नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो को उपलब्धियां हासिल करने के कारण दुनियाभर में तारीफ मिलती रही है। अब एक बार फिर इसरो ने उपलब्धि हासिल करते हुए भारत के अंतरिक्ष इतिहास में नया पन्ना जोड़ा है। इसरो ने बीते दिनों पीएसएलवी सी60 रॉकेट से जिस पीओईएम4 सीआरओपीएस यान को भेजा था, उसमें रखे लोबिया के बीज अंकुरित हो गए हैं। इसरो को उम्मीद कि जल्दी ही लोबिया के इन बीजों से पत्ते भी निकलेंगे। पीओईएम4 सीआरओपीएस यान में लोबिया के 8 बीज रखे गए थे। सभी अंतरिक्ष में अंकुरित हो चुके हैं। इसरो लगातार अंकुरित बीजों पर निगरानी रख रहा है। यान में इसके लिए ज्यादा रेजोल्यूशन वाले कैमरे, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता मापने का यंत्र, आर्द्रता को मापने और मिट्टी में नमी को जांचने वाले यंत्र लगे हैं। इसके अलावा बीजों को पौधों में बदलने के लिए यान में तापमान भी कंट्रोल किया जा रहा है।
इसरो ने लोबिया के बीजों को इस प्रयोग के लिए इस वजह से चुना था, क्योंकि ये तेजी से अंकुरित होते हैं और पोषण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं। इन बीजों को सही तापमान के साथ एक बंद बक्से में रखकर अंतरिक्ष में भेजा गया था। पहले इसरो के वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि 7 दिन में लोबिया के बीज अंकुरित हो सकते हैं, लेकिन इन बीजों में 4 दिन में ही अंकुर निकल आए। पीओईएम4 सीआरओपीएस यान का लक्ष्य कम गुरुत्वाकर्षण के हालत में बीज में अंकुरण और पौधे की हालत का अध्ययन करना है। अंतरिक्ष शोध में इसरो ने इससे भारत की स्थिति मजबूत बनाई है। इस प्रयोग की सफलता भविष्य में अंतरिक्ष में भोजन के लिए पौधों और साग-सब्जी उगाने की दिशा में अहम साबित होगी। इससे अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर खाद्यान्न उगाने में मदद मिलेगी।
बताया जा रहा है कि लोबिया के बीजों के अंकुरित होने के बाद अब पालक पर भी प्रयोग किया जाएगा। पालक उगाने पर ये प्रयोग धरती और अंतरिक्ष में एक साथ होगा। ताकि पता चल सके कि अलग-अलग गुरुत्वाकर्षण वाली हालत में ये एक साथ ही उगता है या इसके उगने की रफ्तार कहीं तेज और कहीं धीमी होती है। अंतरिक्ष में पालक की कोशिकाओं को जेल और एलईडी लाइट के सहारे सूरज की रोशनी जैसे हालात और पोषक तत्व दिए जाएंगे। साथ ही कैमरा लगाया जाएगा। इससे पता चलेगा कि पालक की कोशिका क्या स्वरूप ले रही है। अगर पालक की कोशिका का रंग अंतरिक्ष में बदलता है, तो माना जाएगा कि वहां भी पालक उगाई जा सकती है।