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Ajab Gazab News: भगवान गणेश के इस मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने की है परंपरा, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह?

Ganesh Chaturthi 2022: आज गणेश चतुर्थी के अवसर पर हम आपको श्रद्धालुओं के प्रिय उज्जैन के भगवान चिंतामन गणेश और इंदौर के खजराना गणेश मंदिर की कहानी और इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं क्या है इन मंदिरों की खासियत…

नई दिल्ली। विघ्नों को हरने वाले भगवान गणपति बप्पा आज से घर-घर विराजमान हो गए हैं। वैसे तो ये मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला त्योहार है,  लेकिन देशभर में ये हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में भी इस पर्व का उत्साह देखने योग्य है। आज गणेश चतुर्थी के अवसर पर हम आपको श्रद्धालुओं के प्रिय उज्जैन के भगवान चिंतामन गणेश मंदिर की कहानी और इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं क्या है इन मंदिर की खासियत…

चिंतामन गणेश मंदिर

मुख्य शहर से 7 किमी की दूरी पर स्थित भगवान गणेश के इस मंदिर में गणपति बप्पा की पूजा चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक के रूप में होती है। यहां के पुजारियों का कहना है कि मंदिर में विराजमान श्री गणेश की पूजा सबसे पहले भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने की थी। ये देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर तीन स्वरूपों में गणेश जी की प्रतिमा एक ही पाषाण पर विराजित है। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि यहां उल्टा स्वास्तिक बनाने की परंपरा है। इसकी वजह क्या है उसके बारे मे जानने से पहले आइए हम आपको इसके इतिहास से रूबरू करवाते हैं।

मंदिर के मुख्य पुजारी गणेश गुरु के अनुसार, त्रेता युग में 14 साल के वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे रामघाट पर पिता दशरथ जी का पिंडदान किया। इसके बाद दक्षिण दिशा में चलते हुए मंदिर के पास आकर एक वटवृक्ष के नीचे आराम करने लगे। तीनों आराम कर ही रहे थे, कि तभी सीता माता की पूजा का समय हो गया। तब वहीं, बरगद के पेड़ के पास भगवान चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक की मूर्ति की स्थापना कर तीनों ने प्रथम पूजन किया था। इसमें पूजा के दौरान जलाभिषेक करने के लिए जब उन्हें जल नहीं मिला, तो लक्ष्मण जी ने अपने बाण चलाकर मंदिर के सामने ही बाणगंगा के रूप में जल को पाताल से जमीन पर प्रकट कर दिया। यही कारण है कि इस स्थान पर बावड़ी नामक बाणगंगा और लक्ष्मण बावड़ी भी मौजूद है। इसके बाद भगवान राम ने चिंतामन, लक्ष्मण जी ने इच्छामन और सीता मां ने सिद्धिविनायक की पूजा-अर्चना की।

पं. गणेश गुरु आगे बताते हैं कि चिंतामन गणेश की पूजा करने से चिंता दूर होती है,  इच्छामन गणेश भगवान इच्छा की पूर्ति करते हैं और सिद्धिविनायक सिद्धि के प्रदान करते हैं। मंदिर के बैरिकेड्स, जाली और उन्हें जिस स्थान पर भी जगह मिले, श्रद्धालु उस स्थान पर मन्नत के तीन धागे बांधते हैं। इनमें से एक चिंतामन, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक को समर्पित होता है। साथ ही दीवारों और मंदिर के खंभों श्रद्धालु उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं। मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु वापस आकर धागा खोलते हैं और स्वास्तिक को सीधा बनाते हैं। ये परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। पुजारी के अनुसार, ऐसा इसलिए किया जाता है कि सीधा स्वास्तिक भगवान गणेश का प्रतीक होता है, इसलिए उल्टा स्वास्तिक बनाकर उन्हें मनाने का प्रयास किया जाता है।