलाहकार थे। कांग्रेस कार्यकाल के उस समय करदाताओं को 3-5 साल की लॉक-इन अवधि के लिए उनके वेतन का 3-5% जमा करने के लिए बाध्य किया गया था।

इसके अलावा, 1963 और 1974 में भी केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से 2 डिपॉजिट योजनाएं चल रही थीं। इस योजना के तहत, 3 से 5 साल की लॉक-इन अवधि के लिए उनके वेतन का एक हिस्सा रोक दिया गया था और इस रोकी हुई राशि को एक फंड में जमा किया गया था। इस योजना के बाद ये जानकारियां सामने आई थीं कि इस तरह का पैसा सरकारी कर्मचारियों की सहमति के बिना जमा किया गया था।

लेकिन आज जब मुश्किल की घड़ी में सरकार को वाकई धन की जरूरत है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब हर तरह की आर्थिक गतिविधयां रोक दी गई हैं। ऐसे समय में भी अपने अतीत को भुलाकर कांग्रेस राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी है। हो सकता है कांग्रेस इस मुद्दे को उछालकर बड़ा राजनीतिक फायदा हासिल करना चाह रही हो और हो सकता है कांग्रेस यह दिखाना चाहती हो कि सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को वर्तमान सरकार के कठोर नियमों के अधीन कर रही है।

Sonia gandhi

लेकिन कांग्रेस का अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा है क्योंकि पार्टी ने 1963 और 1974 में अपने स्वयं के शासन के तहत सरकार के कर्मचारियों को करों के अलावा आय का एक बड़ा हिस्सा सरकारी फंड में जमा कराने के लिए मजबूर किया गया था।