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Kashi Vishwanath Gyanvapi Masjid: काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानपावी मस्जिद पर कोर्ट का बड़ा फैसला, अब 19 अप्रैल को….

आपको बताते चलें कि ज्ञानपावी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इसमें हिंदुओं से जुड़े अवेशष सम्मलित हैं। यही नहीं, हिंदू पक्षों का यह भी दावा है कि पूर्व में यहां मंदिर स्थित था। ज्ञानपावी मंदिर के नीचे ज्योतिलिर्गिंय है। इतना ही नहीं, मंदिर में चस्पे देवी-देवताओं की मूर्ति लगी हुई थी, जिसे साल 1664 में औरंगजेब ने नष्ट कर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था।

नई दिल्ली। वाराणसी जिला कोर्ट ने काशी-ज्ञानपावी मंदिर प्रकरण पर बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने इस विवाद का निस्तारण करने की दिशा में कमिश्नर नियुक्त करने का फैसला लिया है। इस कमीश्नर के नेतृत्व में काशी-ज्ञानपावी परिसर की वीडियोग्राफी कराई जाएगी। इस दौरान कोर्ट ने सुरक्षा-व्यवस्था भी चाकचौंबद करने का भी निर्देश दिया है, ताकि कोई अप्रिय घटना न घटे। बता दें कि जिला अदालत ने उक्त फैसला साल 2020 में दाखिल कई गई जनहित याचिका पर सुनावई के दौरान लिया है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कोर्ट से मांग की है कि उक्त परिसर को हिंदुओं को सौंपा जाए, चूंकि इसमें हिंदू मंदिर से जुड़े अवशेष हैं। तो ये है जिला अदालत का फैसला, लेकिन आइए अब आगे जानते हैं कि आखिर पूरा माजरा क्या है। आखिर कोर्ट ने किस मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया है।

kashi vishwanath gyanvapi masjid case court appointed commissioner | काशी  विश्वनाथ मंदिर - ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर कोर्ट का बड़ा फैसला!

आखिर क्या है माजरा

तो आपको बताते चलें कि ज्ञानपावी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इसमें हिंदुओं से जुड़े अवेशष सम्मलित हैं। यही नहीं, हिंदू पक्षों का यह भी दावा है कि पूर्व में यहां मंदिर स्थित था। ज्ञानपावी मंदिर के नीचे ज्योतिलिर्गिंय है। इतना ही नहीं, मंदिर में चस्पे देवी-देवताओं की मूर्ति लगी हुई थी, जिसे साल 1664 में औरंगजेब ने नष्ट कर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। जिसके बाद साल 2020 में जनतिह याचिका दाखिल की गई थी कि यहां मस्जिद को हटाकर मंदिर की स्थापना कीजिए। अब इसी मामले को संज्ञान में लेने के उपरांत हाईकोर्ट ने उक्त फैसला किया है। ऐसे में देखना होगा कि आगे चलकर इस पर क्या कुछ फैसला लिया जाता है।

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इतिहास के चश्मे से देखे तो यह प्रकरण साल 1991 में ही पहुंच गया था, जब ज्ञानपावी मस्जिद में हिदू देवताओं की पूजा करने की मांग की गई थी, लेकिन कुछ ही माह बाद प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देकर मस्जिद कमेट ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन 1993 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने इस प्रकरण को संज्ञान में लेने के बाद इस पर यथास्थिति रखने का निर्देश दिया था। जिसके बाद इस पूरे प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी और अभी-भी इस पूरे मसले पर सुनवाई का सिलसिवा जारी है। अब ऐसे में इस बात पर सभी की निगाहें टिकी हुई है कि आखिर इस पर क्या कुछ फैसला लिया जाता है।