पुरी। ओडिशा के धार्मिक नगर पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की रथयात्रा के मौके पर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन अलग-अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। साल में एक बार होने वाली रथयात्रा के बारे में हम यहां आपको हर जानकारी देने जा रहे हैं।
कहा जाता है कि एक बार देवी सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ ने पुरी नगर भ्रमण करने की इच्छा जताई। तब भगवान जगन्नाथ ने उनके और भाई बलराम के साथ नगर दर्शन किया था। इसी के बाद से हर साल भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथयात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को नीम के पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है। इन रथों को बनाने के लिए लोहे का कहीं भी इस्तेमाल नहीं होता। रथयात्रा कर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां गुंडीचा मंदिर पहुंचती हैं। अगले 7 दिन तक यहीं भगवान और उनके भाई व बहन की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को वापस उनके मंदिर लाया जाता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है। ये 42.65 फीट ऊंचा और 16 पहिए का होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को लाल और पीले कपड़ों से सजाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ के सारथी दारुक माने जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के बाद उनके भाई बलभद्र का तालध्वज नाम का रथ है। इसकी ऊंचाई 43.30 फीट और 14 पहिए का होता है। बलभद्र के रथ को लाल और हरे रंग से सजाया जाता है। बलभद्र के रथ के सारथि मातलि कहे जाते हैं। रथों में सबसे छोटा देवी सुभद्रा का होता है। दर्पदलन नाम के इस रथ की ऊंचाई 42.32 फीट होती है। देवी सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। इस रथ के सारथी अर्जुन माने जाते हैं। तीनों रथों को मोटी-मोटी रस्सियों से बांधकर भक्त खींचते हैं और फिर गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। 16 जुलाई को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां गुंडीचा मंदिर से फिर अपने मूल मंदिर पहुंचेंगी। उस यात्रा को उल्टा रथ कहा जाता है।