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केरल हाईकोर्ट का आदेश, अब दस्तावेज में सिर्फ मां का नाम लिखने की मिली इजाजत, जानें पूरा मामला

नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट ने अब सरकारी परिपत्रों में सिर्फ मां का नाम लिखने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि अविवाहित महिलाओं और बलात्कार पीड़िता के बच्चों को भी निजता , स्वतंत्रता और गरीमा के साथ देश में रहने के अधिकार हैं। उनको भी वही अधिकार मिलना चाहिए, …

नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट ने अब सरकारी परिपत्रों में सिर्फ मां का नाम लिखने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि अविवाहित महिलाओं और बलात्कार पीड़िता के बच्चों को भी निजता , स्वतंत्रता और गरीमा के साथ देश में रहने के अधिकार हैं। उनको भी वही अधिकार मिलना चाहिए, जो कि दूसरों को प्रदान किए जाते हैं। उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अविवाहित मां का बच्चा भी इस देश का नागरिक है, लिहाजा संविधान में प्रदान किए गए जितने अधिकार दूसरे नागरिकों को दिए गए हैं, उतने ही अधिकार उस अविवाहित महिला के बच्चे को भी प्रदान किए जाए।

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दरअसल,  याचिकाकर्ता की मां अविवाहित थी। याचिकाकर्ता के पिता का नाम तीन दस्तावेजों में अलग था। वहीं, अदालत ने जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रार को कार्यालय में याचिकाकर्ता के संबंध में जन्म रजिस्टर से पिता के नाम को हटाकर माता के नाम को अभिभावक के रूप में रखने के लिए कहा है। अदालत ने आगे कहा कि यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसके निजता के अधिकारों का उल्लंघन ना हो, अन्यथा उसे अकल्पनीय मानसिका पीड़ा का सामना करना पड़ेगा।

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आपको बता दें कि न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने अपनी टिप्पणी में कहा कि हम ऐसा समाज चाहते हैं जिसमें कर्ण जैसे पात्र न हों, जो अपने माता-पिता का पता ठिकाना नहीं जानने के लिए तिरस्कृत होने के कारण अपने जीवन को कोसता है। हमें चाहिए असली वीर कर्ण जो महाभारत का असली नायक और योद्धा था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि हमारा संविधान प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार प्रदान करता है।