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Uttarakhand: दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है इगास पर्व, जानिए क्या है इसका महत्व

Uttarakhand: इस दिन को लेकर कुमाऊँ के लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। दीपावली के 11वे दिन मनाए जाने वाले इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते है। इन पकवानों का देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। शाम के समय मैला जलाकर सभी लोग मिलकर लोक नृत्य करते हैं।

नई दिल्ली। उत्तराखंड का लोकपर्व इगास आज, चार नवंबर को मनाया जा रहा है। ये पर्व खासतौर पर कुमाऊं में मनाया जाता है। इगास बग्वाल को बूढ़ी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को लेकर कुमाऊँ के लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। दीपावली के 11वे दिन मनाए जाने वाले इस पर्व के दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते है। इन पकवानों का देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। शाम के समय मैला जलाकर सभी लोग मिलकर लोक नृत्य करते हैं।

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कुमाऊं में इस पर्व को लेकर है ये कहानी

इगास पर्व के पीछे कुमाऊं में एक कहानी प्रचलित है जिसके तहत कहा जाता है कि भगवान राम द्वारा लंकापति रावण पर विजय के बाद उनके अयोध्या पहुंचने की जानकारी ग्यारह दिनों बाद मिली थी। यही वजह है कि इस दिन को दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है। इसी कारण इसे बूढ़ी दीवाली का नाम भी दिया गया।

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गढ़वाल में ये है कहानी

गढ़वाल में इसे लेकर जो कहानी है उसके मुताबिक, गढ़वाल नरेश महिपति शाह ने सेनापति माधो सिंह और सेना को दीपावली से पहले तिब्बत के राजा से खिलाफ युद्ध के लिए भेजा था। उनके लौटने तक दिवाली का त्योहार नहीं मनाया गया। जब सेना ग्यारह दिन बाद जीत कर वापस आती है तो यहां दिवाली मनाई गई थी।

नृत्य के साथ खेला जाता है भैलो

इस इगास बग्वाल पर्व के दिन गाय और बैलों की पूजा की जाती है। शाम के समय एक स्थान पर चीड़ की पराल से मैला बनाया जाता है। नृत्य के साथ यहां भैलो भी खेला जाता है।

एक दिन का अवकाश घोषित

इगास बग्वाल के पर्व की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट कर लिखा, ‘सभी प्रदेशवासियों को इगास/बूढ़ी दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं, हम सभी मिलजुल कर इस त्योहार को मनाएंगे अपनी नई पीढ़ी को हमारी महान संस्कृति से जोड़ेंगे, ये बूढ़ी दिवाली हमारी संस्कृति की पहचान है, इसे यादगार बनाने के लिए हमने एक दिन के राजकीय अवकाश का ऐलान किया है’। बता दें, सीएम के ऐलान के बाद प्रदेश में आज 4 नवंबर को लोकपर्व इगास का अवकाश रहेगा। इस दौरान प्रदेश में सभी सरकारी, अशासकीय कार्यालयों, शैक्षिक संस्थानों, प्रतिष्ठान, बैंक व कोषागारों में भी ताला रहेगा।