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Himachal Pradesh: अगर प्रतिभा सिंह को कांग्रेस बना देती मुख्यमंत्री, तो हिमाचल में सफल हो जाता बीजेपी का ऑपरेशन लोटस!

Himachal Pradesh: उनके खेमे के नेताओं ने उनके पक्ष में नारेबाजी भी की थी। जिसके बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि पार्टी हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री के ताज से वशीभूत कर सकती है। बता दें, प्रतिभा सिंह वर्तमान में मंडी से सांसद और प्रदेश अध्य़क्ष की कुर्सी पर विराजमन हैं।

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी लंबी मत्थापच्ची के बाद सुखविंदर सिंह ने आज मुख्यमंत्री पद और मुकेश अग्निहोत्री ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। सुखविंदर सिंह प्रदेश के 15वें मुख्यमंत्री बनें। सुखविंदर नादौन विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। इससे पूर्व वे पार्टी में कई बड़े पद की जिम्मेदारी ग्रहण कर चुके हैं। सुखविंदर के इतर मुकेश अग्निहोत्री ने डिप्टी सीएम पद का शपथ ग्रहण किया है। बता दें, लंबे चिंतन-मंथन के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए सुखविंदर के नाम पर सहमति बनी है। हालांकि, पहले प्रतिभा के नाम को लेकर चर्चा थी कि आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री बना सकती है। प्रतिभा ने मीडिया से मुखातिब होने के क्रम में पार्टी आलाकमान से मुख्यमंत्री बनाए जाने की भी मांग की थी।

उनके खेमे के नेताओं ने उनके पक्ष में नारेबाजी भी की थी। जिसके बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि पार्टी हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री के ताज से वशीभूत कर सकती है। बता दें, प्रतिभा सिंह वर्तमान में मंडी से सांसद और प्रदेश अध्य़क्ष की कुर्सी पर विराजमन हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए माना जा रहा था कि पार्टी की तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन जैसे ही खबर आई कि आलाकमान ने प्रतिभा को नहीं, बल्कि सुखविंदर सिंह को सीएम पद पर विराजमान करने का फैसला किया है, तो सभी चर्चाएं खुद ब खुद स्थगित हो गईं, लेकिन क्या आपके जेहन में यह सवाल नहीं उठा कि आखिर क्यों पार्टी आलाकमान ने प्रतिभा को नहीं, बल्कि सुखविंदर को सीएम कुर्सी पर काबिज करने का फैसला किया है। आइए, आगे जानते हैं।

उपचुनाव का डर

जैसा कि हमने आपको बताया कि वर्तमान में प्रतिभा सिंह मंडी से सांसद हैं। अगर पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज करती है, तो उन्हें सांसद पद से इस्तीफा देकर विधायकी का चुनाव लड़ना होगा और मौजूदा वक्त कांग्रेस किसी भी प्रकार के उपचुनाव कराने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि मंडी, जहां से प्रतिभा सांसद हैं, वहां कुल 17 विधानसभा सीटें आती हैं और इस चुनाव में उन सभी 17 सीटों में से 15 सीटें बीजेपी के खाते में गईं हैं। जिससे जाहिर होता है कि मंडी में बीजेपी का जनाधार मजबूत है। संभवत: इसलिए पार्टी ने प्रतिभा की जगह सुखविंदर के नाम पर मुहर लगाई।

Pratibha Singh

नहीं चाहती परिवारवाद का आरोप

यह परिवारवाद का ही नतीजा है कि आज कांग्रेस अपनी दुर्गति के सभी पुराने पैमानों को ध्वस्त कर चुकी है। आलम यह है कि क्या पंचायत, क्या निगम, क्या विधानसभा, क्या लोक्सभा, हर चुनाव में पार्टी को अगर मुंह की खानी पड़ती है, तो सिर्फ और सिर्फ परिवारवाद के आरोपों की वजह से ही। याद कीजिए 2019 के लोकसभा चुनाव को। जब कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने ना महज इस्तीफा दिया था, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया था कि इस बार अगर कोई राष्ट्रीय अध्य़क्ष की कुर्सी पर विराजमान होगा, तो वो गैर-गांधी परिवार का ही होगा, क्योंकि राहुल गांधी को इस बात का एहसास हो चुका है कि अगर पार्टी को फिर से पुनर्जीवित करना होता तो परिवारवाद के दाग से बेदाग होना होगा। वहीं, प्रतिभा सिंह के परिपेक्ष्य में भी परिवारवाद ही आड़े आ गया। दरअसल, वीरभद्र सिंह लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। प्रतिभा खुद कई मर्तबा सांसद रहीं। वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष हैं। वर्तमान में उनके पुत्र भी विधायक हैं। इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखते हुए पार्टी  ने प्रतिभा के नाम पर मुहर लगाने से गुरेज किया।

प्रतिभा के पक्ष में प्रदर्शन

जिस तरह बीते दिनों प्रतिभा के समर्थन में नारेबाजी देखने को मिली। पार्टी आलाकमान से उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग की गई। उससे कहीं ना कहीं बीजेपी के पास कांग्रेस पर निशाना साधने का मौका मिला। जिसे देखते हुए पार्टी ने प्रतिभा के नाम पर मुहर नहीं लगाई। ध्यान रहे, बीते दिनों बीजेपी ने हिमाचल में जारी सरकार बनने से पूर्व जारी गति रोध को लेकर शीर्ष नेतृत्व पर निशाना भी साधा था। इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को डर था कि अगर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया जाए, तो जहां एक तरफ बीजेपी को लॉटेस ऑपरेशन का मिल सकता है, तो वहीं जनता के बीच में भी पार्टी को लेकर गलत संदेश जाएगा।